Saturday 30 January 2016

बजट सत्र का हंगामेदार मुद्दा तैयार..!


संदीप कुमार मिश्र: छोड़िए साब विकास की बातें...सवा सौ करोड़ का देश है कोई नई बात तो नहीं।लोकतंत्र में नेता जी लोगों के पास जो अधिकार हैं आम लोगों के पास कहां।फिर जैसे जो जी में आए करीए...रोकता कौन है...!क्यों...? लोकसभा की कार्यवाही को ही ले लिजिए...मौसम की तरह हर बार हंगामें के लिए मुद्दे तैयार मिलते हैं।

दरअसल इस बार के मॉनसून सत्र की दशा और दुर्दशा आपने देखी ही थी,और तकरीबन विंटर सेशन में गर्मी का एहसास ही देखने को मिला और अब बजट सत्र का मसाला तैयार हो गया है...ट्रेलर देखने को मिल ही रहा है..फिल्म का इंतजार करीए...।अब जरा उन मुद्दों पर भी नजर डाल लिजिए जो बजट सत्र और आम जन को रुलाने वाले हैं-

सरकार पर दलित विरोधी होने का आरोप ?

दोस्तों आपको याद होग कि पिछले सत्र में कांग्रेस के यूवराज राहुल गांधी ने दलितों का मुद्दा बड़े ही जोर शोर से उछाला था।एक बार फिर उसी मुद्दे को उछालकर मोदी सरकार को दलित विरोधी बताने की और वोट बैंक की सियासत करने की पूरी तैयारी है।जैसा कि विंटर सेशन में ही कांग्रेसी नेता कुमारी शैलजा ने 2012 का एक मामले को उछाल कर सरकार को निशाने पर लिया था।मुपद्दा भी ऐसा जिसका कोई सिर पैर नहीं था।दरअसल शैलजा ने एक आरोप लगाया था कि गुजरात के द्वारका मंदिर में प्रवेश से पहले उनकी जाति पूछी गई थी।जबकि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सबूतों के आधार पर कुमारी शैलजा की बातों को नकार दिया लेकिन हंगामा करने और काम ना होने देने में कांग्रेस सफल रही।

ठीक विंटर सेशन की तरह ही इस बार भी कांग्रेस बजट सेशन में रोहित वेमुला की खुदकुशी का मामला उठाएगी और बजट सत्र की ऐसी तैसी करने की शानदार कोशिश करेगी।इसके लिए बाकायदे दलितों के मुद्दे पर कांग्रेस दूसरे विपक्षी दलों के साथ मिल कर रणनीति भी तैयार करेगी।जिससे कि संसद का काम प्रभावित हो सके।

अल्पसंख्यक का मुद्दा भी हो सकता है हावी

एक और मुद्दा इस बार मोदी सरकार काम करने में अड़चन पैदा कर सकता है।दरअसल इस बार का बजट सत्र विपक्ष के लिए आगामी चुनाव से पहले बेहतरीन वॉर्म-अप सेशन साबित हो रहा है।क्योंकि असम और पश्चिम बंगाल चुनाव में अब कुछ ही महीने शेष बचे हैं, लिहाजा कोई भी मौका विपक्ष और खासकर कांग्रेस गंवाना नहीं चाहता है।

आपको याद होगा कि पिधले दो चुनावों में दो मुद्दे खुब हावी रहे।दिल्ली विधानसभा चुनाव में चर्च पर हुए हमले तो बिहार चुनाव के वक्त आरएसएस चीफ मोहन भागवत के आरक्षण पर बयान को खूब हवा दी गई।जिसका फायदा कहीं ना कही भरपूर तरिके से विपक्ष को मिला भी,चाहे भले ही उन मुद्दो की सच्चाई कुछ ना हो।

इस बार भी चुनावों से पहले संसद में मुद्दे उठाने और मोदी सरकार को घेरने के लिए एक मजबूत प्लेटफॉर्म तो होगा ही,संभव है कि  उसके दूरगामी परिणाम भी हों। विपक्ष ये बात बखूबी समझता है,समझती तो सरकार भी है। तभी तो संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू इस महीने एक सुबह सोनिया गांधी से मिलने पहुंचे थे।वेंकैया की पेशकश थी कि अगर सभी राजनीतिक दल राजी हो जाएं तो बजट सत्र वक्त से पहले बुलाया लिया जाए।मतलब साफ था कि जीएसटी और रीयल एस्टेट बिल पास करा लिया जाए, लेकिन अब तक कोई रास्ता निकला नजर नहीं आता।

इस लिहाज से साफ हो जाता है कि विपक्ष बजट सत्र में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लालमिया के अल्पसंख्यक दर्जे के मसले पर मोदी सरकार को घेरने की भरपूर कोशिश करेगी। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, जेडीयू, आरजेडी, एनसीपी, सीपीएम और आप सांसदों की ओर से इस मुद्दे पर जारी संयुक्त बयान को भी इसी कड़ी से जोड़ कर देखा जा सकता है।मतलब साफ है कि घेर घेराव के इस चक्कर में विपक्ष का उल्लू जरुर सीधा हो जाए भले ही जनता के लिए होने वाले जरुरी कार्य ना हो,बिल पास ना हो....।

इतना ही नहीं, मौजूदा विपक्ष अब सरकार के घटक दल में भी सेंध लगाने की तैयारी कर रहा है। इसके तहत एनडीए के उन सहयोगियों को साधने की कोशिश की जा रही है जो कभी संयुक्त मोर्चे का हिस्सा रहे थे।जेडीयू महासचिव के सी त्यागी के बयान को समझें तो अब अकाली दल, टीडीपी, एजीपी और पीडीपी जैसी पार्टियों को इस मसले पर राजी करने की तैयारी है।


अंतत: इसमे कोई शक नहीं कि मोदी सरकार को इस बात का एहसास नहीं है कि विपक्ष कहां उसे निशाने पर ले सकता है। रोहित वेमुला सुइसाइड केस में अपने दो नेताओं के चलते बीजेपी ने अपनी जो फजीहत कराई है,उससे उसे आगे का अंदाजा तो लग ही गया होगा। फिर तो जीएसटी और दूसरे बिलों की उम्मीद या कोई और बात बेमानी ही होगी।बहरहाल उम्मीद यही करनी चाहिए कि जनता से जुड़े सभी बिल पास हों उसके पास जितना हंगामा और नुरा कुश्ती होनी हो कोई बात नहीं।लेकिन जनता का नुकसान नहीं होना चाहिए,नही तो लोकतंत्र के 2019 के महाउत्सव में जनता उन नेताओं को कहीं का नहीं छोडेगी।

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