संदीप कुमार मिश्र: माया नगरी यानी हिन्दी
सिनेमा में मां की भूमिका बेहद खास रही है,तमाम ऐसी फिल्में सिनेमा के पर्दे पर
मां पर आधारित रही है।ऐसे में मां की भूमिका की जब भी चर्चा होगी तो एक नाम आपके
जहन में जरुर आ जाएगा।जी हां ठीक समझे आप, निरूपा राय को ऐसी अभिनेत्री के तौर पर
याद किया जाएगा, जिन्होंने अपने किरदारों से मां के चरित्र को नया आयाम दिया,सिनेमाई पर्दे पर
सजीव कर दिया ।
निरूपा राय जिनका मूल नाम कोकिला है,उनका
जन्म 4 जनवरी 1931 को गुजरात के बलसाड में एक मध्यमवर्गीय गुजराती परिवार में हुआ था । उनके
पिता रेलवे कर्मचारी थे। निरूपा राय ने चौथी तक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उनका
विवाह मुंबई में कार्यरत राशनिंग विभाग के कर्मचारी कमल राय से हो गयी और शादी के
बाद निरूपा राय मुंबई आ गई। उन्हीं दिनों निर्माता और निर्देशक बी.एम.व्यास अपनी
नई फिल्म रनकदेवी के लिए नए चेहरों की तलाश कर रहे थे।जिसके लिए अखबार में
कलाकारों की आवश्यकता का विज्ञापन निकला था।
दोस्तों निरूपा राय के पति फिल्मों के
बेहद शौकीन थे, और अभिनेता बनना चाहते थे।खैर,विज्ञापन देखने के बाद कमल राय अपनी
पत्नी को लेकर बी.एम.व्यास से मिलने गए और अभिनेता बनने की पेशकश की, लेकिन
बी.एम.व्यास ने साफ कह दिया कि उनका व्यक्तित्व अभिनेता के लायक नहीं है, लेकिन
यदि वह चाहे तो उनकी पत्नी को फिल्म में अभिनेत्री के रूप में काम मिल सकता है।
जिसके बाद फिल्म रनकदेवी में निरूपा राय
150 रुपए माह पर काम करने लगी।लेकिन बाद में उन्हें इस फिल्म से अलग कर दिया गया।
निरूपा राय ने अपने सिने करियर की शुरूआत 1946 में प्रदर्शित गुजराती फिल्म
गुणसुंदरी से की। वर्ष 1949 में प्रदर्शित फिल्म हमारी मंजिल से उन्होंने हिंदी फिल्म की ओर भी रुख कर
लिया। ओ.पी.दत्ता के निर्देशन में बनी इस फिल्म में उनके नायक की भूमिका प्रेम
अदीब ने निभाई। उसी वर्ष उन्हे जयराज के साथ फिल्म गरीबी में काम करने का अवसर मिला।
इन फिल्मों की सफलता के बाद निरुपा जी फिल्म जगत में अभिनेत्री के रूप में अपनी
पहचान बनाने में कामयाब हो गई।
दोस्तों वर्ष 1951 में निरूपा राय की एक और बेहद खास फिल्म हर हर महादेव प्रदर्शित हुई। इस
फिल्म में उन्होंने देवी पार्वती की भूमिका निभाई। फिल्म की सफलता के बाद वह
दर्शकों के बीच देवी के रूप में प्रसिद्ध हो गई। इसी दौरान उन्होंने फिल्म वीर
भीमसेन में द्रौपदी का किरदार निभाकर दर्शकों का दिल जीत लिया। पचास और साठ के दशक
में निरूपा राय ने जिन फिल्मों में काम किया, उनमें अधिकतर फिल्मों की कहानी
धार्मिक और भक्तिभावना से परिपूर्ण थी। हालांकि वर्ष 1951 में प्रदर्शित फिल्म सिंदबाद द सेलर में निरूपा राय ने नकारात्मक चरित्र भी
निभाया।
लेकिन निरुपा जी की साल 1953 में प्रदर्शित फिल्म दो बीघा जमीन निरूपा राय के सिने करियर के लिए मील का
पत्थर साबित हुई। विमल राय के निर्देशन में बनी इस फिल्म में वह एक किसान की पत्नी
की भूमिका में दिखाई दी। फिल्म में बलराज साहनी ने मुख्य भूमिका निभाई थी। बेहतरीन
अभिनय से सजी इस फिल्म में दमदार अभिनय के लिए उन्हें अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त
हुई।
वो डायलाग तो आपको याद ही होगा कि,“जाओ, पहले उस आदमी का साइन लेकर आओ जिसने मेरे बाप से साइन लिया था....” याद है न सलीम-जावेद के ये चोटदार संवाद जिसने अमिताभ बच्चन को अपने करियर में
एक नई ऊंचाई बक्षी थी? मगर उन लेखकों का कमाल ये था कि अमिताभ की मां के रूप में सामने खडी निरूपा
राय को भी उतने ही सशक्त संवाद दिये थे। निरूपा जी जवाब में कहतीं हैं कि, “वो आदमी कौन था, जिसने तुम्हारे हाथ पे लिख दिया था कि तुम्हारा बाप चोर है? कोई नहीं... मगर तु तो मेरा अपना बेटा था... मेरा अपना खुन?... तुने अपनी मां के माथे पे ये कैसे लिख दिया कि उसका बेटा एक चोर है?” हिन्दी सिनेमा के इतिहास में रचे गए मां-बेटे के सबसे बेहतरिन द्दश्यों में से
एक उस सीन का अंत जिस अंदाज में निरूपा जी करतीं हैं, वो कौन भुला होगा? “बडा सौदागर बन गया है,
बेटा.... मगर तु अभी इतना अमीर नहीं हुआ कि अपनी मां को
खरीद सके!”।इस फिल्म (दीवार) में
निरुपा राय का बेहतरीन और सशक्त अभिनय दर्शकों को देखने को मिला था।
अंतत: चार बार फिल्मफेयर अवार्ड पाने वाली अपने जमाने
की मशहूर अदाकारा थी निरुपा जी।आज उनके जन्म दिन पर बस यूं ही उनकी याद आ गयी,सोचा
आपके साथ शेयर करुं।क्योंकि मां की भूमिका क्या होती है हमारे जीवन में हम सब
जानते हैं,जींदगी अधूरी सी लगती है मां के बिना। पर्दे पर ही सही,निरुपा राय जी ने
मां के जिस सजीव चरित्र को पर्दे पर उतारा है,वो अविस्मरणीय है।
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