संदीप कुमार मिश्र: देश उस वीर जवान को
नमन करता है,जिसके फौलादी हौंसलों के आगे बर्फ की कठोर चट्टाने भी उसके बुलंद हौंसले
को हिला ना सकी।और ऐसे भी जवान मरते नहीं, शहीद होते हैं। सियाचिन का हमारा शेर लांस नायक हनमनथप्पा तो मरा नही, अमर हो
गए।अब तो जो भी जवान सियचिन जायेगा उसे
अपने लांस नायक की बहादुरी, जज्बे की गौरव और वीरगाथा
सुनाई जायेगा। तुम सच्चे शेर थे, पहले बर्फ से और फिर
आखिरी दम तक मौत से लड़ते रहे, यही तो होती है एक वीर
सैनिक की कहानी।हमारे देश के असली हीरो तो तुम ही हो लांस नायक हनमनथप्पा
कोप्पाड।तुम्हारा देश तुम्हे नमन करता है,सलाम करता है,श्रद्धांजलि अर्पित करता
है।
दरअसल सियाचिन ग्लेशियर से चमत्कारिक
रूप से जीवित निकाले गये बहादुर सैनिक लांस नायक हनमनथप्पा कोप्पाड का लंबे संधर्ष
के बाद निधन हो गया।आज यानी 11 फरवरी को सुबह 11 बजकर 45 मिनट पर इस हिमवीर ने अंतिम सांस ली।’ मद्रास रेजिमेंट के 33 वर्षीय सैनिक लांस नायक हनमनथप्पा के परिवार में उनकी पत्नी महादेवी अशोक
बिलेबल और दो वर्ष की एक बेटी नेत्रा कोप्पाड है। कर्नाटक के धारवाड़ के बेटादूर
गांव के रहने वाले कोप्पाड 13 वर्ष पहले सेना में अपनी सेवाएं देना
शुरु किए थे।
हनमनथप्पा को नौ फरवरी को आर्मी रिसर्च
ऐंड रेफरल हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। आपको याद होगा कि तीन फरवरी को 19,600 फुट की उंचाई पर सियाचिन में हिमस्खलन के बाद बर्फ में दबने के बावजूद हनमनथप्पा
छह दिन तक मौत को मात देते रहे थे। उन्हें ‘चमत्कारी मानव’ कहा जाने लगा था।अंतिम समय में हनमनथप्पा के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया
था। उनके निधन की वजह मल्टी ऑर्गन फेलियर बताई जा रही है।
लांस नायक हनमनथप्पा के संबंध में सेना
के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि अपनी 13 साल की कुल सेवा में से 10 साल कठिन और चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में उन्होने सेवा दी थी।हमेशा हनमनथप्पा
ने अपने लिए चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों को ही चुना। हनुमनथप्पा ने महोर (जम्मू कश्मीर)
में 2003 से 2006 के बीच काम किया, जहां वह आतंकवाद निरोधी अभियान में
सक्रिय रूप से शामिल थे। इसी तरह एक बार फिर 2008 से 2010 के बीच स्वेच्छा से 54 वीं राष्ट्रीय राइफल्स में सेवा देने की बात कही, जहां उन्होंने आतंकवाद से लड़ने में अदम्य साहस और वीरता दिखाई। हनमनथप्पा 2010 से 2012 के बीच पूर्वोत्तर में स्वेच्छा से सेवा देते रहे, जहां वह नेशनल डेमोक्रेटिक फंट्र ऑफ बोडोलैंड और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ
असम के खिलाफ सफल अभियानों में सक्रियता से हिस्सा लिया।
आपको बता दें कि हनुमनथप्पा अगस्त 2015 से सियाचिन ग्लेशियर के बेहद उंचाई वाले क्षेत्रों में सेवा दे रहे थे और
दिसंबर 2015 से 19600 फुट की उंचाई पर सर्वाधिक उंची चौकियों में से एक पर अपनी
तैनाती को चुना।जहां का तापमान शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस नीचे और जहां पर 100
किलोमीटर प्रति घंटे तक हवा चलती है।जहां रहना खासा मुश्किल भरा होता है।
देश के इस वीर सपूत के निधन से देशभर
में शोक की लहर दौड़ पड़ी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हनुमनथप्पा
हमें ‘उदास और व्यथित’ छोड़ गए हैं। सियाचिन हिमनद में आए हिमस्खलन में बर्फ की मोटी परत के नीचे दबे
हनुमनथप्पा को छह दिन बाद जीवित बाहर निकाला गया था।लांस नायक हनुमनथप्पा की आत्मा
को शांति मिले। आपके अंदर जो सैनिक था वह अमर है। हमें गर्व है कि आप जैसे शहीदों
ने भारत की सेवा की।’’
अंतत: लांस नायक हनमनथप्पा ने अदम्य साहस, बहादुरी और निष्ठा दिखाई जो हमारी
सेना की विशिष्ट पहचान है।देश आपको सदैव याद रखेगा।कहते हैं कुछ ऐसा करके दिखा कि
लोग तुम्हे याद रखें कल खेल में हम हों ना हो गर्दिश में तारे रहेंगे सदा।
लांस
नायक हनमनथप्पा को कोटिश: नमन।जय हिन्द जय भारत।।
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