संदीप कुमार मिश्र: पढ़ लिखकर अगर इंसान देशद्रोही बनता है,तो नही
चाहिए एसी शिक्षा,पढ़ लिखकर अगर इंसान मर्यादा भूल जाए तो किस काम की ऐसी
शिक्षा।पढ़ लिखकर ओछी हरकत ही की जाए तो शिक्षा उसी प्रकार है जिस प्रकार रावण का
ज्ञान था।और रावण का क्या हुआ हम सब जानते है,युगों-युगों से जलता आ रहा है रावण
और अनंत काल तक,जब तक सृष्टी रहेगी तब तक जलता रहेगा रावण...।
खैर,आप समझ ही गए होंगे कि कहने का भाव और आशय क्या था।अब
साब जेएनयू में पढ़कर मानसिकता देशविरोधी ही हो तो काहें का अच्छा संस्थान
जी,प्रकांड पंडित की डिग्री मिल जाए और आचरण मुर्खता जैसा हो तो क्या फायदा एसी
शिक्षा और संस्था का।
बहरहाल मैं किसी खास की बात नहीं करता है,लेकिन हमारे देश की
सियासत से हम और आप अछूते नहीं रह सकते,और ना ही मेरे कंप्यूटर के कीबोर्ड रुपी
कलम...अब संसद में छिड़े महासंग्राम की ही बात कर लें।सत्ता से बेदखल बौखलाई कांग्रेस
हो या फिर आम वाम जैसे तमाम दल...जिनकी जमीन ही नही खिसकी...ना जाने कहां गायब हो भी
गई,जिसका मिलना भविष्य के गर्त में है। जरा याद कीजिए उन खास पलों को जब आपने
सुषमा स्वराज जी को लोकसभा में बोलते हुए सुना था।जिनकी सादगी और शब्दों के साथ ही
सटीकता का कायल हर कोई हुआ करता था।एक शानदार व्यक्तित्व,वक्ता,बहुमुखी प्रतिभा की
धनी सुषमा जी को सुनना हर किसी को अच्छा लगता है...।
कुछ वैसी ही झलक लोकसभा में पिछले दिनों देखने को मिली...जो
अविश्वसनीय...अकल्पनिय था समूचे विपक्ष के लिए। क्योंकि स्मृति की सटीक दहाड़ और
चित्कार के आगे विपक्ष भाग खड़ा नजर आया।विपक्ष की समझ में ही नहीं आ रहा था कि
जवाब क्या दें और पूछें क्या।हर कोई बगलें झांकता नजर आया।जिसने हिम्मत भी
जुटाई,उसे करारा जवाब देकर स्मृति इरानी ने बुरे सपने जैसा ऐहसास करा दिया।
स्मृति इरानी...जिनकी योग्यता का पैमाना विपक्ष के लिए
मात्र 12वीं पास का था...लेकिन पुरुष प्रधान समाज में बड़े बड़े ज्ञानवीर,घपले
घोटाले वाले सियासतदां स्मृति इरानी के आगे चित्त हो गए...कुछ ऐसे नजर आने लगे
जैसे हंसो के बीच बगुला...ये हाल सिर्फ लोकसभा का ही नहीं रहा, राज्यसभा में भी
कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला...जब दलितों की इकलौती मसीहा खुद को मानने वाली
मायावती जी को भी समझ में नहीं आर हा था कि इस रणचंडी का सामना कैसे
करें...क्योंकि उनकी जीत और ज्ञान का आधार तो मात्र दलित ही हैं,उन्हें नहीं मतलब
की दलितों के उत्थान के लिए क्या करना है,कैसे करना है...वास्तव में क्या होना
चाहिए....क्या सिर्फ आरक्षण से दलितों का उत्थान हो सकता है..? बहन जी को तो नहीं
सरोकार इन सभी बातों से। उन्हें तो बस दलित..बस दलित...।खैर,मानव संसाधन विकास
मंत्री स्मृति इरानी ने उन्हें भी सही और सटीक जवाब दिया...और वो भी अन्य के साथ
सन्न रह गई और हो हंगामे में शामिल हो गई,क्योंकि सार्थक बहस से बचने का सबसे
अच्छा उपाय है कि हंगामा करना शुरु किया जाए या फिर बीच बहस से निकल लिया जाए।
सवाल उठता है कि आखिर योग्यता का पैमान क्या यही है कि
स्मृति इरानी की बात सिर्फ इसलिए ना सुनी जाए क्योंकि उनके पास बड़ी-बड़ी डिग्रियां
नहीं है...? स्मृति एक कलाकार रही हैं, क्या इसलिए उनकी बात की अनदेखी करना उचित है...?या फिर वो नारी है
इसलिए..?बेहद अफसोस लेकिन एक बात कहूंगा दोस्तों डिग्रियों से चलता देश हमने देख लिया
है,जिसमें ना जाने कितने घोटाले...कितने भ्रस्टाचार हुए थे...अब एक ऐसी सरकार को
भी देखना जरुरी है...जिसका सरोकार आम आदमी और देशहित से हो..!
दरअसल स्वतंत्र भारत में हम सदियों से
महिलाओं को अबला ही कहते आ रहे हैं,और यही आदत भी बन गयी है...कुछ इसी तरह ही भारत
की आजादी के कई दशकों बाद भी हम लोकतंत्र के मंदिर संसद में महिलाओं की इमानदार
हिस्सेदारी अब तक तय नहीं कर पाए हैं।सवाल उठता है कि एक सफल टीवी अभिनेत्री के
रूप में तो हम स्मृति इरानी को पसंद करते हैं, लेकिन जैसे ही वो सियासत में दांव
आजमाने के लिए अमेठी पहुंचती हैं तो परिवारवाद के यूवराज को भी बेचैनी और घबराहट
होने लगती है,ब्लड प्रेशर से लेकर ना जाने क्या-क्या उपर नीचे होने लगता है।जिसके
लिए स्मृति इरानी को याद दिलाया जाने लगता है कि आप सिर्फ 12वीं पास हो..?अफसोस...!!!!!
अंतत: कहना गलत नहीं होगा कि हमारे सियासी सियारों की घृणित पुरुषवादी मानसिकता ही है
कि भौंहे तन गई,माथा लाल हो गया कि आखिर कैसे संसद में एक महिला ने समूचे विपक्ष
को धराशायी और स्तब्ध कर दिया। सौ फीसदी संसद में स्मृति इरानी
की सशक्त-अकाट्य और सधे हुए तर्कों ने नारी का सम्मान और भी बढ़ा दिया,और सियासत
के जंग लगे नेताओं को सोचने पर मजबुर कर दिया कि अच्छे दिन के संकेत ऐसे भी होते
हैं जनाब...। खैर...वैचारिक विकलांग टाइप "अंकलों" की बातों पर ध्यान देने की जरुरत
नहीं है।क्योंकि देश की यूवा पीढ़ी स्त्री शक्ति का ऐसा ही रुप देखने की इच्छुक भी
है,और चाहिए भी।
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