संदीप कुमार मिश्र : लोहड़ी का पर्व हमारे देश के खासकर उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है।जिसे
मकर संक्रान्ति के एक दिन पहले बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है। लोहड़ी के
त्योहार को लोग रात्रि में खुले स्थान में नाते रिश्तेदार, परिवार और आस-पड़ोस के
लोगों के साथ मिलजुलकर जलती लौ यानि आग के किनारे घेरा बना कर बैठते हैं और नाचते
गाते हैं।
दरअसल मकर संक्रांति से एक दिन पहले ही
उत्तर भारत में खासकर पंजाब में लोहड़ी का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता
है। आपको बता दें कि किसी न किसी नाम से मकर संक्रांति के दिन या उसके आस-पास हमारे
देस के सभी हिस्सों में कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है।जैसा कि मकर संक्रांति के
दिन तमिल हिंदू पोंगल का त्यौहार मनाते हैं। इस प्रकार लगभग पूरे देश में यह
त्योहार विविध रूपों में मनाया जाता है।
पंजाब, हरियाणा के साथ ही देश के अन्य हिस्सों में बड़ी धूम-धाम से 'लोहड़ी ' का त्यौहार मनाया जाता है। पंजाबियों
के लिए लोहड़ी खास महत्व रखती है। लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे
लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी हेतु लकड़ियां, मेवे, रेवड़ियां, मूंगफली इकट्ठा करने लग जाते हैं।
लोहड़ी की संध्या को आग जलाई जाती है। लोग अग्नि के चारो ओर चक्कर काटते हुए
नाचते-गाते हैं और आग मे रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति देते हैं। आग
के चारो ओर बैठकर लोग आग भी सेंकते हैं साथ ही रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद भी लेते हैं।लोहड़ी
के त्योहार पर जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर
बधाई देने की परंपरा भी है।
लोहड़ी की शाम लोकगीतों की शाम होती है।
मन को मोह लेने वाले गीत कुछ इस प्रकार के होते हैं कि एक बार को ना चाहते हुए भी
पैर थिरकने लगते हैं।हमारे हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि आग में जो भी अर्पित
किया जाता है वह सीधे हमारे देवों-पितरों को जाता है। इसीलिए लोहड़ी के दिन खेतों
में झूमती फसलों को घर लाकर, अग्नि प्रज्ज्वलित कर उसके चारों ओर
नाच-गाकर शुक्रिया अदा किया जाता है।
आप इसे भी देवों की पूजा करने का एक अलग
माध्यम कह सकते हैं। लोहड़ी के दिन भंगड़े की गूंज और शाम होते ही लकडिय़ों की आग
और आग में डाले जाने वाले खाद्यान्नों की महक एक गांव को दूसरे गांव व एक घर को
दूसरे घर से बांधे रखती है। यह सिलसिला देर रात तक यूं ही चलता रहता है। बड़े-बड़े
ढोलों की थाप, जिसमें बजाने वाले थक जाएं, पर पैरों की थिरकन में कमी न हो, रेवड़ी, मूंगफली का स्वाद सब एक साथ रात भर चलता रहता है।
आपको बता दें कि लोहड़ी को पहले तिलोड़ी
कहा जाता था। यह शब्द तिल तथा रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के रुप में प्रसिद्ध हो गया।
लोहड़ी के संबंध में एक कथा भी प्रचलित
है।कहते हैं एक समय की बात है कि सुंदरी एवं मुंदरी नाम की दो अनाथ लड़कियां थीं,
जिनको उनका चाचा विधिवत शादी न करके एक राजा को भेंट कर देना चाहता था। उसी समय
में दुल्ला भट्टी नाम का एक नामी डाकू ने दोनों लड़कियों, 'सुंदरी एवं मुंदरी' को जालिमों से चंगुल से छुड़ा कर उन की शादियां कीं। इस मुसीबत की घडी में
दुल्ला भट्टी ने लड़कियों की मदद की और लडके वालों को मना कर एक जंगल में आग जला
कर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवाया।साथ ही दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का
कन्यादान किया। कहते हैं दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी।
जल्दी-जल्दी में शादी की धूमधाम का
इंतजाम भी न हो सका सो दुल्ले ने उन लड़कियों की झोली में एक सेर शक्कर डालकर ही
उनको विदा कर दिया। कहने का मतलब ये था कि डाकू होकर भी दुल्ला भट्टी ने निर्धन
लड़कियों के लिए पिता की भूमिका निभाई। वहीं ये भी कहा जाता है कि संत कबीर की
पत्नी लोई की याद में यह पर्व मनाया जाता है। इसीलिए इसे लोई भी कहा जाता है।जिसका
स्वरुप और नाम लोहड़ी हो गया है।
अंतत: खैर चाहे जैसे भी हो,उत्साह और उमंग का उत्सव लोहड़ी आप सभी के जीवन में
उन्नती,तरक्की और खुशहाली लेकर आए।हमारी यही कामना है।
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