संदीप कुमार मिश्र : हमारा देश आस्थाओं का देश है,सनातन संस्कृति का देश है।जहां के कण-कण में
ईश्वर का वास कहा जाता है,वो देश है भारत।दोस्तों श्रीरामचरितमानस जो एक पवित्र
ग्रंथ है।गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस में प्रभु श्रीराम के संपुर्ण
जीवन का बड़ा ही सजीव वर्णन किया गया है।मानस का अध्ययन कर हम अपने जीवन में
मानवीय मुल्यों को समझते हैं और आत्मसात करते हैं।
दरअसल ये बात हम इसलिए कह रहे हैं कि
बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी कैण्ट रेलवे स्टेशन से मात्र 7 कि.मी. की दूरी पर
स्थित दुर्गाकुण्ड के पास एक बड़ा ही मनोरम मंदिर का निर्माण किया गया है।जिसका
नाम है तुलसी मानस मंदिर। इस मंदिर की सबसे खास बात जो है वो ये कि इस मंदिर की सभी
दीवारों पर श्रीरामचरितमानस के अनमोल चौपाईयों और दोहे अंकित हैं।
काशी के जिस स्थान पर इस मंदिर का निर्माण किया गया है,उस
जगह के संबंध में कहा जाता है कि कभी इसी स्थान पर गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज ने श्रीरामचरितमानस की रचना की थी।इसी परिकल्पना के आधार पर
यहां बने मंदिर का नाम तुलसी मानस मंदिर रखा गया।आपको इस मंदिर परिसर में प्रवेश
करते ही सुमधुर स्वर में संगीतमय श्रीरामचरितमानस संकीर्तन सुनने को मिल जाएगा।जिससे
मन भक्ति भाव से भर जाता है।
दोस्तों काशी के स्थानीय लोगों
का कहना है कि,किसी समय यहां एक छोटा सा मंदिर हुआ करता था। सन 1964 में कलकत्ता के एक व्यापारी सेठ
रतनलाल सुरेका ने सफेद संगमरमर से एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया, जिसका उद्घाटन भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने किया
था।
इस अद्भूत और सुंदर मन्दिर के बीच में मर्यादापुरुषोत्तम
प्रभु श्रीरामजी, माता सीताजी, लक्ष्मणजी और हनुमानजी की नयनाभिराम प्रतिमाएं सुशोभित हैं।ये प्रतिमाएं
चलायमान हैं। साथ ही यहां एक ओर माता अन्नपूर्णा और शिवजी तथा दूसरी तरफ भगवान
सत्यनारायण का मन्दिर भी है। इस मंदिर की दूसरी मंजिल पर स्वचालित श्रीराम और
कृष्णलीला प्रदर्शित की गई है। इसी मंजिल पर तुलसीदासजी की प्रतिमा भी विराजमान
है। काशी के भीड़-भाड़ भरे अन्य मंदिरों से अलग इस मंदिर का शांत वातावरण बरबस ही
लोगों को अपनी और खींच लेता है। तुलसी मानस मंदिर में सुबह शाम श्रद्धालुओं की
भीड़ लगी रहती है। वहीं सावन के पवित्र महीने में तो यहां दर्शनार्थियों का तांता
लगा रहता है।धर्म की जय हो,अधर्म का नाश हो,प्राणियों में सद्भावना हो,विश्व का कल्याण हो।यही संदेश तो मानस और प्रभु श्रीराम के जीवन से जगत को मिलता है।अत: इसका विकास निरंतर होते रहना चाहिए।।
No comments:
Post a Comment