संदीप कुमार मिश्र: दोस्तों एक बार फिर तैयार हो जाईए लोकतंत्र के चुनावी समर का आनंद लेने के
लिए।केंद्र की सत्ता पर मोदी सरकार है तो जाहिर है सभी पार्टियों का मुकाबला भी
बीजेपी से ही होना है...सवाल बीजेपी की साख का है क्योंकि दिल्ली और बिहार में
पार्टी का जो हश्र हुआ उससे बीजेपी भविष्य में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती।क्योंकि
चुनाव तो राज्यों का है लेकिन इससे दिशा तय होगी 2019 के आम चुनाव की।
दरअसल चुनाव के लिहाज सबसे पहले असम और
पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव होने हैं जो तकरीबन आस-पास ही होंगे।इस लिहाज से
दोनों जगहों पर बीजेपी न तो बिहार जैसे एक्सपेरिमेंट करना चाहेगी और न ही दिल्ली
जैसी कोई गलती दोहराना।यही वजह है कि असम में भारतीय जनता पार्टी ने सर्वानंद
सोनवाल को असम का सीएम कैंडिडेट बना दिया है,अब सवाल बंगाल का है।
असम और बंगाल के हालात में फर्क
दोस्तों बीजेपी के लिए बड़ा सवाल ये कि असम
और बंगाल के हालात में खासा अंतर है।एक तरफ असम में जहां तरुण गोगोई में दम नहीं
रहने की बात कही जाती है वहीं बंगाल में ममता बनर्जी की हालत अभी खासा ठीक बताई जा
रही है।असम में बीजेपी के लिए संभावनाएं नजर आती है लेकिन फिर भी असम में
बदरुद्दीन अजमल फिलहाल मेन फैक्टर बने हुए हैं।ये भी तकरीबन साफ है कि जिसे
बदरुद्दीन का सपोर्ट मिलेगा उसका पलड़ा भारी पड़ सकता है। असम गण परिषद से लेकर
बदरुद्दीन तक, बीजेपी सभी के संपर्क में है। हालांकि, बदरुद्दीन के कांग्रेस के साथ
महागठबंधन में शामिल होने की संभावनाएं इसलिए बढ़ती नजर आ रही हैं क्योंकि नीतीश
कुमार के सलाहकार प्रशांत किशोर भी खासा दिलचस्पी लेते नजर आ रहे हैं।
बीजेपी के लिए अच्छी बात असम में ये है
कि उसके चुनाव प्रभारी हेमंत बिस्वा शर्मा जो हाल तक कांग्रेस के नेता थे वो अब
अपनी नई पार्टी बीजेपी के पक्ष में कह रहे हैं कि असम में मूल समस्या दाल-रोटी
नहीं बल्कि अस्मिता का है, जो सिर्फ बीजेपी ही दिला सकती है।खैर बीजेपी पर वोटों
के ध्रुवीकरण की तोहमत हमेशा लगती रही है, लेकिन असम में बीजेपी के सीएम
कैंडिडेट सर्बानंद सोनवाल-मोदी के सबका साथ सबका विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाते
हुए लोगों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं।
वहीं बात करें पश्चिम बंगाल की तो
बीजेपी अपने मुकाबले ममता और कांग्रेस-लेफ्ट को पहले से कमजोर देखती नजर आ रही है।
चुनावी गणित की बात करें तो बीजेपी, कांग्रेस और लेफ्ट के बीच गठबंधन
में खुद का फायदा देख रही है।बीजेपी के रणनीतिकार मान कर चल रहे हैं कि दोनों के
कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर मन से कतई नहीं जुड़े हैं।जबकि कहीं ना कहीं बीजेपी को ये भी समझना होगा कि बिहार में भी पहले उसे ऐसा ही लगा था।
इस लिहाज से बीजेपी की कोशिश जरुर होगी
कि ममता को किसी भी तरह से कठघरे में खड़ा कर एक त्रिकोण जैसी स्थिति बना दी जाए।जिसमें
बीजेपी को फिट होने का अवसर निकल आए। यही वजह है कि बीजेपी के विजय रथ को बढ़ाने
के लिए कैलाश विजयवर्गीय हों या अमित शाह ममता सरकार को सीधेतौर पर निशाने पर ले
रहे हैं साथ ही अन्य बड़े नेता भी।
बंगाल में बीजेपी का मुख्यमंत्री का
चेहरा कौन..?
ऐसे में आप सोच रहे होंगे कि बंगाल में सीएम
कैंडिडेट कौन...?लेकिन इससे पहले कुछ आंकड़ों पर गौर करते हैं।दरअसल बीजेपी को आम चुनाव 2014 के
लोक सभा चुनाव में 17 फीसदी वोट जरूर मिले थे, लेकिन सीटें महज दो ही मिलीं।बाद
में उसने एक विधानसभा चुनाव भी जीता लेकिन लोक सभा उपचुनाव में हार का सामना करना
पड़ा।
रूपा गांगुली को बीजेपी ने बंगाल महिला
शाखा का प्रमुख बनाया है।दुसरी तरफ बीजेपी की पश्चिम बंगाल इकाई के
प्रमुख दिलीप घोष भी खासे सक्रियता दिखा रहे हैं।कहा जा रहा है कि घोष ने संगठन
में अपने हिसाब से कई बड़े बदलाव किए हैं और आरएसएस के करीबी भी हैं। बीजेपी
महासचिव कैलाश विजयबर्गीय का कहना हैं कि, "संगठन का ही कोई
व्यक्ति सीएम होगा, लेकिन वह जाति पर आधारित नहीं होगा।"
वहीं चुनावी समर में अब बीजेपी का दामन नेताजी
सुभाष चंद्र बोस के प्रपौत्र चंद्र कुमार बोस ने भी थाम लिया है। नेताजी से जुड़े
दस्तावेजों के सार्वजनिक किये जाने में उनकी भी अहम भूमिका रही है,और खास मौकों पर
उन्हें मौजूद भी देखा गया। उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी भी बताया
जाता है।मतलब लड़ाई बंगाल में भी दिलचस्प देखने को मिलेगी।
क्योंकि चंद्र कुमार बोस का साथ मिलने
से बीजेपी को लगता है कि ममता बनर्जी और अब तक लेफ्ट से जुड़े नेताजी के समर्थकों
का एक बड़ा तबका बीजेपी के साथ आ जाएगा। बहरहाल नेताजी की फाइलों से अब तक कोई खास
बातें भले निकलकर सामने ना आई हो लेकिन पश्चिम बंगाल चुनाव में
ये एक बड़ा फैक्टर जरूर होगा।
अंतत: देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी सीएम चेहरा लाती है या
फिर मोदी के विकास के एजेंडे पर चुनाव लड़ती है।चुनाव में समय है,बीजेपी बंगाल की
जनता की नब्ज भी टटोलने की कोशिश में होगी कि जीत कैसे सुनिश्चित होगी....चेहरे से
या विकास के एजेंडे से।
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