Wednesday, 9 March 2016

श्री श्री का सांस्कृतिक कार्यक्रम है...यहां भी सियासत...!

संदीप कुमार मिश्र: जहां सैकड़ों देशों के प्रतिनिधि...हजारों की तादाद में कलाकार...लाखों की संख्या में दर्शक और श्रोता....आनंद लेगें भारतीय सभ्यता और संस्कृति का...ऐसे शानदार आयोजन की भव्यता के बारे सोचकर ही मन रोमांच से भर जाता है...और गुमान होने लगता है,गर्व होने लगता है अपने भारतीय होने पर।क्योंकि हमारी संस्कृति ही हमारी धरोहर है,पहचान है,मान है और सम्मान है।
एक ऐसा महोत्सव...जिसका नाम है विश्व सांस्कृतिक महोत्सव...जिसका आयोजन कर रहे हैं आर्ट आफ लिविंग के प्रमुख श्री श्री रविशंकर जी...जो कि बधाई पात्र है इस प्रकार के आयोजन को करने के लिए।लेकिन बेहद अफसोस कि ये शानदार महोत्सव सियासत की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है...कारण...?आप जानकर हैरान हो जाएंगे...जी हां यमुना नदी...कुछ तथाकथित पर्यावरणविदों और NGT को लगता है कि इस महोत्सव से यमुना मैली हो जाएगी।अब ऐसी सोच रखने वालों को कौन समझा कि जिस यमुना कि महोत्व विरोधी लोग गंदा होने कि बात करते हैं उस यमुना के के किनारे की अजीब सी स्थिति है, एक तरफ ओखला में एक खास समुदाय की बस्ती लगातार यमुना में घुसती चली जा रही है,जिसपर  सालों से शिकायत करने के बावजूद भी NGT  की कान पर जूं नहीं रेंग रही है,इसलिहाज से तो NGT को चाहिए था कि  जो सक्रियता श्री श्री के कार्यक्रम में आपने दिखाई वही सक्रियता आप ओखला की तरफ यमुना से भीतर घुस रही मल्टी स्टोरी इमारतों में भी दिखाते...ऐसे में आपकी दुषित मंशा पर शक क्यों न हो ?
क़ानून सभी पर एक जैसा चले, पक्षपाती क़ानून किसी एक समुदाय के भीतर गुस्सा भरने लगता है, फिर उसका फायदा कोई चालाक नेता अपने हिसाब से उठाने लगता है।जबकि हम सब जानते हैं कि श्री श्री के कार्यक्रम किस प्रकार से,कितनी स्वच्छता से चलाए जाते हैं।यमुना की गंदगी की बाद करते हैं साब ये लोग...तो सवाल उठता है कि क्या यमुना पहले मैली नहीं थी..या उसके लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं उसे इसी महोत्सव से ठेस पहुंचेगी...? नहीं साहेबान....देश साक्षी है जब भी देश में किसी बड़े महोत्सव का आयोजन होता है..वो नदियों के तट पर ही होता है...गंगा,यमुना और सरस्वती के संगम तट पर ही महाकुंभ का भी आयोजन होता है...जहां करोड़ों श्रद्धालूओं का आगमन होता है और लोग आस्था की डुबकी के साथ महिनो तक सत्संग और किर्तन करते हैं...लेकिन तब तो गंगा मैली नहीं होती..
अंतत: साब गंगा,यमुना और अन्य नदियों को दुषित करने के मुल कारणों को तलाश करना होगा...उन खामियों को दुर करना होगा...उन फैक्ट्रियों पर रोक लगानी होगी जिनके कचरे से पानी गंदा होता है...ना कि किसी सांस्कृतिक महोत्व पर रोक लगाने से...हां ये बात अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि और हिदायत भी देनी चाहिए ऐसे आयोजनो से यमुना का उद्धार हो ना कि पतन.....।


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