संदीप कुमार मिश्र: प्रकृति के कण-कण में ईश्वर का वास कहा जाता है...और आदि देव महादेव भगवान
आशुतोष,भोलेभंडारी घट-घट में विद्यमान है। कहते हैं जप,तप,ध्यान,ज्ञान,योग और
साधना के लिए प्राचिन समय से ही हमारे ऋषीमुनी...जंगलों,पहाड़ों कंदराओं में रहकर
तपस्या किया करते थे।चलिए आपको ऐसे ही एक जगह पर लेकर चलते हैं,जहां होगा आपका
ईश्वर से साक्षात्कार और जिस जगह को कहते हैं भगवान शिव का दूसरा घर..।
दोस्तों टेड़ीमेड़ी खूबसूरत पगडंडियां...सुंदर
और घने जंगल...घाटियां और संकरी कल-कल बहती नदियां...मनोरम..मनमोहक दृश्य...अनोखी
वनस्पतियां और वन्य जीवों का एहसास किसे नहीं रोमांचित कर देगा..कौन नहीं चाहेगा
कि शहरों की भागमभाग जिंदगी से बाहर निकलकर प्रकृति के समीप रहने और आत्मचिंतन और
उत्साह का संग्रह किया जाए।दोस्तों ये सभी खुबियां हैं त्रिपुरा के उनाकोटी में,जो
प्राकृतिक भंडार से भरा पड़ा है,जिसका ऐतिहासिक, पुरातत्विक और धार्मिक महत्व बरबस ही श्रद्धालूओं और पर्यटकों को अपनी आकर्षीत
करता है।
दरअसल उनाकोटी एक औसत ऊंचाई वाली पहाड़ी
श्रृंखला है, जो हरे-भरे शांत और शीतल वातावरण में स्थित है। राज्य की राजधानी से तकरीबन 170 किलोमीटर की दूरी पर स्थित उनाकोटि की पहाड़ियो पर हिन्दू देवी-देवताओं की
चट्टानों पर अनगिनत मूर्तियां उकेरी गई हैं,जो अब भी मौजूद हैं।प्राचीन और पौराणिक
कथाओं में इस स्थान के बारे में अनेकों दिलचस्प प्रमाण मिलते हैं। जिसके अनुसार, इस स्थान पर देवी-देवताओं की एक सभा हुई थी और भगवान शिव, बनारस जाते समय यहां
रुके थे,और तभी से इस स्थान
का नाम उनाकोटि पड़ गया।
उनाकोटि में पहाड़ों की चट्टानों पर बनाए
गए नक्काशी के शिल्प और पत्थर की मूर्तियां हैं।जिसका आधार भगवान शिव और गणेश जी
हैं। 30 फुट ऊंचे शिव की विशालतम छवि खड़ी चट्टान पर उकेरी गई है, जिसे ‘उनाकोटिस्वर काल भैरव’
कहा जाता है। इसके सिर को 10 फीट तक के लंबे बालों
के रूप में उकेरा गया है। इसी के पास शेर पर सवार माता देवी दुर्गा का शिल्प
चट्टान पर उकेरी हुई है, वहां दूसरी तरफ मकर पर सवार देवी गंगा का शिल्प भी है। यहां नंदी बैल की जमीन
पर आधी उकेरे हुए शिल्प भी हैं।जो शिल्पकला के लिहाज से अद्भुत है।
भगवान भोलेनाथ के शिल्पों से कुछ ही दूरी
पर भगवान गणेश की तीन बेहद शानदार मूर्तियां हैं। चार-भुजाओं वाले गणेशजी की
दुर्लभ नक्काशी के एक तरफ तीन दांत वाले साराभुजा गणेश और चार दांत वाले अष्टभुजा
गणेशजी की दो मूर्तियां बनी हुई हैं।साथ ही तीन आंखों वाला एक शिल्प भी है, जिसके बारे में माना जाता है कि वह भगवान सूर्य या विष्णु भगवान के हैं।
इतना ही नहीं चतुर्मुख शिवलिंग, नांदी, नरसिम्हा, श्रीराम, रावण, हनुमान, और अन्य अनेक देवी-देवताओं के शिल्प और मूर्तियां भी यहां बनी हुई है।जो यहां
की पौराणीकता को सिद्ध करती है। एक किंवदंती है कि अभी भी उनाकोटी में कोई
चट्टानों को उकेर रहा है,
इसीलिए इस उनाकोटि-बेल्कुम पहाड़ी को देवस्थल के रूप में
जाना जाता है,कहते हैं आप किसी भी दिशा से
आईए,कहीं भी जाईए, आपको भगवान शिव या अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां आपको मिल ही जाएंगी।जो किसी
रोमांच और रहस्य से कम नहीं है।
साथियों जब आप यहां जाएंगे तो आप देखेंगे
कि पहाड़ों से गिरते हुए सुंदर सोते उनाकोटि के तल में एक कुंड को भरते हैं, जिसे ‘सीता कुंड’ कहा जाता हैं।जिसमें स्नान करना बेहद पवित्र माना जाता है। हर साल उनाकोटी में
अप्रैल के महीने में ‘अशोकाष्टमी मेला’ लगता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु आते हैं और ‘सीता कुंड’ में स्नान कर खुद को धन्य मानते हैं।
आपको बता दें कि उनाकोटी को एक आदर्श
पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा साल 2009-10 में
उनाकोटि डेस्टिनेशन डेवलेपमेंट प्रोजेक्ट के तहत यहां 5 किलोमीटर के दायरे में
पर्यटक सूचना केंद्र, कैफेटेरिया, सार्वजनिक सुविधाएं, प्राकृतिक दृश्यों के लिए व्यूप्वाइंट आदि के निर्माण की मंजूरी दी गई है।
ऐसा माना जाता है कि उनाकोटि पर भारतीय
इतिहास के मध्यकाल के पाला-युग के शिव पंथ का प्रभाव है। इस पुरातात्विक महत्व के
स्थल के आसपास तांत्रिक, शक्ति, और हठ योगी जैसे कई अन्य संप्रदायों का प्रभाव भी देखने को मिलता है।
भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई)
के अनुसार, उनाकोटि का काल 8वीं या 9वीं शताब्दी का माना जाता है। आप कह सकते हैं कि ऐतिहासिक
रूप से और उनकोटि की कथाएं अभी भी एएसआई और ऐसी ही अन्य संस्थाओं से इस पर समन्वित
अनुसंधान की मांग कर रही हैं, ताकि भारतीय सभ्यता के लुप्त अध्याय के
रहस्य को उजागर किया जा सके।
अंतत: यकीनन उनाकोटी दर्शन और पर्यटन के लिहाज से बेहद खास और ज्ञानवर्धक भी है।तो जब
भी अवसर मिले तो हो आईए उनाकोटी।
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