Saturday, 27 February 2016

महिषासुर पर भी संसद में महाभारत जरुरी है क्या...?

संदीप कुमार मिश्र:  कहते हैं विवाद बढ़ाने के लिए किसी विषय की जरुरत नहीं होती,कुछ भी बोल दिजिए,कैसे भी बोल दिजिए...क्योंकि विषयांतर होकर बोलने के लिए किसी सार्थक मुद्दे की जरुरत नहीं होती।ध्यान भटकाने के लिए किसी की भी भावना को आघात पहुंचाया जा सकता है ,ठेस पहुंचाया जा सकता है।ऐसे भी कहते हैं कि हमारे देश में अभिव्यक्ति की आजादी है! संविधान में अधिकार मिला हुआ है कुछ भी बोलने का...जिसका परिणाम है किसी गांव दिहात...जंगल कंदराओं को तो छोड़ ही दिजिए...देश की राजधानी दिल्ली में ही देश विरोधी नारे लगाए जाते हैं...और अफजल गुरु जैसे देशद्रोहीयों का समर्थन किया जाता है...क्योंकि अभिव्यक्ति की आजादी जो है !अब साब नारों की सियासत और तथाकथित बुद्धिजिवीयों को कौन कहे कि राम...कृष्ण और परमहंस की धरती पर आद्य शक्ति जगत जननी मां जगदम्बा पर आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया जाएगा तो हंगामा तो होगा ही...।
दरअसल संसद में जिस प्रकार से मानव संसाधन विकास मंत्री ने तथाकथित बुद्धीजिवियों के विश्वविद्यालय जेएनयू में अतित में हुए महिषासुर और माता दुर्गा की चर्चा को उछाला,वो निश्चित तौर पर ठीक नहीं था...लेकिन...लेकिन...संदर्भ...प्रसंग और व्याख्या के नजरिये से देंखें तो जिस प्रकार से कांग्रेस और लेफ्ट की पंगु मानसिकता से संसद और देश का समय बर्बाद हो रहा है,कारण चाहे जेएनयू में लगे देशविरोधी नारे हों या फिर रोहित बेमूला का मुद्दा हो...उसमें व्याख्या करना आवश्यक तो था...लेकिन कहने के और तरीकों को तलाशा जा सकता था...शायद यही वजह है संसद में हुई इस बहस से असम और बंगाल में होने वाले चुनाव की बु आ रही है...!
अब साब हमारे मीडिया को तो टीआरपी चाहिए...सो संसद की इस बहस ने उन्हें मुद्दा दे दिया... अपनी बहस से हमारे एंकर और पत्रकार बंधूओं ने महिषासुर का गुणगान और मां दुर्गा पर खुब चर्चा की...उदाहरण भी ना जाने कहां कहां से लेकर आए।खुब गुत्थमगुत्थी हुई...लेकिन असल सवाल या मुद्दा क्या है..? इस पर ना तो किसी ने चर्चा की ना ही सवाल पूछा गया...।
सवाल ये उठता है कि मां दुर्गा पर ऐसी चर्चा क्यों ? वहीं महिषासुर को राक्षस कहकर संबोधित क्यों किया जाता है ? जहां तक मैने समझने का प्रयास किया है कि हमारे धर्म ग्रंथ,सनातन संस्कृति... अच्छाईयों के उत्थान और बुराईयों के पतन की बातें बताती है....समाज को जोड़ने का ही कार्य करती हैं...मानवता की संवाहक है हमारी सनातन संस्कृति...कहने को तो रावण प्रकांड पंडित था,जिसने बुराई का साथ दिया और उसका पतन हुआ और धर्म की स्थापना हुई...ठीक उसी प्रकार जन कल्याण के लिए माता दुर्गा ने महिषासुर का वध किया।कहने का मतलब है कि समाज में सर्व धर्म समभाव की भावना को बनाए रखने का संदेश ही हमारे शास्त्र और पुराण देते हैं...जिनकी तुलना इतिहास से नहीं की जा सकती..और वर्तमान के तथाकथित बुद्धीजिवियों के कुतर्कों से तो कतई नहीं की जा सकती...।
जेएनयू पर हो रहे महासंग्राम में संसद से लेकर सड़क तक उबाल है।जो उबाल अब लगता है कि सरकार बनाम अन्य की लड़ाई बन गई है।लेकिन मूल सवाल यही है कि क्या संसद में अब यही होगा ? इसी प्रकार से हमारे सियासतदां क्या अनर्गल की बहस करके समय और संसद को बरबाद करते रहेंगे...क्या सत्ता का मोह अब इस कदर हमारे जन प्रतिनिधियों पर हावी हो गया है कि सत्ता पाने की जल्दबाजी में हम देश के बुनियादी मुद्दे जैसे-गरीबी,भुखमरी,बेरोजगारी, भ्रस्टाचार को भुलते जा रहे हैं,देश के विकास की बात कम हो रही है,तमाम जरुरी बिल ठंडे बस्ते में पड़े हुए हैं...और संसद में हंगामा है कि थमने का नाम नहीं ले रहा है।क्या ऐसे ही चलेगा देश ? ऐसे ही होगा राष्ट्र निर्माण ?
अंतत: जरुरत है आस्था को सियासत से परे रखा जाए और देशहित और विकास के पहिए को आगे बढ़ाया जाए...विकास एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा समाज में फैली कुरीतियों,बुराईयों को दूर किया जा सकता है।और इसी विकास की रुपरेखा हमारी संसद के माध्यम से हमारे सियासतदां बनाते और बढ़ाते हैं...अब आलोचना करने के लिए आलोचना बंद की जानी चाहिए, सकारात्मक परिणाम निकले इस लिए चर्चा की जाए।संसद में हो-हंगामा करके समय और जनता की गाढ़ी कमाई को बर्बाद ना किया जाए...सार्थक चर्चा और परिचर्चा की जाए...। 
   

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