संदीप कुमार मिश्र: शहरों की थकान और
भागदौड़ भरी जिंदगी...जरुरतो और आवश्यकताओं को पूरा करने की जद्दोजहद में किसे चैन
और सुकुन की चाह नहीं होगी।ऐसे में पर्यटन के लिए कहीं हो आना चाहिए...जिससे मन को
शांति और सुकुन तो मिले ही..साथ ही उत्साह और रोमांच का अनुभव भी हो तो कितना
बेहतर हो...तो चलिए आपको ऐसे ही बेहद खास जगह के बारे में बताते हैं जहां जाकर आप
रोमांच से भर उठेंगे...।
जी हां दोस्तों हम बात कर रहे
हैं..दुधवा नेशनल पार्क की...जो पर्यटकों के लिहाज से बेहद कास है।जहां पर्यटकों
के लिए इस पार्क में बहुत सारी नई सुविधाएं शुरू की गई हैं।जहां सैलानियों खुब आना
जाना लगा रहता है...जानते हैं कि क्या खास है दुधवा नेशनल पार्क में।
दरअसल दुधवा हमारे देश में तराई वन्य
क्षेत्रों में शामिल है, जहां अनेकों प्रकार के वनस्पति और वन्य जीवों की
प्रजातियां प्राकृतिक रूप से पाई जाती हैं। एक तरफ जहां इस घने जंगल का उत्तरी
किनारा नेपाल की अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगा हुआ है तो वहीं इसके दक्षिण में सुहेली
नदी बहती है। दुधवा के वन्य क्षेत्र में हरेभरे जंगल, लम्बी घास और अन्य सभी प्रकार के पेड़ पाए जाते हैं,साथ ही हिरनों की विभिन्न प्रजातियों के अलावा बाघ, तेंदुआ, बारहसिंघा, हाथी, सियार, लकडबग्घा और एक सींग वाले गेंडे स्वच्छंद विचरण करते नजर आते हैं।
दुधवा नेशनल पार्क में हिरण, हाथी और पंछियों समेत बाघ, तेंदुएं और हर प्रकार के पक्षियों का
बसेरा है। गहरे हरे जंगलों के बीच बहने वाली नदियां यकिनन आपको रोमांच से भर
देंगी।दोस्तों दुधवा नेशनल पार्क हमारे देश के सबसे उम्दा इको-सिस्टम वाले तराई
क्षेत्रों में से एक माना जाता है। यही कारण है कि यहां वन्य जीवन बेहद विशाल और
खूबसूरत है।जिसे पर्यटक अपनी यादों में कैद करना चाहते हैं।
मित्रों ये पार्क सिर्फ घूमने के लिहाज
से ही नहीं हमारा बेहतरिन ज्ञानवर्धन भी करता है।आपको बता दें कि दुधवा टाइगर
रिजर्व की नींव 1958 में पड़ी थी, लेकिन उस समय इसका उद्धेश्य था लुप्त होते बारासिंघा को बचाना। तब इस जगह का
नाम भी सोनारीपुर अभ्यारण्य था।समय के साथ ही इस पार्क का दायरा बढ़ाकर इसका
क्षेत्रफल 212 वर्ग किलोमीटर कर दिया गया और नाम पड़ गया दुधवा अभ्यारण्य। 1977 में क्षेत्रफल बढ़ाकर 614 वर्ग किलोमीटर किया गया और इसे
राष्ट्रीय पार्क का दर्जा दिया गया। फिर,1988 में लखीमपुर से 30 किलोमीटर दूर स्थित किशनपुर अभ्यारण्य को भी इसमें शामिल करते हुए इसे दुधवा
टाइगर रिजर्व घोषित कर दिया गया। उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग का कहना है कि, यहां के सथानिया और ककरहा इलाकों में करीब 1800 बारासिंघा मौजूद हैं।
ऐसे तो दुधवा पार्क में बाघ की भी तमाम
प्रजातियों के साथ तीथल, हॉग डीयर और बार्किंग डीयर की भी खासी तादाद हैं।इस पार्क में कई ऐसे जानवर भी
देखे गए हैं, जिनके बारे में विलुप्त होने का अक्सर शक जताया जाता रहा है। ऐसा ही एक प्राणी
है हिस्पिड हेयर। गाढ़े भूरे रंग का यह जानवर अपने शानदार फर के लिए बेहद पसंद
किया जाता है। इतना ही नहीं, पंछियों के लिए भी यह स्वर्ग जैसा है।तकरिबन
इस पार्क में पंछियों की 400 प्रजातिया मौजूद हैं।जिन्हें देखना वास्तव में अद्भुत
है।
कब जाएं और कहां रुकें
साथियों दुधवा नेशनल पार्क में जाने का
सबसे उपयुक्त और बेहतर समय 16 नवंबर से 14 जून तक है। दुधवा में आधुनिक शैली में
थारू हट उपलब्ध हैं। रेस्ट हाउस-प्राचीन इण्डों-ब्रिटिश शैली की इमारतें पर्यटकों
को इस घने जंगल में आवास प्रदान करती है, जहां प्राकृतिक सौंदर्य दोगुना हो
जाता हैं। यहां जंगलों के बीच करीब 50 फीट ऊंचाई पर ट्री हाउस बनाए गए
हैं, जहां आप असली रोमांच का अहसास कर सकते हैं। इसके अलावा, यहां सरकारी और निजी कई गेस्ट हाउस मौजूद हैं।
क्या है खास और कैसे पहुंचें
दुधवा के जंगलों में ब्रिटिश राज से
लेकर भारत में बनवाए गए लकड़ी के मचान रोमांच को बढ़ा देते हैं। साथ ही, यहां राजस्थान की थारू सभ्यता का भी दिदार होता है। इस जाति के लोगों के
आभूषण, नृत्य, त्योहार व पारंपरिक ज्ञान बेमिसाल हैं। खुद को राणा प्रताप का वंशज बताने वाले
इस समुदाय के लोग नेपाल बॉर्डर पर रहते हैं।लखनऊ सिधौली, सीतापुर, हरगांव, लखीमपुर और भीरा से पलिया होते हुए आप दुधवा नेशनल पार्क पहुंच सकते हैं।
दुधवा नेशनल पार्क के सबसे पास रेलवे स्टेशन दुधवा, पलिया और मैलानी हैं।
अंतत: जब इतनी सारी खुबियां दुधवा नेशनल पार्क में मौजुद हैं तो जब भी समय मिले तो हो
आईए रोमांच के इस महापार्क में जहां होगा प्रकृति से साक्षात्कार...।
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