Thursday, 21 January 2016

मिशन असम पर बीजेपी…84 की चाह...!


संदीप कुमार मिश्र: एक राज्य में चुनाव संपन्न होता है कि अगले कि तारी शुरु हो जाती है।हमारे देश में चुनाव किसी उत्सव से कम नहीं होता...अंतर सिर्फ इतना होता है कि लोकतंत्र के इस महाउत्सव में जनता अपना प्रतिनिधि चुनती है।एक के बाद एक अनेको राजंयों में इस वर्ष चुनाव का बिगुल बजने वाला है...जैसा कि हम सब जानते है कि अप्रैल-मई के मध्य में असम में विधानसभा चुनाव होने है। लेकिन चुनावी शंखनाद की गूंज  असम में अभी से सुनाई देने लगी है।
दरअसल ऐसा इसलिए लगने लगा है क्योंकि पिछले तीन हफ़्तों में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर स्मृति ईरानी ने असम का दौरा किया।और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दौरा।मतलब साफ है कि बीजेपी असम में कमल खिलाने की पूरी तैयारी कर रही है।इसी लिहाज से गठबंधन की पहल करते हुए बीजेपी ने चुनाव की तरफ़ अपना पहला बड़ा क़दम बढ़ाते हुए बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के साथ हाथ भी मिला लिया है।

इसका एक बड़ा कारण आप ये भी मान सकते है कि बीजेपी की जिस प्रकार से दिल्ली और फिर बिहार में करारी हार हुई है, उससे बीजेपी असम मे कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती।इस लिहाज से पार्टी ने असम की 126 विधानसभा सीटों के लिए लड़ाई में दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करने के लिए 'मिशन 84' का नारा भी शुरु कर दिया है। बीजेपी ने अपने मिशन 84 के तहत ही कांग्रेस और असम गण परिषद (एजीपी) के कुछ अहम नेताओं और विधायकों को अपनी तरफ़ आकर्षित भी किया है और कामयाबी भी पाई है।

असम राज्य में बीजेपी के लिए बड़ी संभावना इसलिए भी नजर आती है क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राज्य की 14 लोकसभी सीटों में से 7 पर जीत हासिल की थी ।इसलिए मनोबल भी पार्टी का अन्य के लिहाज से बढ़ा है,और वैसे भी लगातार तीन विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद अब कांग्रेस पार्टी और मुख्यमंत्री तरुण गोगोई की सरकार से लोगों का जी भर चुका है।विकास के नाम पर असम में कुछ भी नया नहीं दिखाई देता है,जबकि केंद्र की सत्ता पर काबिज कांग्रेस के पीएम मनमोहन सिंह वहीं से चुनकर आते थे।बावजूद इसके असम उपेक्षा का शिकार रहा है।
असम की जनता में बदलाव की चाह साफ नजर आती है,और इस लिहाज से लोग आशा भरी नजरों से बीजेपी की तरफ देख रहे हैं।बीजेपी भी उन्हें एक अच्छी सरकार देने का वादा कर रही है।लेकिन कहीं ना कहीं असम की जो सूरत हमें दूर से नजर आती है वो नज़दीक जाने पर बदलती सी नज़र आने लगती है।
ये बात हम सब जानते हैं कि असम अपने आप में एक छोटा भारत है। यहां पर सभ्यता संस्कृति और भाषाई विविधता है। अपर असम और लोवर असम की उमंगें अलग हैं।बराक घाटी और ब्रह्मपुत्र घाटी की सोच भी अलग है और भाषा भी।ये विविधता है असम की।

"अवैध बांग्लादेशी" के ख़िलाफ़ नारे को बीजेपी ने अपना इस चुनाव में अपना मुख्य मुद्दा बना रखा है।फिलहाल जो नजर आता है उसके लिहाज से हम यही कह सकते हैं।लेकिन प्रधानमंत्री अपने दौरों में "राज्य के विकास" का नारा देकर विकास को गती देने का काम करेंगे।आपको बता दें कि असम वालों के लिए अवैध बांग्लादेशियों और घुसपैठ के मुद्दे एक बड़ी समस्या जरुर है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या इसे बीजेपी के "मिशन 84" की कामयाबी की गारंटी माने...?
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी इस बात को भलीभांति जानते हैं कि दिल्ली और बिहार में मिली हार के बाद असम एक बड़ी चुनौती तो है।अमित शाह की पार्टी में साख बनी रहे इसलिए भी असम मेंकमल खिलाना उनके लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।वहीं ये बात भी साफ है पार्टी बखुबी जानती है कि कांग्रेस को हराना असम में इतना आसान नहीं होगा।
बीजेपी को असम में कई मुश्किलों और चुनौतियों का सामना कर पड़ सकता है,मसलन-
असम के 126 चुनावी क्षेत्रों में से बीजेपी की उपस्थिति आधी भी नहीं है।मतलब बुनियादी ढांचों को मजबूत करना होगा।बीजेपी के पास राज्य में कांग्रेस के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई की कोई बड़ा चेहरा नहीं है।जो गोगोई का सामना कर सके। बीजेपी ने एजीपी और कांग्रेस से जिन नेताओं को तोड़ कर पार्टी में शामिल किया है,उनमें से ज्यातर का कोई वजूद नहीं है।वहीं पार्टी के लिए एक अदद बड़े गठबंधन की भी जरुरत हो सकती है असम में ,जो कि अब तक नहीं हुआ है।साथ ही कांग्रेस सरकार के ख़िलाफ़ 'विरोधी लहर' से लाभ उठाने के लिए कोई ठोस रणनीति बनाने की खास जरुरत है।
दरअसल कांग्रेस का अभी तक यही संकेत रहा है कि वो एआईयूडीएफ़ के साथ चुनाव से पहले गठबंधन नहीं करेगी। लेकिन चुनाव के बाद इससे हाथ मिलाने के लिए तैयार है। बीजेपी के सबसे जरुरी रणनीति के लिहाज से यही है कि वो चुनाव से पहले या बाद में कांग्रेस और एआईयूडीएफ़ को एक साथ ना होने दे।लेकिन शायद पार्टी अ ऐसे किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है कि इस कार्य को अंजाम कैसे दिया जाए।वहीं जरुरत इस बात की भी है कि हर क्षेत्र के लिहाज से पार्टी रणनीति बनाए।क्योंकि अवैध बांग्लादेशियों के मुद्दे बराक घाटी और ब्रह्मपुत्र घाटी दो जगह काम नहीं आएंगे।इन दोनों इलाक़ों के मुद्दे और जरुरतें अलग-अलग हैं।

अंतत: दोस्तों असम एक ऐसा राज्य है जहां सामाजिक और धार्मिक ध्रुवीकरण करना मुश्किल नहीं है,लेकिन ये रणनीति नहीं चलेगी।कम से कम "मिशन 84"का लक्ष्य हासिल करने के लिए तो कतई नहीं। असम में कांग्रेस पिछले 15 साल से सत्ता पर काबिज है।लेकिन बीजेपी के लिए असम एक बेहतर मौका दे सकता है,जिसके लिए जरुरी है सटीक और सकारात्मक रणनीति की।

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