Saturday, 12 December 2015

नेता जी अब तो पढ़ना भी पड़ेगा..!


संदीप कुमार मिश्र : राजनीति में एक दौर ऐसा भी था जब लोग इमानदार छवी पर नेता चुन ला करते थे,वहीं एक दौर ऐसा भी आया जब धनबल,बाहुबल के दम पर नेता बनना आसान हो गया,जो आज भी चल रहा है,हमारे जन प्रतिनिधि अंगुठा टेक हो तो भी चल जाता था लेकिन शर्त थी की उसके पास धन और बाहुबल हो।अब किस किस का नाम लें आप जानते ही हैं कि राजनीति में किस किस और कैसे लोग आगे गए और लोकतंत्र का मजाक उड़ाते रहे।

दरअसल हमारे मन में अक्सर एक सवाल उठता है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जनप्रतिनिधि यानि नेता कैसा होना चाहिए और उसके अन्दर कैसी काविलियत होनी चाहिए साथ ही उसकी योग्यता के क्या पैमाने होने चाहिए। हम आ ये बात अच्छी तरह से जानते हैं कि हमारे देश में राजनीति की शुरुआत कहीं ना कहीं गांव दिहातों से होती है,जहां ग्राम प्रधान चुनाव से गांवो को वेहतर बनाने के लिए गांव वाले प्रधान का चुनाव करते हैं।गांव का चुनाव बेशक छोटा होता है लेकिन बेहद प्रभावी होता है,जो देश की सियासत में बड़ा प्रभाव डालता है।

ये जानना आपके लिए जरुरी इसलिए है कि अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार के एक फैसले पर मुहर लगा दी। दरअसल माननिय न्यायालय का वो महत्वपूर्ण फैसला पंचायत चुनाव को लेकर था।इस फैसले में कोर्ट का कहना था कि पंचायत चुनाव लड़ने के लिए सामान्य वर्ग का दसवीं पास होना, जबकि दलित और महिला के लिए आठवीं पास होना जरूरी है। साथ ही बिजली का बिल बकाया न होने और घर में टॉयलेट होने की शर्त भी रखी गई है।जिस प्रकार के देश की राजनीति में बदलाव आ रहा है और देश तरक्की की राह पर लगातार आगे बढ़ रहा है,उस नजरीये से शिक्षा का स्तर बेहतर होना ही चाहिए,खासकर जनप्रतीनिधि का जो कि एक गांव,शहर और देस को नई दिशा और दशा देते हैं।इस लिहाज से माननिय सुप्रीम कोर्ट का फैसला हर तरह से स्वागत योग्य है।

इस देश की आवाम ही नहें कोर्ट भी यही चाहता है कि लोकतंत्र बेहद सशक्त और मजबूत हो जिसके लिए जरुरी है कि साक्षरता का स्तर सर्वोत्म हो ।औसे में कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ दायर अपील का खारिज होना सुनिश्चित था।बड़ी बात ये है कि आजादी के सातवें दशक में हम प्रवेश कर चुके हैं ऐसे में छोटी ही सही, एक निश्चित सीमा रेखा तो तय ही होनी चाहिए।जिससे न सिर्फ राजनीति के स्तर में सुधार होगा बल्कि समाज में शिक्षा का स्तर भी सुधरेगा,क्योंकि शिक्षा से जागरुकता आएगी और लोकतंत्र मजबूत होगा।

अंतत : आज समय की जरुरत है कि हम जातिवाद, क्षेत्रवाद और सांप्रदायिक मुद्दों से उपर उठकर देशहीत की बात करें। क्योंकि राजनीति में आने का उद्धेश्य महज अपनी आवश्यकताओं की पूर्ती करना ही नहीं है। ये तभी संभव है जब शिक्षा,स्वास्थ्य का स्तर बढ़े।खासकर गांवों में जहां देश की सत्तर प्रतिशत जनता रहती है।


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