संदीप कुमार मिश्र: मेरा बेटा डाक्टर
बनेगा....मेरा इंजीनियर...मेरा जज...मेरा... मेरा... मेरा...राजा बेटा,बेटी...ऐसा ही
सपना देखती है हर भारतीय मां जब वो बच्चे को स्कूल भेजने के लिए तैयार करती है...और
यही प्रार्थना करती है कि दूनिया में उसका बच्चा नाम रौसन करे और उसके सपने को
साकार करे...।
लेकिन आज लगता है कि देश की हर मां खौफज़दा
है...बेचैन है। उसका दिल कांप जाता है...घबरा जाता है...उस मां की अजीब सी मनोदशा
हो जाती है...बेचैनी बढ़ जाती है....उसका दिमाग काम करना बंद कर देता है तक
तक.....जब तक उसके कलेजे का टुकड़ा स्कूल से घर वापस सही सलामत नहीं आ जाता..।
दरअसल उस मां की जुबान पर इसलिए अपने
लाल के लिए प्रार्थना में बुदबुदाते रहते हैं...क्योंकि उसका प्यारा सा मासूम
बच्चा स्कूल पढ़ने जो गया है।उस स्कूल में जो बहुत बड़ा है...बड़ा नाम भी
है...क्योंकि बड़ी मोटी फीस है वहां की,वहां तो जानदार,शानदार, फर्राटेदार
अंग्रेजी बोलने वाली टीचर हैं, स्कूल की सुरक्षा भी बड़ी अच्छी है।
स्कूल में बच्चे के बहुमुखी विकास की बात भी संस्था के लोग कहते हैं।फिर भी मां
डरी हुई है....ना जाने क्यों...?
आप जानते हैं क्यों...? क्योंकि राजधानी दिल्ली में रेयान
इंटरनेशनल स्कूल के वॉटर टैंक में गिरने से बच्चे दिव्यांश और इससे पहले कापसहेड़ा
के सरकारी स्कूल के सेप्टिक टैंक में गिरने से बच्चे की मौत ने देश के हर अभिभावक
को डरा दिया है।जरा सोचिए कि क्या हाल होगा दिव्यांस की मां का...क्या क्या सपने
संजो रखे होंगे उसने अपने बेटे के लिए...कितने जतन करके उसे बड़ा किया होगा....?
यही सोचकर आज हर मां बेचैन है,घबराई हुई
हैं...।जिनके छोटे बच्चे स्कूल जाते हैं। इन दिनों घर, दफ्तर, बाजार जहां भी कोई यार-दोस्त रिश्तेदार मिलता है बातचीत में स्कूल में बच्चों
की सुरक्षा पर बात निकल ही आती है।जिनके छोटे बच्चे हैं उनका तो हाल बुरा है ही
लेकिन जिनके बच्चे नहीं हैं वह लोग भी कम परेशान नहीं हैं क्योंकि देश के हर घर
में कोई ना कोई छोटा बच्चा अवश्य है और वह बच्चा स्कूल भी जाता है।जिस स्कूल में
देश के भविष्य का निर्माण होता है,आज उस स्कूल में अपना बच्चा भेजने से हर मां खौफ
खाती है।
वो बच्चे जो अपने माता-पिता ही नहीं घर
परिवार की जान होते हैं,जिनसे घर की रौनक होते हैं,जिनकी आवाज से घर-आंगन गूंजते हैं,जिनकी शरारतों से घर की
बोरियत दूर हो जाती है।उस बच्चे के लिए मां क्यों ना हौ जाए हैरान-परेशान।बच्चों में
तो सिर्फ मां की नहीं सब की जान बसती है।बच्चा किसी का भी हो उसे तकलीफ में कोई
नहीं देख सकता।कोई अनजान बच्चा भी गलती करता है तो हम उसे देख कर मुस्कुरा देते
हैं,उसे गलती ना करने की
सलाह देकर उसके गाल पर एक प्यार भरी थपकी देकर समझा देते हैं।क्योंकि बाल रुप में
हम भगवान का साक्षात्कार करते हैं।कम से कम ऐसा ही है हमारा देश भारत।
ऐसे में जरा सोचिए, क्या बीत रही होगी दिल्ली की उन दोनों मांओ पर जिन्होंने बड़े ही लाड़-प्यार
से, मान-मनुहार से, चॉकलेट, आइसक्रीम का लालच देकर अपने बच्चों को स्कूल भेजा होगा। दोनों इंतजार कर रही
होंगी अपने लाल के लौटने का क्योंकि आते ही तुतलाती जुबान में वह स्कूल की एक-एक
बात मां को बताएगा। दोस्तों की शिकायत करेगा। क्या खाया, कौन सा खेल खेला, टीचर ने कैसे उसकी तारीफ की, स्कूल में उसे मजा आया या अच्छा नहीं
लगा।तमाम बातें मां को बताएगा।सबकुछ मां को बताकर ही दम लेगा।मां के लिए कोई मतलब
ना हो उन बातों का फिर भी मां अपने बच्चे की हर बात सुनती है।
ऐसे में उन मांओं पर क्या बीत रही होगी
जिनके पास इंतजार करने का वक्त तो है लेकिन इंतजार करवाने वाला उनके जिगर का
टुकड़ा नहीं है उनका लाल नही है...।जब हमारा और आपका शरीर ये बात सुनकर सिहर उठता
है तो जरा उस मां का सोचिए...?लेकिन दोनों बच्चों में से एक की मां की ना तो कोई खबर आई और ना ही वह टीवी पर
दिखाई दीं। लेकिन सीने पर पत्थर रख दिव्यांश की मां निकल पड़ी अपने बेटे को इंसाफ
दिलाने के लिए।
सीना गर्व से चौंड़ा हो जाता है उस मां
की हिम्मत देखकर।जिसपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा लेकिन भविष्य में किसी और के लाल
के साथ ऐसा ना हो इसलिए रेयान इंटरनेशनल जैसे बड़े स्कूल के खिलाफ उस मां छेड़ दी एक
जंग।माना की स्कूल मैनेजमेंट की ताकत बड़ी है लेकिन एक मां का हौंसला उससे कहीं
ज्यादा है।
अंतत: यकिन मानिए ऐसे स्कूलों पर ताला लगा दिया जाना चाहिए जहां इतनी लापरवाही होती
हो।इतनी बेरुखी होती हो। हम सब को मिल कर ये सोचना होगा हम ऐसा क्या कर सकते हैं
कि आज के बाद जब बच्चा स्कूल जाए तो मां सुकून से घर में रह सके। उसे यह विश्वास
हो कि उसका लाल सही-सलामत घर लौट आएगा। शासन और प्रसाशन को भी सख्ती दिखानी होगी
कि चाहे जैसे भी अब किसी मां का लाल यूं ही नहीं उससे अलग होगा...।तब जाकर देश का
भला हो पाएगा।
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