संदीप कुमार मिश्र: कहते हैं राजनीति में ना तो कोई स्थाई दोस्त होता है और ना ही दुश्मन। खासकर
चुनाव के समय तो विरोधी को भी अपना बनाने की कोशिश की जाती है... गठबंधन किया जाता
है...जोड़तोड़ किया जाता है..पूराने समय में किए गए वादों की दुहाई दी जाती है...।इमोशनल
अत्याचार करने से भी गुरेज नहीं किया जाता है।भई ऐसा करने में हर्ज ही क्या
है..सत्ता के लिए कुछ भी करने में गुरेज ही क्या है...सिंहासन मिल जाने पर तो ऐसे
भी सब ठीक हो ही जाता है,नहीं भी हो तो पांच साल तो फिक्स हो ही जाता है।
खैर,यहां बात अमर सिंह के मुलायम प्रेम
की हो रही है,मुलायम मतलब मुलायम सिंह यादव। कयास लगाये जा रहे हैं कि यूपी विधान सभा चुनाव
से पहले अमर सिंह की समाजवादी पार्टी में वापसी हो सकती है।क्योंकि जिस प्रकार के
संकेत दोनो की तरप से देखने को मिल रहे हैं,उससे खबरें तो ऐसी ही सुनने को मिल रही
है।दरअसल अमर सिंह ने कहा कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह उनके बड़े भाई थे...हैं और
रहेंगे..और मनुष्य का भाग्य कब किस करवट बैठे, कुछ नहीं कहा जा सकता।'अब आप अंदाजा लगा
सकते हैं कि अमर वाणी का क्या मतलब है।
वहीं अपने धुर विरोधी आजम खान पर भी चुटकी
लेते हुए अमर सिंह ने कहा कि चुनावी वर्ष में आजम सपा की जरूरत हैं, इसलिए वे उनके
बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहेंगे।आपको बता दें कि अमर सिंह रविवार को उत्तर
प्रदेश के नए लोकायुक्त संजय मिश्रा के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए, जो उनके गृह जनपद आजमगढ़ से जुड़े कन्हैया लाल मिश्र के परिवार से हैं।अमर सिंह
ने कहाकि , 'इससे पहले भी वो गैर राजनीतिक कार्यक्रमों में मुलायम सिंह के साथ थे, चाहे अस्पताल का उद्घाटन हो, उनका जन्मदिन हो या दिवंगत जनेश्वर
मिश्र से जुड़ा कार्यक्रम हो।’
आपको याद होगा कि एक जमाना था जब सपा
में मुलायम के बाद अमर सिंह की ही चलती थी।और सपा मुखिया से अमर का पारिवारिक
संबंध है ।दरअसल अभी हाल ही में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि ‘अमर सिंह भले ही पार्टी के सदस्य न हो, अमर सिंह मेरे दिल में हैं, मेरे दिल में थे हैं और हमेशा रहेंगे।हमारे बहुत घनिष्ठ संबंध हैं और वह हमेशा
रहेंगे।’ इसीलिहाज से अमर का
कहना है कि वो सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के दिल में
हैं, दल में हैं या नहीं इससे क्या मतलब।’ उन्होंने कहा, ‘दिल ज्यादा महत्वपूर्ण है, दल से। दल में स्वार्थ है, दिल नि:स्वार्थ, पवित्र।’
लेकिन जब अमर सिंह समाजवादी
पार्टी में वापसी पर आजम खान का कहना था कि नेताजी सर्वे सर्वा हैं, जिसे चाहें पार्टी में ले लें और जिसे चाहें निकाल दें।
अंतत: राजनीति में कुछ भी अकारण नहीं होता और ना ही कहा जाता है।इस लिहाज से देखा
जाए तो जिस प्रकार से उत्तर प्रदेश में आगामी चुनाव(2017) के लिहाज से वोटो का ध्रुवीकरण
अभी से शुरु हो गया है।जीत के लिए सभी पार्टियां दम खम लगानी शुरु कर दी हैं।ऐसे
में देखना होगा कि यूपी की सियासत में अमर मुलायम प्रेम क्या रंग दिखाता है
क्योंकि आजम खान किस रुप में स्विकार कर पाते हैं अमर सिंह को...ये देखना बड़ा
दिलचस्प होगा।
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