Thursday 11 February 2016

बाबा हरभजन शहीद सैनिक होते हुए भी कर रहे हैं देश सेवा !

संदीप कुमार मिश्र: क्या आज के समय में ऐसा संभव है कि कोई आत्म हर पल आपके साथ रहती हो...और समय समय पर आपके जीवन में आने वाले खतरे से आपको आगाह करती हो। आप कहेंगे शायद नहीं...क्योंकि विज्ञान इसे नहीं मानता।वहीं सियाचिन में लांस नायक हनुमंथप्‍पा के जीवित बच जाने को आप क्या कहेंगे..? क्या हनुमान जी ने इस जवान को बचाया..?
दरअसल ये बात हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हमारे देश के एक शहीद की कहानी यही बयां करती है,सीमा पर हमारे देश के सजग प्रहरी उस शहीद जवान को भगवान की तरह पूजते हैं। क्योंकि ये वीर शहीद जवान हमारे सैनिकों को सीमा पर होने वाले किसी भी खतरे से निपटने के लिए तैयार करता है।
दोस्तों हमारे प्रशासनिक अमले हों या फिर तीनो सेनाओं(जल,थल,वायु) में इस तरह के अंधविश्वास की कोई जगह नहीं होती...लेकिन आपको बता दें कि ये कहानी है भारतीय सेना के विश्वास की, जो वास्तविक होकर भी अविश्वसनीय है।जिसपर आपको भी यकीन करना ही होगा।
हमारी भारतीय सेना के जवानो की माने तो एक सैनिक, जो मरणोपरांत भी अपना काम पूरी इमानदारी और चौकन्ना होकर कर रहा है।शहीद होने के बाद भी वो सेना में कार्यरत है,इतना ही नहीं समय-समय पर उसका प्रमोशन भी होता है।दरअसल ये करिश्माई दास्तान है बाबा हरभजन सिंह की।जिनका जन्म 30 अगस्त 1946 को हुआ था और जो 9 फरवरी 1966 को भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे।और 1968 में जो 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम में कार्यरत थे।लेकिन 4 अक्टूबर 1968 को खच्चरों का काफिला ले जाते वक्त बाबा हरभजन सिंह का पूर्वी सिक्किम के नाथू ला पास के नजदीक पैर फिसल जाने और लंबी खतरनाकर घाटी में गिरने से असमय काल के गाल में समा गए।
दोस्तों कहते हैं कि तेज पानी के बहाव ने बाबा के शरीर को बहाकर 2 किलोमीटर दूर तक ले गया।इस घटना के बाद बाबा अपने संगी साथी सैनिक के सपने में आए और अपने मृत शरीर के बारे में जानकारी दी।मजे की बात देखिए की जब सेना के जवानो ने खोजबीन शुरु की तो बाबा हरभजन सिंह का पार्थिव शरीर उसी स्थान पर मिला जहां बाबा ने बताया था।बाबा ने अपने दोस्तों से सपने में ही इच्छा जाहिर की थी कि इनकी एक समाधी बनाई जाए।बाबा का  सम्मान करते हुए एक समाधी भी बनाई गई।
समय बदला...लेकिन विश्वास अडिग रहा।आज इस जगह को लेकर लोगों की आस्था और श्रद्धा ही है कि उनकी सुविधाओं को ध्यान में रखकर हमारी भारतीय सेना ने 1982 में उनकी समाधि को 9 किलोमीटर नीचे बनवाया दिया, जिसे अब बाबा हरभजन मंदिर के नाम से लोग जानते है। साथियों इस जगह पर प्रत्येक वर्ष हजारों श्रद्दालू दर्शन करने आते हैं।बाबा की इस समाधी के बारे में मान्यता है कि इस जगह पर पानी की बोतल को आप कुछ दिन रख दें तो उसमें अद्भूत चमत्कारिक गुण आ जाते हैं,और इस पानी को 21 दिन पीने से लोग रोगों मुक्त हो जाते हैं।
मरणोपरांत भी कहा जाता है कि बाबा नाथु ला पर चीन सेना द्वारा हो रही सभी गतिविधियों की सुचना अपने मित्रों को सपनों में देते थे, जो कि सदैव सच साबित होती रही थीं।बाबा हरभजन सिंह को नाथू ला का हीरो भी कहा जाता है।इसी प्रकार के अनगिनत तथ्यों के आधार पर बाबा को मरणोपरांत भी भारतीय सेना की सेवा करने में रखा गया। 48 साल बाद भी बाबा हरभजन सिंह की आत्मा भारतीय सेना में अपना पूरी निष्ठा से कर्तव्य निभा रही है।

आपको बता दें कि बाबा के इस चमत्कारी मंदिर उनके जूते और अन्य सामान रखे गए हैं। सेना के जवान बाबा के मंदिर की पहरेदारी करते हैं,और इसी क्रम में सेना के जवान की तरह नित्य उनके जूते पॉलिश, वर्दी साफ करना,और बिस्तर भी लगाते हैं।मंदिर में तैनात सिपाहियों का कहना है कि साफ किए हुए जूतों पर कीचड़ लगी होती है,बिस्तर पर सिलवटें देखी जाती हैं। इतना ही नहीं दोस्तों बाबा की आत्मा से जुड़ी बातें चीन की सेना भी बताती है।यहां तक कि चीनी सिपाहियों ने भी बाबा को घोड़े पर सवार होकर सेना के जवान की तरह रात में गश्त करने की बात कही है। दोनो देश के लोगों का यकिन ही तो है कि आज भी दोनों देशों की हर फ्लैग मीटिंग पर एक कुर्सी बाबा हरभजन के नाम की भी रखी जाती है।जो उनके होने का सदैव आभास कराती है।

हमारे देश के अन्य सैनिकों की तरह ही बाबा को भी हर महीने वेतन दिया जाता है।कहते हैं सेना के पेरोल में आज भी बाबा का नाम लिखा हुआ है और नियमानुसार बाबा की प्रमोशन भी होता है।अब तो बाबा सिपाही से कैप्टन के पद पर आ चुके हैं।हर साल बाबा को 15 सितंबर से 15 नवंबर तक दो महीने की छुट्टी भी दी जाती थीं और बड़ी श्रद्धा के साथ स्थानीय लोग और सैनिक एक जुलुस के रूप में उनकी वर्दी, टोपी, जूते और साल भर का वेतन दो सैनिकों के साथ, सैनिक गाड़ी में नाथुला से न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन लाते थे और वहां से डिब्रूगढ़ अमृतसर एक्सप्रेस से उन्हें जालंधर (पंजाब) लाया जाता।गाड़ी में बाबा के नाम का टिकट भी बुक किया जाता था।यहां से सेना की गाड़ी उन्हें उनके गांव तक छोडऩे जाती थी। गांव पहुंचने पर बाबा का सामान उनके मां को सौंप दिया जाता था।और फिर उसी ट्रेन से उसी आस्था और सम्मान के साथ उनके समाधि स्थल वापस लाया जाता।लेकिन विगत कुछ वर्षों से इस आस्था को अंधविश्वास कहा जाने लगा, और यात्रा बंद कर दी गई।

अंतत: अब आप इसे आस्था कहें या अंधविश्वास।लेकिन जो विश्वास हमारे भारतीय सैनिकों को शक्ति की अनुभूति कराती है वो हमारे लिए किसी आस्था से कम नहीं है।


।।बाबा हरभजन सिंह को नमन।।।जय हिन्द,जय भारत।।

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