संदीप कुमार मिश्र : दिल्ली में लगातार
प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। बेतहाशा सड़कों पर सरपट दौड़ती
गाड़ियां...गाड़ियों से निकलता धूआं और शोर।दिल्ली की फिजाओं में जहर घोल रही
है।जिससे आहत एनजीटी और हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को
कड़ी फटकार लगाई और दिल्ली सरकार ने प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए बेहद सख्त
कदम उठाए।जिसके तहत 1 जनवरी 2016 से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 'ईवन' और 'ऑड' नंबर प्लेट के आधार पर गाड़ियां चलेंगी।आईए आपको बताते हैं कि क्या है 'ईवन' और 'ऑड' नंबर का
फंड़ा।दरअसल 2,4,6,8,0 के नंबर वाली
गाड़ियां पहले दिन और 1,3,5,7,9 की नंबर वाली दूसरे दिन चलेंगी। यानी की पहले दिन सम संख्या वाली और दूसरे
दिन विषम संख्या वाली गाड़ियां दिल्ली में चलेंगी। लेकिन ये नियम पब्लिक
ट्रांस्पोर्ट पर लागू नहीं होगा। यानी कि महीने में अब आप सिर्फ 15 दिन ही कार चला सकेंगे।
इतना ही नहीं दिल्ली सरकार ने शहर में
फैले कोहरे, धुंध और प्रदूषण को कम करने के लिए इस फॉर्मूले को तैयार किया है।दरअसल
सिंगापुर की तर्ज पर इस व्यवस्था को दिल्ली में लागू किया जा रहा है।वहीं दिल्ली
के कोयला से चलने वाले बिजली के प्लांट को भी बंद किया जाएगा।यानी कि बदरपुर प्लांट
और दादरी प्लांट को भी बंद करने की सरकार की मंशा है।
नए नियमों के आधार पर –
1-आप दिल्ली में रहते हैं और आपकी गाड़ी
का आखिरी नंबर 2,4,6,8,0 है तो आप महिने में पंद्रह दिन ही गाड़ी चला सकते है
2- आपकी गाड़ी का आखिरी नंबर 1,3,5,7,9
है तो आप भी महिने में 15 दिन गाड़ी चला सकते हैं।
यानी एक दिन छोड़कर एक दिन ही गाड़ी आप
चला सकते है।
3- दिल्ली की सड़कों की 3हफ्तों में वैक्यूम
क्लीनिंग करने का प्रावधान भी नए नियम में है।
4- बाहर से आने वाले भारी वाहनो का दिल्ली में प्रवेश 11 बजे के बाद ही हो पाएगा।
इस नियम को लागू करने में अड़चने
दरअसल दिल्ली सरकार ने नया फरमान तो
सुना दिया है लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या इस अजीबो गरीब फार्मूले को दिल्ली में
लागू किया जा सकता है।क्योंकि अंतत: इस नियम को ट्रैफिक पुलिस को ही फालो करना है और सोचने वाली बात ये है कि क्या
ट्रैफिक पुलिस के पास पर्याप्त स्टाफ है..?क्या ट्रैफिक पुलिस के पास तकनीकी संसाधन है।सरकारी, कॉमर्शियल और दूसरे हल्के-भारी वाहनों के बीच से सम-विषम नंबर प्लेट वाली
गाड़ियों को छांटना क्या बेहद मुश्किल नहीं होगा..?क्योंकि दिल्ली में ही 84 लाख से ज्यादा निजी वाहन दर्ज हैं,वहीं एनसीआर से भी रोजाना करीब पांच लाख वाहनों की आवाजाही दिल्ली में होती है।
अब जरा वर्तमान में ट्रैफिक पुलिस
की स्थिति जान लें-
वास्तविकता ये है कि दिल्ली में वाहनों
की संख्या के अनुपात में ट्रैफिक पुलिस का आंकड़ा आधा है। वहीं ट्रैफिक पुलिस के 54 सर्कल में से केवल आठ में ही डबल शिफ्ट में ड्यूटी होती है। इसके अलावा एकल
शिफ्ट के चलते ट्रैफिक पुलिसकर्मियों पर अतिरिक्त भार होता है। और तो और ट्रैफिक
पुलिस की संख्या दिल्ली में छह हजार है जिसमें करीब तीन-चार हजार पुलिसकर्मी ही
ड्यूटी पर रहते हैं।और प्रतिदिन 60 लाख से अधिक वाहनों की आवाजाही को
सुनिश्चित करते हैं मात्र तीन से चार हजार पुलिसकर्मी।इसके अलावा संसद सत्र, धरना-प्रदर्शन, पुलिस लाइन, दफ्तर एवं बतौर नायब कोर्ट में तैनाती, वीवीआईपी ड्यूटी और बीमारी अरामी।कुल
मिलाकर 20 फीसदी। ऐसे में क्या संभव है कि सिर्फ नियम बनाने से काम चल
जाएगा,क्योंकि इस नियम से लगता है कि भविष्य में राज्य और केंद्र सरकार के बीच
टकराहट और कड़वाहट पैदा हो सकती है।
लेकिन सवाल उठता है कि आखिर दिल्ली से प्रदूषण कम कैसे किया
जाए।या फिर सम और विषम नंबर वाली योजना के लिए क्या
और कैसे करना होगा क्योंकि विश्व के किसी भी देश में इस प्रकार का नियम ज्यादा
प्रभावी नहीं साबीत हुआ है।फिर भी कुछ तो करना ही पड़ेगा,जैसे- हर छोटी-बड़ी सड़क पर
सीसीटीवी और रेड स्पीड कैमरे लगाए जाए जो कैमरे वाहनों की नंबर प्लेट का फोटो ले
सकें जिससे नियमों का उलंधन करने वालों के घर नोटिस भेजा जा सके।साथ ही हर एक
रास्ते पर ट्रैफिक पुलिस की तैनाती के साथ ही उच्च क्वालिटी वाले डिजिटल एवं
वीडियो कैमरे लगाने होंगे। गाड़ीयों के चालान नोटिस के लिए अलग से सेंट्रल सर्वर
और कंट्रोल रूम तैयार करना होगा। इसके अलावा सड़क पर अलग-अलग लेन बनानी होंगी और
इसका उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जरूरत होगी।क्योंकि जब सभी वाहन
अपनी लेन में चलेंगे तभी नियमों का उल्लंघन करने वालों को पहचाना जा सकेगा। और
नियमों का उल्लंघन करने वालों का चालान कम से कम पांच हजार और अधिकतम दस हजार करना
होगा।जिसके बाद इस नियम को दिल्ली में लागू किया जा सकता है।
अंतत: बड़ा सवाल ये है कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है जहां प्रशासन की कमान महामहिम
राष्ट्रपति महोदय के हाथ में है,और नियमों को क्रियान्वित करवाना,पास करना केंद्र
सरकार के हाथ में है,तो क्या दिल्ली सरकार ने इस नियम को सर्वसम्मति से तैयार किया
है,और क्या इस नियम को लागू करने के लिए बजट दिल्ली सरकार के पास है,क्योंकि इस
नियम में साल्यूशन कम और कन्फ्यूजन ज्यादा है और झमेले भी।तो क्या ये माना जाए कि
केजरीवाल सरकार केंद्र की मोदी सरकार से दो-दो हाथ करने के लिए ही इस नियम को
तैयार किया है..?बहरहाल देखिए दिल्ली में आगे आगे और क्या होता है...।
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