Thursday 7 January 2016

मुफ्ती मोहम्मद सईद : सादगी पसंद राजनेता


संदीप कुमार मिश्र: कश्मीर की सरजमीं का एक सादगी पसंद भारतीय राजनेता मुफ्ती मोहम्मद सईद।जिसके दिल में हिन्दूस्तान बसता था।तभी तो देश के एकमात्र मुस्लिम गृह मंत्री बने मुफ्ती मोहम्मद सईद।एक मंझे हुए वकील और एक सौम्य और मंझे हुए राजनीतिक खिलाडी की तरह राष्ट्रीय राजनीति और जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अपने सईद ने एक अलग मुकाम बनाया।लेकिन चंद दिनो बाद(12 जनवरी) जीवन के 80 दशक में प्रवेश करने से पहले ही शांत हो गए खामोश हो गए। मुफ्ती मोहम्मद सईद  ने दिल्ली के एम्स में अंतिम सांस ली तो देश की सियासत पल भर के लिए खामोश हो गयी।सभी सियासी पार्टियां शोक की इस घड़ी में जनाब सईद साब के परिवार के साथ थीं।होना भी यही चाहिए और लोकतंत्र की खूबसूरती भी यही है।

दरअसल दोस्तों लगभग छह दशक तक के अपने राजनीतिक करियर में सईद ताकतवर अब्दुल्ला परिवार के खिलाफ मुख्य प्रतिद्वंदी बनकर घाटी ही नहीं देश की सियासत में भी उभरे। कहते हैं कि राजनीति के खेल में हमेशा अपने पत्ते छिपाकर रखने वाले सईद अपने राजनीतिक एजेंडे के अनुरुप चलने के लिए विरोधाभासी विचारधाराओं वाले दलों के साथ भी दोस्ती में गुरेज नहीं करते थे। मुफ्ती मोहम्मद सईद के सियासी सफर में जो दो अहम पड़ाव थे वो थे सन 1984 और 2015।क्योंकि सन 1989 में सईद स्वतंत्र भारत के पहले मुस्लिम गृहमंत्री बने और और अभी चंद दिनो पहले गुजरे साल 2015 में वो बीजेपी गठबंधन से दूसरी बार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने।

दोस्तों मुफ्ती मोहम्मद सईद  ने देश के गृहमंत्री के रुप में उस समय पदभार संभाला था, जब उनके खुद के गृहराज्य में आतंकवाद अपने चरम पर था और आतंकियों ने अपना विभत्स रुप दिखाना शुरु किया था। गृहमंत्रालय में उनके इस कार्यकाल को JKLF द्वारा उनकी तीसरी बेटी रुबइया के अपहरण किए जाने के साथ जोड़कर याद किया जाता है।आपको बता दें कि आतंकियों ने रुबइया की रिहाई के बदले में अपने पांच साथियों को छोडने की मांग की थी और अपनी मांग पूरी होने पर ही रुबइया को छोडा था।कहते हैं सईद की बेटी का अपहरण और आतंकियों की रिहाई ने पहली बार भारत को एक ‘‘कमजोर देश'' के रुप में पेश किया।

शिक्षा का सफर
मुफ्ती मोहम्मद सईद का जन्म अनंतनाग जिले में बिजबेहड़ा के बाबा मोहल्ला में 12 जनवरी 1936 को हुआ था।वहीं के एक स्थानीय स्कूल से  प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद श्रीनगर के एस पी कॉलेज से सईद ने स्नातक किया।बाद में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय से कानून की एक डिग्री और अरब इतिहास में स्नातोकत्तर की डिग्री ली।

सियासत का कारवां
मुफ्ती मोहम्मद सईद ने 1950 के दशक के आखिर में जीएम सादिक की डेमोक्रेटिक नेशनल कांफ्रेंस में शामिल होकर सियासत की दुनिया में कदम रखा। सादिक ने युवा वकील मुफ्ती मोहम्मद सईद की क्षमताओं को पहचानकर उन्हें पार्टी का जिला संयोजक बनाया।जिसके बाद सईद 1962 में बिजबेहड़ा से राज्य विधानसभा में चुने गए। उन्होंने पांच साल बाद भी इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा। उन्हें सादिक ने उप मंत्री नियुक्त किया। सादिक उस समय मुख्यमंत्री थे। हालांकि मुफ्ती मोहम्मद सईद  कुछ साल बाद ही पार्टी से अलग हो गए और इंडियन नेशनल कांग्रेस ने शामिल हो गए। जो ऐसे समय में एक साहसिक लेकिन जोखिम भरा कदम था।जबकि जेल में बंद शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को अधिकतर कश्मीरियों का भारी समर्थन प्राप्त था।

एक सफल आयोजक और प्रशासक समझे जाने वाले मुफ्ती मोहम्मद सईद  ने यह सुनिश्चित किया कि कांग्रेस घाटी में न केवल अपने पैर जमाए बल्कि उन्होंने पार्टी के लिए भारी समर्थन भी पैदा किया। सईद 1972 में एक कैबिनेट मंत्री और विधान परिषद में कांग्रेस दल के नेता बने। उन्हें दो वर्ष बाद कांग्रेस की राज्य इकाई का अध्यक्ष बनाया गया। राज्य की सियासत में सईद का कद लगातार बढ़ रहा था जिसकी वजह से वो खुद को राज्य के अगले मुख्यमंत्री के रूप में भी देखने लगे थे। हालांकि राज्य के इस सर्वोच्च पद को पाने की उनकी सभी उम्मीदें उस समय धराशायी हो गईं, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अब्दुल्ला के साथ एक समझौता कर लिया और 11 साल के अंतराल के बाद मुख्यमंत्री के रूप में उनकी वापसी का मार्ग प्रशस्त कर दिया। इंदिरा का यह फैसला कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं और विशेष तौर पर सईद की मर्जी के खिलाफ था।


लेकिन आसानी से हार न मानने वाले सईद ने वर्ष 1977 के चुनाव से पहले एक तरह के सत्ता परिवर्तन की स्थित पैदा कर दी। क्योंकि कांग्रेस ने अब्दुल्ला सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था। यहां सईद का लक्ष्य चुनावों के दौरान आधिकारिक मशीनरी पर नियंत्रण रखने के लिए मुख्यमंत्री पद पर कांग्रेस के व्यक्ति को आसीन करवाना था, जो कि खुद सईद ही होते। लेकिन तत्कालीन राज्यपाल एल के झा ने राज्य में राज्यपाल शासन लगा दिया।यह पहली बार हुआ था कि जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लगा था। हालांकि बाद में सभी पांच अवसरों पर राज्यपाल शासन लागू करवाने में सईद ने एक अहम भूमिका निभाई।

अंतत: इस प्रकार से सियासत में चढ़ते उतरते दौर को मुफ्ती मोहम्मद सईद ने बड़े ही करीब से देखा था।साथ ही देश की सियासत में अपनी एक अलग पहचान बनाई थी।





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