शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्॥
हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्॥2॥
संदीप कुमार मिश्र: दोस्तों हमारी भारतीय
संस्कृति में बसंत पंचमी को स्वयंसिद्ध मुहूर्त कहा गया है।कहते हैं बसंत पंचमी के
दिन किसी भी शुभ मुहूर्त के लिए तिथि, समय, वार और नक्षत्र आदि
देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती। हमारे सनातन धर्म में बसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता
है।बसंत पंचमी के पावन पर्व को बसंत ऋतु के आगमन का प्रतिक माना जाता है। प्रकृति
के सौंदर्य में हमें बसंत पंचमी के दिन अनुपम छटा के दर्शन होते हैं।एक तरफ जहां
वृक्षों से पुराने पत्ते झड़ जाते हैं तो वहीं बसंत के आगमन पर पेंड़ों में नयी
कोपलों का आना शुरु हो जाता है।
बसंत पंचमी के अलावा भारतीय संस्कृति
में दशहरा, चैत्र के नवरात्र, देवउठनी एकादशी, जानकी नवमी, फुलेरा दूज, रामनवमी, भड़ला नवमी और अक्षय तृतीय के मुहूर्त अपने आप में स्वयंसिद्ध माने जाते हैं।
दरअसल मित्रों माघ के पावन मास की शुक्ल
पंचमी को बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। देशभर में बसंत पंचमी का त्यौहार बडे
ही धूमधाम से मनाया जाता है। हिन्दू सनातन धर्म में वसंत पंचमी के त्योहार का
विशेष महत्व कहा गया है। इसी दिन विद्या की देवी माता सरस्वती की पूजा अर्चना का
विधान बताया गया है।बसंत पंचमी की पूजा पूर्वी भारत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ
की जाती है। इस दिन स्त्रियां पीले वस्त्र धारण कर पूजा-अर्चना करती हैं। आपको बता
दें कि हमारे हिन्दू धर्म में पूरे साल को जिन छः मौसमों में बांटा गया है, उनमें वसंत हर किसी के लिए अतिप्रिय है।
पावन बसंत का त्योहार हमारे प्रकृति प्रेम
को दर्शाता है। यौवन हमारे जीवन का बसंत है तो बसंत इस सृष्टि का यौवन है।लीलाधारी
भगवान श्री कृष्ण ने भी गीता में ‘ऋतूनां कुसुमाकरः’ कहकर ऋतुराज बसंत को अपनी विभूति माना है। शास्त्रों एवं पुराणों कथाओं के
अनुसार बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा को लेकर एक बहुत ही रोचक कथा हमारे धर्म
शास्त्रों में बतायी गई है-
बसंत पंचमी कथा
कहते है जब भगवान विष्णु की आदेशानुसार
प्रजापति ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना करने के बाद संसार को देखा तो उन्हें चारों
ओर सुनसान निर्जन ही सब कुछ नजर आया।जिसके बाद उदासी से समस्त वातावरण मूक सा हो
गया था। जैसे किसी के पास कहने के लिए कोई शब्द ही ना हो। यह देखकर ब्रह्माजी ने
उदासी तथा मलिनता को दूर करने के लिए अपने कमंडल से जल लेकर छिड़का।जिसके बाद उन
जलकणों के पेड़ों पर पड़ते ही एक अद्भूत शक्ति प्रकट हुई जो दोनों हाथों से वीणा
बजा रही थी तथा दो हाथों में पुस्तक और माला धारण की हुई जीवों को वाणी दान की। इसलिये उस देवी को सरस्वती कहा गया। यह देवी विद्या, बुद्धि को देने वाली है।तभी बसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा भी
की जाती है। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो बसंत पंचमी का दूसरा नाम सरस्वती पूजा
भी है।
बसंत पंचमी के दिन विशेष रूप से मां
सरस्वती की पूजा होती है। मंदिरों में भगवान की प्रतिमा का बसंती वस्त्रों और
पुष्पों से श्रंगार किया जाता है तथा गाने-बजाने के साथ महोत्सव मनाया जाता है। यह
ऋतुराज बसंत के आगमन का प्रथम दिन माना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण इस उत्सव के
अधिदेवता हैं। इसीलिए ब्रज प्रदेश में राधा तथा कृष्ण का आनंद-विनोद बड़ी धूमधाम से
मनाया जाता है। ब्रज-वृंदावन-बरसानामें वसंत पंचमी के त्योहार के साथ ही होली के रंग गुलाल उड़ने
भी शुरू हो जाते है।
वसंत पंचमी के अवसर पर ब्रज के सभी
मंदिरों में ठाकुरजी के विशेष श्रृंगार, उत्सव एवं अनूठे दर्शनों का आयोजन किया जाता है। वृन्दावन के विश्व प्रसिद्ध
बांकेबिहारी मंदिर में ठाकुरजी के चरण दर्शन करने का श्रद्धालूओ को अवसर प्राप्त
होता है जो वर्ष में सिर्फ एक ही दिन संभव हो पाते हैं।
वसंत पंचमी के दिन खास तौर पर लोगों को
अपने घर में सरस्वती यंत्र स्थापित करना चाहिये, तथा मां सरस्वती के इस
विशेष मंत्र का 108 बार जप करना चाहिये।
मंत्र - ‘ऊँ ऐं महासरस्वत्यै नमः’
अंतत: होली का आरंभ भी बसंत पंचमी से ही होता है। इस दिन पहली बार गुलाल उड़ाते हैं
और बसंती वस्त्र धारण कर नवीन उत्साह और प्रसन्नता के साथ उत्साह और भाव प्रकट किए
जाते हैं।
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