संदीप कुमार मिश्र: राष्ट्रभक्ति,देशभक्ति किसी भी समुदाय और संगठन में होना नितांत आवश्यक
है।क्योंकि किसी भी देश की उन्नति और विकास का पैमान इससे अलग नहीं हो सकता।हम बात
कर रहे हैं विश्व के सबसे बड़े संगठन यानि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जो 91 साल का हो चुका है।ये ऐसा इकलौता संगठन है जिसका उद्धेश्य और भाव सिर्फ और
सिर्फ मानव सेवा और देशभक्ति है।सन 1925 में विजयादशमी यानि दशहरे के दिन
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी।जो आज
विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है।
दरअसल ये इतनी बड़ी विड़ंबना है कि जो
संगठन देश भक्ति से ओतप्रोत है उसे हमारे ही देश में ना जाने किन किन नामों से
संबोधित किया जाता रहा है।जी हां सांप्रदायिक हिंदूवादी से लेकर फ़ासीवादी तक ना जाने
किन किन आलोचनाओं का सामना करते हुए भी अपनी कर्तव्यपरायणता बनाते हुए संघ ने
आलोचनाओं को नजरअंदाज कर कईयों दशक से लगातार मानवता की रक्षा की और निरंतर कर रहे
हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया में
शायद ही किसी संगठन की इतनी आलोचना सहनी पड़ी होगी। आलोचना और विद्वेश भी ऐसा
जिसका कोई आधार ही ना हो। इस बात में कोई शक सुबहा नहीं कि आजादी के साठ दशक बाद
भी अपनी सियासी गोटीयां सेंकने के लिए व समाज को बांटने के लिए कई लोग संघ के
संबंध में दुष्प्रचार करते रहते हैं।देश को बांटने वाले ऐसे लोगों को
पता ही नहीं कि देश की संबृद्धी और विकास के लिए RSS ने सदैव मानवता की रक्षा के वंदनिय कार्य किए हैं।
दरअसल संघ की आलोचना करते वक्त वो लोग
भूल जाते हैं कि संघ के समर्पित स्वयंसेवकों ने अक्टूबर 1947 से ही कश्मीर सीमा पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर बगैर किसी प्रशिक्षण
के लगातार नज़र रखी।यह काम न नेहरू-माउंटबेटन सरकार कर रही थी, न हरिसिंह सरकार।उसी समय, जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने
कश्मीर की सीमा लांघने की कोशिश की, तो सैनिकों के साथ कई स्वयंसेवकों
ने भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए लड़ाई में प्राण दिए थे। विभाजन के दंगे
भड़कने पर, जब नेहरू सरकार पूरी तरह हैरान-परेशान थी, संघ ने पाकिस्तान से जान बचाकर आए
शरणार्थियों के लिए 3000 से ज़्यादा राहत शिविर लगाए थे।
वहीं 1962 के युद्ध में सेना की
मदद के लिए देश भर से संघ के स्वयंसेवक जिस उत्साह से सीमा पर पहुंचे, उसे पूरे देश ने देखा और सराहा। स्वयंसेवकों ने सरकारी कार्यों के साथ ही
विशेष रूप से देस के जवानों की मदद में अपनी पूरी ताकत लगा दी। सैनिक आवाजाही मार्गों की चौकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद, और यहां तक कि शहीदों के परिवारों की भी
चिंता।यही वजह थी कि जवाहर लाल नेहरू को 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को
शामिल होने का निमंत्रण देना पड़ा। निमंत्रण मिलने के मात्र दो दिन बाद ही 3500
स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित हो गए।जबकि इस निमंत्रण पर नेहरु जी को आलोचना का
शिकार भी होना पड़ा।और नेहरु जी ने “ये कहा कि केवल लाठी के बल पर भी
सफलतापूर्वक बम और चीनी सशस्त्र बलों से लड़ सकता है, विशेष रूप से 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए RSS को आकस्मिक आमंत्रित किया गया।
जब कश्मीर के महाराजा हरि सिंह विलय का
फ़ैसला नहीं कर पा रहे थे और उधर कबाइलियों के वेश में पाकिस्तानी सेना सीमा में
घुसती जा रही थी, तब नेहरू सरकार तो-हम क्या करें वाली मुद्रा में-मुंह बिचकाए बैठी थी।तब सरदार
पटेल ने गुरु गोलवलकर से सहायता मांगी और गुरुजी श्रीनगर पहुंचे, महाराजा हरि सिंह से मिले। जिसके बाद महाराजा ने कश्मीर के भारत में विलय पत्र
का प्रस्ताव दिल्ली भेज दिया।
वहीं 1965 के युद्ध में संघ ने क़ानून-व्यवस्था
संभाली।दरअसल पाकिस्तान से युद्ध के समय उस समय के पीएम लालबहादुर शास्त्री जी को
भी संघ की याद आई। शास्त्री जी ने क़ानून-व्यवस्था की स्थिति संभालने में मदद देने
और दिल्ली का यातायात नियंत्रण अपने हाथ में लेने का आग्रह किया, जिससे कि इन कार्यों से मुक्त किए गए पुलिसकर्मियों को सेना की मदद में लगाया जा सके।
घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान करने वाले भी संघ के स्वयंसेवक थे। युद्ध के
