संदीप कुमार मिश्र: भारतीय संस्कृति और सभ्यता अतिप्राचीन है।आस्था और विश्वास
हमारी खूबसूरती है।धर्म जहां हमें एक दूसरे से जोड़ती है तो वहीं हमारे विश्वास को
भी मजबूत करती हैं। जगतजननी मां जगदम्बा के अनेकों रुप...और हर रुप के पीछे हमारी
पौराणीक मान्यताएं।
दरअसल हम बात कर रहे हैं मां के रुप ताराचंडी की।बिहार का ऐतिहासिक शहर
सासाराम।और इस शहर के ही दक्षिण में कैमूर की पहाड़ी की मनोरम वादियों में हैं मां
ताराचंडी का वास।मां ताराचंडी में कहा जाता है कि मां के स्थान 52 शक्तिपीठों में से एक
है। हमारे धर्म शास्त्रें में ऐसा कहा गया है कि भगवान विष्णु के चक्र से खंडित
होकर माता सती के तीन नेत्रों में से दायां नेत्र इसी स्थान पर गिरा था।तभी से ये
स्थान तारा शक्ति पीठ के नाम से जाना जाने लगा।कहते हैं कि महर्षि विश्वामित्र ने
इसे तारा नाम दिया था।क्योंकि यहीं पर भगवान परशुराम ने राजा सहस्रबाहु को पराजित
कर मां तारा की उपासना की थी।जिसके बाद मां तारा इस शक्तिपीठ में बालिका के रूप
में प्रकट हुई थीं, और यहीं पर चंड का वध कर चंडी कहलाई थीं।अब इस स्थान को
सासाराम के नाम से जाना जाता है।जबकि पहले इस जगह का नाम सहस्रराम था,लेकिन बाद में अपभ्रंश होकर सहसराम हुआ और फिर
सासाराम के नाम से जाना जाने लगा।
इस रमणिक स्थान पर माता की बड़ी ही सुंदर मूर्ति एक गुफा के अंदर विशाल काले
पत्थर पर बनी हुई है।मंदिर में मां की मुर्ति के साथ ही बाल गणेश की एक प्रतिमा स्थापित
है।लोकमान्यता है कि मां ताराचंडी अपने भक्तों पर कृपा करने वाली हैं।मां अपनी
पूजा करने वालों पर शीघ्र प्रसन्न होती हैं। मां के दरबार में आने वाले श्रद्धालु यहां
नारियल फोड़ते हैं और माता को चुनरी भी चढ़ाते हैं। चैत्र और शरद नवरात्र के समय
ताराचंडी में बड़ा ही भव्य और विशाल मेले का आयोजन होता है।जिस मेले में रोहतास
जिले और आसपास के क्षेत्रों के ही नहीं दूर-दूर से लोग आते हैं।लोगों में माता के
इस पावन दरबार में लोगों की अटल आस्था है।ऐसा भी कहा जाता है कि महात्मा गौतम
बुद्ध जब बोधगया से सारनाथ प्रस्थान कर रहे थे तो यहां रुके थे। वहीं सिखों के
नौवें गुरु तेगबहादुर जी भी यहां आकर रुके थे।मां का दरबार है ही इतना निराला कोई
भी उनकी कृपा के बगैर नहीं रह सकता।
दोस्तों एक समय था
जब माता
ताराचंडी का मंदिर घने जंगलों के बीच में हुआ करता था।लेकिन समय और विकास की
रफ्तार के साथ अब मां का दरबार जीटी रोड का नए बाइपास मां के मंदिर के बिल्कुल बगल
से होकर गुजरती है।इस स्थान पर पहाड़ों को काटकर सड़क बनाई गई है।लोगों की आस्था
को देखते हुए मां ताराचंडी मंदिर परिसर को काफी खूबसूरत बनाया गया है और
श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए अच्छी व्यवस्था की गई है। अब तो मंदिर
परिसर में कई दुकानें भी खुल गई हैं।जहां से आसानी से पूजा सामग्री उपलब्ध हो जाती
हैं।
पूजा का समय-मां ताराचंडी का मंदिर सुबह 4 बजे से संध्या के 9 बजे तक खुला रहता है। संध्या आरती शाम को 6.30 बजे होती है, जिसमें शामिल होने के
लिए श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। आपको बता दें कि ताराचंडी मंदिर की
व्यवस्था बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद देखती है।भक्तों का मंदिर में हर समय
तांता लगा रहता है।
मां के दरबार में कैसे पहुंचें- साथियों मां ताराचंडी मंदिर की दूरी सासाराम रेलवे
स्टेशन से तकरीबन 6 किलोमीटर है।आप अपने वाहन से भी जा सकते हैं,साथ ही सासाराम से डेहरी जाने
वाली बस से भी जा सकते हैं और रास्ते में मां ताराचंडी के बस स्टॉप पर उतर सकते
हैं।बिहार का ऐसिहासिक शहर सासाराम रेल और सड़क मार्ग दोनों से देश के प्रमुख
शहरों से जुड़ा हुआ है।आप बड़े ही आसानी और सुलभता से माता के दर्शन के लिए पहुंच
सकते है।
अंतत: जब भी समय मिले तो
साथियों आप भी हो आईए...माता ताराचंडी के दरबार में ।क्योंकि पर्यटन और दर्शन के
साथ ही ऐतिहासिक शहर में जानने के लिए है और भी बहुत कुछ...।जय मां ताराचंडी।
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