संदीप कुमार मिश्र : भगवान आशुतोष की महिमा अपरंपार
है।भोलेनाथ किस किस रुप में अपने भक्तों पर अपनी कृपा बाए रखते हैं ये तो वही
जानते हैं।लेकिन भोले की एक महिमा को हम आपको जरुर बता सकते हैं।दरअसल भले की
महिमा ही है कि विश्व का एक ऐसा अद्भूत प्राकृतिक शिवलिंग हमारे देश में है,जिसकी
उंचाई हर वर्ष बढ़ती रहती है।जो किसी चमत्कार से कम नहीं है।
दोस्तों मध्य प्रदेश से अलग होने के बाद
नया प्रदेश बना छत्तीसगढ़।जहां की राजधानी से मात्र 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है,जिला-गरियाबंद।और जिला मुख्यालय से सिर्फ 3 कि.मी. की दूरी पर है ग्राम मरौदा ।जहां के जंगलों में है अद्भूत प्राकृतिक
शिवलिंग।जिसे हम ‘भूतेश्वर महादेव’ के नाम से जानते हैं।
इस प्राचिन शिवलिंग को संपुर्ण संसार में इसलिए जाना जाता कि इसकी ऊंचाई हर वर्, बढ़ जाती है।इतना ही इस शिवलिंग को
अर्धनारीश्वर भी कहा जाता है।वहीं इस शिवलिंग को ‘भकुर्रा महादेव’ भी कहते हैं। यहां पूजापाठ करने वाले स्थानीय पंडितों और मंदिर समिति के
सदस्यों का कहना है कि हर महाशिवरात्रि को इस शिवलिंग की ऊंचाई और मोटाई मापी जाती
है।जबकि सदस्यों का स्पस्ट कहना था कि हर साल यह शिवलिंग तकरिबन एक इंच से पौन इंच
तक बढ़ जाती है।
इस शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि
सैकडो वर्ष पहले जमीदारी प्रथा के समय पारागांव निवासी शोभासिंह जमींदार की यहां
पर खेती थी। जमींदार शोभा सिंह जब शाम को अपने खेत मे घुमने जाते थे। एक दिन
उन्हें खेत के पास एक विशेष आकृति नुमा टीले से सांड के हुंकारने (चिल्लानें) एवं
शेर के दहाडनें की आवाज सुनाई दी। अनेक बार इस आवाज को सुनने के बाद शोभासिंह ने इस
बात अपने गांव वालों को बताया।गांव वालों ने भी शाम को इस प्रकार की आवाजे अनेक
बार सुनी,जिसके बाद आवाज करने वाले सांड और शेर की खोज होने लगी।लेकिन जब खोज से
कुछ भी हासिल नहीं हुआ तब लोगों की आस्था इस टीले के प्रति लोगो की श्रद्वा बढने
लगी और लोग इस टीले को शिवलिंग के रूप में मानने लगे। इस बारे में पारा गावं के
लोग बताते है कि पहले यह टीला छोटे रूप में था। लेकिन धीरे-धीरे इसकी उंचाई और गोलाई
बढती गई। जो अब भी निरंतर जारी है। इस शिवलिंग में प्रकृति प्रदत जललहरी भी दिखाई
देती है। जो धीरे धीरे जमीन के उपर आती जा रही है।इसे प्रकृति का चमत्कार और
महादेव की महिमा नहीं तो और क्या कहेंगे।
दोस्तों भूतेश्वर महादेव की
ऊंचाई का विवरण आज से नहीं बल्कि सन 1952 में प्रकाशित कल्याण तीर्थाक जो
गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित होती है,उसके पृष्ठ क्रमांक 408 पर भी मिलता है।जहां इसकी ऊंचाई 35 फीट और व्यास 150 फीट उल्लिखित है। सन 1978 में इसकी ऊंचाई 40 फीट बताई गई थी। वहीं सन 1987 में इसकी ऊंचाई 55 फीट और 1994 में फिर से थेडोलाइट मशीन से नाप करने पर 62 फीट और उसका व्यास 290 फीट मिला।वर्तमान में इस शिवलिंग की ऊंचाई 80 फीट बताई जा रही है, जो कि इसे विश्व के सबसे बड़े प्राकृतिक शिवलिंग के रुप में दर्ज करती है।
भूतेश्वर महादेव के शिवलिंग पर एक हल्की सी दरार भी है, जिसकी वजह से कई लोग इसे
अर्धनारीश्वर का स्वरूप भी मानते हैं।अब इस मंदिर परिसर में छोटे-छोटे कई मंदिर भी
बना दिए गए हैं।
अंतत: धन्य हैं भगवान आशुतोष और धन्य है उनकी महिमा।आदि काल से भगवान की महिमा और
उनका आभास हमें आस्था से तो जोड़ता ही आ रहा है साथ ही हमारे विश्वास को और भी
मजबूत बना रहा है।
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