संदीप कुमार मिश्र: देश विकास और उन्नति के नए-नए किर्तिमान स्थापित कर रहा है।जो तभी संभव हो पा
रहा है जब महिलाएं पुरुषों संग कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रही है।कहना गलत नहीं
होगा कि समय के साथ महिलाओं ने अपनी शानदार छवि का निर्माण किया है। चूल्हा-चौका
तक सीमित रहने वाली नारी अब अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो गई है।हमेशा डरी
सहमी रहने वाली और सिसक-सिसक कर रोने वाली नारी जिसे अबला कहा जाता था वोअब सबल
होकर अपनी शक्ति को पहचानने लगी हैं।जिससे एक सशक्त परिवार,समाज और देश का निर्माण
रहा है।
दरअसल महिलाएं आज बेहतर
तरिके से न केवल अपने कुटुंब को संभाल रही हैं, बल्कि आर्थिक रूप से परिवार को
मजबूत भी कर रही हैं। लेकिन आज भी कभी कभी अफसोस होता है कि महिलाओं को स्वतंत्रता
तो मिल गई, किंतु आज भी उसे वह सुरक्षा मुहैया नहीं कराई जा सकी, जिसकी वह वास्तविक हकदार है।कहना गलत नहीं होगा कि नारी ना केवल सृष्टि का निर्माण
और विस्तार करती हैं, बल्कि हमारे समाज को सच का आईना भी दिखाती हैं।देश की सीमा
पर खड़े देश के सच्चे प्रहरी तैयार करती है नारी तो कभी खुद हथियार लेकर खड़ी हो
जाती है नारी।ताकि देश की अस्मिता पर आंच ना आ सके।
बेहद शर्म और अफसोस तो तब होता है कि
त्यैग और सहनशीलता की देवी नारी को आज भी हमारा समाज सृष्टि में आने से रोकता है
और गर्भ में ही उसकी हत्या कर महापाप का भागी बन जाता है।लड़के की चाह में इस
जघन्य कृत्य को अंजाम देने वालों को कौन समझाए कि जब बेटी ही नहीं रहेगी, तो बेटा कहां से पाओगे।भ्रूण हत्या, बलात्कार और दहेज उत्पीड़न हमारे
समाज का वह कटु सच है, जो हमेशा हमें शर्मिंदा करता है।जिसपर विराम लगाने की जन जन को सार्थक प्रयास
करना चाहिए।
जरा सोचिए कि क्या महिलाएं केवल उपभोग
की वस्तु मात्र हैं ? जी नहीं...कतई नहीं।आप किसी भी क्षेत्र को देखें...चाहे वो आज की राजनीति, फिल्म, फैशन, खेल जगत, मीडिया, यूनिवर्सिटी हो..हर जगह महिलाएं पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर निरंतर आगे
बढ़ रही हैं।जमीं से लेकर चांद तक अपना परचम लहरा रही हैं हमारे देश की महिलाएं।
आज महिलाएं जिस तरह से एक के बाद एक
उपलब्धि अर्जित कर रही हैं,वो हमारे देश के लिए गर्व की
बात है।आज हम 21वीं सदी में जी रहे हैं,और मंगल तक पहुंच गए हैं।देश ही नहीं विदेशी सरजमीं पर भी महिलाएं अपना लोहा मनवा
चुकी है। लेकिन इन सबके बावजूद हम अपने समाज की सोच नहीं बदल पाए हैं और आज भी महिलाओं महज तीसरी
दुनिया समझते हैं।
अंतत: हम सोच बदलें निश्चित रुप से देश
बदलेगा....सेविका को दोस्त बनाएं...मार्गदर्शक बनाएं... आगे बढ़ने के लिए
प्रोत्साहित करें..यकिन मानिए आपकी उम्मीदों से आगे बढ़कर आपकी तकदीर संवारने में
महिलाएं हर संभव आपके साथ रहेंगी। महिला दिवस पर एक संकल्प तो हम ले ही सकते हैं
कि महिलाओं को हम आजादी दें...स्वतंत्र निर्णय लेने के लिए....अपने गर्भ में पल
रहे बेटी को जन्म देने लिए...अपना हक मांगने और पाने के लिए...निर्भिक होकर अपने
देश में हर जगह आने जाने के लिए...पढ़ने के लिए,पढ़ाने के लिए...।राष्ट्र के
निर्माण के लिए जरुरी है कि यत्र
नार्यस्तु पुज्यते,तत्र रमंते देवता के सिद्धांत को सम्मान दिया जाय...प्रणाम किया
जाए...वंदन किया जाए...।
Hsyansysba
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