Saturday, 6 February 2016

शांतिकुंज जहां 43 सालों से प्रज्वलित है अखंड ज्योति

संदीप कुमार मिश्र: शांतिकुंज हरिद्वार...आस्था और भक्ति का अद्भूत संगम।प्रेम,स्नेह,विश्वास और गुरु भक्ति की सच्ची पराकाष्ठा अगर आपको देखनी हो तो आप भी जरुर गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार हो आईए।मित्रों शांतिकुंज एक ऐसा आश्रम है, जहां की पावन पवित्र यज्ञशाला में पिछले 43 सालों से अखंड ज्योति लगातार प्रज्‍जवलित हो रही है।इस पावन आश्रम में नित्य प्रात: दो घंटे यज्ञ हवन होता है, और फिर लोहे के पट्टे से इसे ढक दिया जाता है।अगले दिन पुन: फिर सुबह पट्टे को हटाया जाता है, लकड़ी रखी जाती है और अग्नि स्वत: प्रज्‍जवलित हो जाती है।इस अखंड अग्नि को प्रज्वलित करने में यहां माचिस का कभी भी उपयोग नहीं किया गया।
हमारे सनातन धर्म में अखंड ज्योति या कहें कि अखंड अग्नि का विशेष महत्व है।तभी तो नवरात्र व अन्य धार्मिक समारोह में अखंड दीप प्रज्वलित किया जाता है।इतना ही नहीं संत महात्मा तो सदियों से अखंड धुनि के सामने तप करते रहे हैं।साथियों शांतिकुंज में दशकों से बारहो महीने हजारों भक्त,श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं।साथ ही ध्यान,साधना और स्वाध्याय, चिंतन के लिए भी।आपको बता दें कि शांतिकुंज में स्थित 27 कुंडीय यज्ञशाला में नित्य आहुतियां और नौ दिवसीय जप अनुष्ठान की पूणार्हुति भी की जाती है।
यहां होने वाले यज्ञ का समग्र कर्मकांड वेदोक्त मंत्रों द्वारा देवकन्याओं के स्वर में होता है।कहते हैं इन यज्ञकुंडों में प्रज्‍जवलित हो रही अग्नि सिद्ध है।जिसके सामने कहते हैं कि पवित्र हृदय से जो भी मनोकामना मांगी जाती है वो अवश्य पूरी होती है।
गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या जी इस अग्नि के संबंध में बताते हैं कि गायत्री शक्ति पीठ के संस्थापक सिद्ध महापुरुष पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी हिमालय में तप करने गए थे, तभी यह अग्नि देवात्मा हिमालय के किसी गुप्त गुहा के सिद्ध कुंड से उनके गुरुदेव सर्वेश्वरानंद जी द्वारा प्रदान की गई थी। दोस्तों गायत्री तपोभूमि की स्थापना सन् 1953 में मथुरा में की गई थी और फिर 1974-75 में शांतिकुंज हरिद्वार में इसकी पून: स्थापना हुई। गुरु श्रीराम शर्मा आचार्य जी का संपुर्ण जीवन योग साधना में ही व्यतित हुआ।लेकिन अखंड दीपक को सिद्ध करने के लिए पूज्य गुरुजी चौबीस वर्षो तक इसी सिद्धाग्नि के प्रतीक अखंड दीपक के सम्मुख ही की। जो चौबीस लाख गायत्री महामंत्र जप के चौबीस महापुरश्चण का महान अनुष्ठान है।कहते हैं गुरु जी इस तपस्या के दौरान केवल गाय के गोबर से निकले जौ से तैयार रोटी और छाछ पर निर्भर रहे थे।गुरु जी के अखंड तप,ध्यान और ज्ञान का ही परीणाम है कि आज शांतिकुंज विश्वभर में ज्ञान का प्रकाश फैला रहा है।
गायत्री शक्तिपीठ शांतिकुंज हरिद्वार के वर्तमान संचालक डॉ. पण्ड्या जी का कहना हैं कि इसी अखंड अग्नि से अग्नि लेकर देश और विदेशों में महायज्ञों की श्रृंखलाएं चल पड़ीं है।सन 1958 के सहस्रकुंडी महायज्ञ से लेकर तमिलनाडु के कन्याकुमारी तक इस सप्ताह के समापन में होने वाले गायत्री अश्वमेध महायज्ञ तक, इन सभी में इसी अग्नि का प्रयोग यज्ञकुंडों में किया गया है।
अंतत: परम पूज्य गुरु युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य जी स्वयं कहते हैं कि अखंड ज्योति हमारी भावनाओं का दर्पण है।जो हमारे विचारों को पढ़ेगा,आचरण में उतारेगा उनके जीवन में अंधकार आ ही नहीं सकता।

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