दौरान कश्मीर की हवाईपट्टियों से बर्फ़ हटाने का काम संघ के स्वयंसेवकों ने ही किया
था।
इतना ही नहीं दादरा, नगर हवेली और गोवा के भारत विलय में संघ की भूमिका निर्णायक थी। 21 जुलाई 1954
को दादरा को पुर्तगालियों से मुक्त कराया गया, 28 जुलाई को नरोली और
फिपारिया मुक्त कराए गए और फिर राजधानी सिलवासा मुक्त कराई गई।संघ के स्वयंसेवकों
ने 2 अगस्त 1954 की सुबह पुतर्गाल का झंडा उतारकर भारत का तिरंगा फहराया, पूरा दादरा नगर हवेली पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त करा कर भारत सरकार को
सौंप दिया।आपको बताते चलें कि संघ के स्वयंसेवक 1955 से गोवा मुक्ति संग्राम में
प्रभावी रूप से शामिल हो चुके थे। गोवा में सशस्त्र हस्तक्षेप करने से नेहरू के
इनकार करने पर जगन्नाथ राव जोशी के नेतृत्व में संघ के कार्यकर्ताओं ने गोवा पहुंच
कर आंदोलन शुरू किया, जिसका परिणाम जगन्नाथ राव जोशी सहित संघ के कार्यकर्ताओं को दस वर्ष की सजा
सुनाए जाने में निकला। हालत बिगड़ने पर अंततः भारत को सैनिक हस्तक्षेप करना पड़ा
और 1961 में गोवा आज़ाद हुआ।
1975 से 1977 के बीच आपातकाल के ख़िलाफ़ संघर्ष और जनता पार्टी के गठन तक में संघ की भूमिका
की याद अब भी कई लोगों के लिए ताज़ा है। सत्याग्रह में हजारों स्वयंसेवकों की
गिरफ्तारी के बाद संघ के कार्यकर्ताओं ने भूमिगत रह कर आंदोलन चलाना शुरु किया।
आपातकाल के खिलाफ पोस्टर सड़कों पर चिपकाना, जनता को सूचनाएं देना और जेलों में
बंद विभिन्न राजनीतिक कार्यकर्ताओं,नेताओं के बीच संवाद सूत्र का काम संघ
कार्यकर्ताओं ने संभाला।जब लगभग सारे ही नेता जेलों में बंद थे, तब सारे दलों का विलय करा कर जनता पार्टी का गठन करवाने की कोशिशें संघ की ही
मदद से चल सकी थीं।
वहीं 1955 में बना भारतीय
मज़दूर संघ शायद विश्व का पहला ऐसा मज़दूर आंदोलन था, जो विध्वंस के बजाए निर्माण की धारणा पर चलता था। कारखानों में विश्वकर्मा
जयंती का चलन भारतीय मज़दूर संघ ने ही शुरू किया था। आज यह विश्व का सबसे बड़ा, शांतिपूर्ण और रचनात्मक मज़दूर संगठन है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शिक्षा के
विकास के लिए तमाम संस्स्थाओं का संचालन करता है जिसमें भारतीय विद्यार्थी परिषद, शिक्षा भारती, एकल विद्यालय, स्वदेशी जागरण मंच, विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम,
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की स्थापना।इसके साथ ही 20 हजार से
ज्यादा स्कूलों का संचालन विद्या भारती कर रहा है।साथ ही लगभग दो दर्जन शिक्षक प्रशिक्षण कॉलेज, डेढ़ दर्जन कॉलेज, 10 से ज्यादा रोजगार एवं प्रशिक्षण संस्थाओं का सफल संचालन किया जा रहा है।वहीं
केन्द्र और राज्य सरकारों से मान्यता प्राप्त सरस्वती शिशु मंदिरों में लगभग 30 लाख छात्र-छात्राएं शिक्षा अध्ययन कर रहे हैं,और देस निर्माण में सहभागी बन
रहे हैं।
आपको बता दें कि अकेले सेवा भारती देश
भर के दूरदराज़ और दुर्गम इलाक़ों में सेवा के एक लाख से ज़्यादा काम कर रहा है।
लगभग 35 हज़ार एकल विद्यालयों में 10 लाख से ज़्यादा छात्र अपना जीवन संवार रहे
हैं। उदाहरण के तौर पर सेवा भारती ने जम्मू कश्मीर से आतंकवाद से अनाथ हुए 57
बच्चों को गोद लिया है जिनमें 38 मुस्लिम और 19 हिंदू बच्चे हैं।कहना गलत नही
होगा कि भारतीय संस्कार,संस्कृति को निरंतन बनाए रखना ही संध का मूल उद्देश्य है।
अंतत: RSS मानवता की रक्षा के लिए हर वो कार्य कर रहा
है,जिससे भारत संबृद्ध हो,इसके लिए चाहे 1971 में ओडिशा में आए भयंकर चंक्रवात
से लेकर भोपाल की गैस त्रासदी तक, 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों से लेकर
गुजरात के भूकंप, सुनामी की प्रलय, उत्तराखंड की बाढ़ और कारगिल युद्ध के घायलों की सेवा तक। संघ ने राहत और बचाव
का काम हमेशा सबसे आगे होकर किया है।भारत में ही नहीं, नेपाल, श्रीलंका और सुमात्रा तक में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मानवता भलाई के असाधारण
कार्य करता रहा है।जरुरत है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मनोबल को निरंतर बनाए रखने
की,क्योंकि आलोचना करना उतना ही आसान है जितना मनोबल बढ़ाना...।
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