तिलस्नायी तिलोद्वर्ती तिलहोमी तिलोदकी।
तिलदाता च भोक्ता च षट्तिला पापनाशिनी॥
अर्थात इस दिन तिल का इस्तेमाल स्नान
करने, उबटन लगाने और होम करने में करना चाहिए, साथ ही तिल मिश्रित जल पीना चाहिए, तिल दान करना चाहिए और तिल का भोजन करना चाहिए। इससे पापों का नाश होता है।
संदीप कुमार मिश्र: माघ मास के कृष्ण
पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी कहते हैं। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को अतिप्रिय है। षटतिला
एकादशी का महात्मय पुराणों में वर्णित है। इस दिन श्री हरी भगवान विष्णु की पूजा
अर्चना की जाती है। इस दिन काले तिलों के दान का विशेष महत्व हमारे धर्म शास्त्रों
में बताया गया है।वहीं शरीर पर तिल के तेल की मालिश, तिल जल से स्नान, तिल से बने तिलवा का
जलपान और तिल पकवान की इस दिन विशेष महत्ता है। इस दिन पंचामृत में तिल मिलाकर
भगवान को स्नान कराना चाहिए साथ ही तिल मिश्रित पदार्थ स्वयं खाना चाहिए और
ब्राह्मण को भी खिलाना चाहिए।
दरअसल दोस्तों माघ के महिने को हमारे
सनातन धर्म में नरक से मुक्ति और मोक्ष दिलाने वाला माना जाता है।षटतिला एकादशी हमें
इस बात को बताती है कि धनदान से कहीं ज्यादा महात्म्य अन्नदान का होता है। पुलस्त्य
मुनी ने नरक से मुक्ति पाने के उपाय के संबंध में कहा है कि - मनुष्य को माघ माह
में अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखते हुए क्रोध, अहंकार, काम, लोभ और मोह का त्याग करना चाहिए।और सात्विकता का पालन करना चाहिए।
माघ मास के कृष्णपक्ष की षट्तिला एकादशी
व्रत में तिल का विशेष महत्व कहा गया है।तिल से भरा हुआ बर्तन दान करना बेहद शुभ
माना जाता है। कहते हैं तिलों के बोने पर उनसे जितनी शाखाएं पैदा होंगी, उतने हजार बरसों तक दान करने वाला स्वर्ग में निवास करता है।
षटतिला एकादशी कथा
षटतिला एकादशी के संबंध में एक कथा कही
जाती है कि- “एक ब्राह्मणी श्री हरि
भगवान विष्णु में बड़ी श्रद्दा भक्ति रखती थी,व एकादशी का व्रत भी करती थी।लेकिन उसने
कभी ब्राह्मण एवं देवताओं के निमित्त किसी भी प्रकार का अन्न दान नहीं किया था। एक
दिन भिक्षा लेने कपाली का रूप धारण कर स्वयं भगवान पहुंचे और भिक्षा की याचना की।लेकिन
गुस्से में ब्राह्मणी ने मिट्टी का एक बड़ा ढेला दिया। कुछ समय बाद ब्राह्मणी देह
त्याग कर वैकुंठ पहुंची।लेकिन उसे वहां मिट्टी के बने मनोरम मकान ही मिले, अन्न नहीं। दुखी होकर उसने श्री हरि से इसका कारण पूछा तो पता लगा कि ऐसा
अन्नदान नहीं करने की वजह से है और निवारण हेतु उसे षट्तिला एकादशी का व्रत करना
चाहिए। ब्राह्मणी ने व्रत किया, तब उसका मकान अन्न से
भर गया।
इसलिए कहा जाता है कि इस दिन तिल और
अन्नदान अवश्य करना चाहिए।साथ ही नारियल अथवा बिजौरे के फल से विधि-विधान से पूजा
कर श्री हरि भगवान विष्णु को अर्घ्य देना चाहिए।हां अगर आपके पास धन न हो तो
सुपारी का दान करें।
विशेष ध्यान रखने योग्य बातें
सभी सनातनधर्मी व आस्थावान प्रेमी जो
लोग एकादशी व्रत नहीं कर पाते हैं, उन्हें एकादशी के दिन कम से कम खान-पान एवं व्यवहार में सात्विक अवश्य रखनी चाहिए।
एकादशी के दिन लहसुन, प्याज, मांस, मछली, अंडा जैसे तामसी आहार्य को वर्जीत करना चाहिए। एकादशी के दिन चावल खाना भी
वर्जित है।
अंतत: आस्थाओं के देश भारत में सब कुछ खास है,कास कर हमारे तीज,त्योहार।ऐसे में बात
जब श्रीहरि भगवान विष्णु के पूजा अर्चना की हो तो कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता।आप
भी रहें षटतिला एकादशी और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करें।
सशंखचक्रं सकिरिटकुंडलम् सपितवस्त्रं सरसिरुहेक्षणम्।
सहारवक्षस्थलं नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजम्।।
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