Thursday, 17 December 2015

करोड़पति हैं लेकिन काम फैक्ट्री में मजदूरी का करते हैं


संदीप कुमार मिश्र : दोस्तों आपको सुनकर थोड़ी हैरानी जरुर होगी,लेकिन सच है...हमारे देश में एक जगह ऐसी भी है जहां कंपनीयों में काम करने वाले आम मजदूर से लेकर चपरासी यां तक की सिक्योरिटी गार्डस भी लखपती ही नहीं करोड़पति हैं।आप सोच रहे होंगे की आखिर ये जगह कौन सी है और कैसे एख चपरासी करोड़पति हो सकता है तो आपको बता दें कि ऐसा भी हो सकता है और ये जगह कोई और नहीं है देश के औद्योगीक नगर गुजरात का साणंद है जहां कि कंपनों में काम करने वाले लोग करोड़पति हैं।लेकिन आपको ये भी बता दें कि नोटों की बरसात इन लोगों पर फैक्ट्रियों में काम करने की वजह से नहीं हुई। उसके कारण कुछ और ही हैं।

दोस्तों आपको याद होगा सिंगुर (पश्चिम बंगाल) जहां सन 2008 टाटा मोटर्स ने अपना प्‍लांट लगाया था,जो हंगामें की वजह से नहीं चल सका।और टाटा मोटर्सने फिर गुजरात का रुख किया।जिसके बाद से ही उस समय की गुजरात में चल रही मोदी सरकार ने तकरिबन चार हजार हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया था और इसके बदले ही जमीन के मालिकों को लाखों नहीं करोड़ों रुपए का मुआवज़ा दिया गया था।इसी के बाद से ही साणंद के स्थानीय लोगों की किस्मत अचानक खुल गई।बावजूद इसके कई स्थानिय लोग साणंद की फैक्ट्रियों में फ्लोर सुपरवाइजर्स, सिक्यॉरिटी गार्ड, मशीन ऑपरेटर्स, और यहां तक कि चपरासी का काम कर रहे हैं। लेकिन साणंद ने समय के विकास की ऐसी रफ्तार पकड़ी कि तब से लेकर अब तक साणंद औद्योगीकरण का एक बड़ा हब बन गया।

दरअसल ये खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित हुई थी,और एक कंपनी का उदाहरण दिया गया था,जिसके अनुसार, रविराज फोइल्‍स लिमिटेड कंपनी में काम करने वाले 300 वर्करों में से तकरीबन 150 कर्मचारियों का बैंक बैलेंस एक करोड़ रुपए या उससे अधिक का है।लेकिन बावजूद इसके यहां के करोड़पति लोग मात्र 9-20 हजार रुपये की महिने महीने की सेलरी  पर काम कर रहे हैं।जबकि अब कंपनी मालिकों को ऐसा लगने लगा है कि आने वाले समय में करोड़पति वर्करों को रोकना तोड़ा मुश्किल भरा हो सकता है क्योंकि उनके पास कमाई का अन्य श्रोत भी हो गया है और उनकी निरेभरता सिर्फ कंपनी पर ही नहीं रह गई है।

आपको बता दें कि GIDC  के तहत साणंद में तकरिबन 200 से ज्यादा छोटी-बड़ी कंपनियों के यूनिट स्थापित किए गए हैं।इसी के वजह से लोगों को भूमि अधिग्रहण के एवज में मोटी रकम मिली हैजिसे यहां के लोगों ने उसे सोने में, बैंक डिपॉजिट्स जैसे कई जगहों पर निवेश कर रखा है।जब साणंद में टाटा का प्लांट आया था तब यहां सिर्फ दो बैंकों की ही 9 शाखाएं ही यहां पर थी, जिनमें करीब 104 करोड़ रुपए तक जमा रहता था। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यहां 25 बैंकों की 56 ब्रांचेज़ हैं, जिनमें कुल जमा हुई राशी 3 हजार करोड़ के आस पास है। कहते हैं साणंद में रातों-रात करोड़पति बनने के बाद कई वर्करों ने तो नौकरी छोड़ना भी शुरू कर दिया था।लेकिन जैसे-तैसे कुछ वर्करों को वापस लाया गया, जिससे कंपनियों में काम चालू हो सका।


अंतत: देश विकास की राह पर अग्रसर है,बढ़ना भी चाहिए,क्योंकि दूनिया में भारत की पहचान को नए ढ़ंग सो कायम करना है,हर आदमी सुखी हो संपन्न हो,हर हाथ काम हो,हर घर का नाम हो और ये तभी संभव हो सकता है जब बिना राजनीति के विकास को आगे बढ़ाया जाए।बड़ा सवाल...लेकिन क्या ऐसा देश के हर हिस्सों में संभव है,या हो पा रहा है...? आप भी सोचें हम भी सोचते हैं…..। 

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