संदीप कुमार मिश्र: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अचानक हुई पाकिस्तान यात्रा को अभी कुछ ही दिन
हुए थे कि आतंकीयों की शगणगाह पाकिस्तान की सरजमी से आये आतंकीयों ने पंजाब के पठानकोट
एयरबेस पर आतंकी हमला कर दिया।और एक बार फिर ये साबीत कर दिया कि वार्ता और आतंकवाद
एक साथ नहीं चल सकते हैं।पाक की नियत को देखकर ना जाने क्यूं ऐसा लगने लगा है कि
पीएम मोदी की पाकिस्तान यात्रा के बाद पठानकोट हमला उसी प्रकार है जैसे अटल जी
द्वारा लाहौर बस यात्रा के बाद कारगिल।
दरअसल किसी ने कल्पना भी नहीं कि थी कि
अफगानिस्तान से भारत आने की बजाय पीएम मोदी नवाज को जन्मदिन पर बदाई देने के लिए
आतंक की सरजमीं पाक भी जा सकते हैं।लेकिन ऐसा हुआ,क्योंकि हमारी कोशिश और प्रयास शांति
और अमन बहाल करने की है।तभी तो पीएम मोदी की यात्रा से विश्वास बढ़ने की आस जग गई।ऐसा
भी लगा कि पाकिस्तान की सरकार वार्ता तो चाहती है,जिससे लोकतंत्र पर आम नागरिक का
विश्वास बढ़ सके।लेकिन मानवता के दुश्मनों को दो देशों के मुखिया की बातचीत रास
नहीं आयी। तभी तो इस यात्रा के फौरन बाद हाफिज सईद का ज़हरीला बयान सामने आया कि मोदी
कि ये यात्रा कैसे हो सकती है? हापिज का कहना था कि पीएम मोदी की यात्रा से पाकिस्तान की जनता का दिल दुखा है और मोदी के इस स्वागत पर मियां नवाज शरीफ
को आवाम को जवाब देना चाहिए।
अपने बयान में हाफिज सईद काबुल और
बांग्लादेश में पीएम मोदी के बयानों का जिक्र भी करता दिखाई दिया।यानि किसी के लिए
भी ये समझना आसान है कि हाफिज आतंक फैलाने के साथ ही हमारे देश और पीएम मोदी की
सियासी यात्राओं और बयानों पर भी बड़े ही बारीकि से नजर रख रहा है।किसी भी मुल्क
के लिए इससे बड़ी विड़ंबना और क्या हो सकती है कि
वहां की सरकार सत्ता में रहते हुए भी कठपुतली की तरह काम करे।लाचार और बेबस
नजर आए।जैसा की हमारे पड़ोसी मुल्क में होता आया है।मजे कि बात तो ये है कि नवाज
शरीफ चाहकर भी तो राहिल शरीफ और हाफिज सईद की जकड़न से नहीं निकल पा रहे हैं।इससे
बड़ा दुर्भाग्य पाकिस्तान के लिए और क्या हो सकता है।
हमारे देश में कयास में पहले से ही
लगाये जा रहे थे कि पीएम मोदी की पाकिस्तान यात्रा के बाद कोई आतंकी हमला देश में हो
ताज्जुब की बात नहीं है।इस नजरीये से देश में अलर्ट भी था और खुफिया एजेंसियों के
इनपुट भी।
लेकिन कांग्रेस ने आरोप लगाया इस इनपुट
के बावजूद हमला रोकने में नाकाम क्यों हुए? जिस पर गृहमंत्री का जवाब भी कहीं
ना कहीं वाजिब दिखाई पड़ता है कि जितनी तैयारी से ये आतंकी आए थे, ऐसा लगा किसी
बड़े हमले की साजिश थी। लेकिन सेना और सुरक्षा एजेंसियों की
मुस्तैदी ने इस बड़े हमले को नाकाम कर दिया।वहीं पाकिस्तान के विशेषज्ञों ने एक
बार फिर सबूत का रोना रोया।वहीं पठानकोट हमले की पड़ताल की गई तो एक बार फिर
आतंकियों द्वारा पूर्व एसपी से छीनी गई कार से मिले कागजात ने ये साफ किया कि पठानकोट
हमला आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद का काम है।पठानकोट में जिस शख्स को आतंकियों ने
बंधक बनाया उसके मोबाइल से पाकिस्तान चार कॉल किए।जिससे एक बात तो साफ गई कि आतंकी
पाकिस्तानी ही थे।
ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि पाकिस्तान
इस बात को कब कूबुल करेगा कि आतंकी उसी की जमीन का इस्तेमाल करते हैं।जबकि इस बात
को सिर्फ हमारा देश ही नही कहता बल्कि विश्व के सभी देश इस बात को मान चुके हैं कि
पाकिस्तान की जमीन ही आतंक की पनाहगार है और बिना किसी डर और भय के पाक में हाफिज
सईद, जकी उर रहमान लखवी, मसूद अजहर जैसे खतरनाक आतंकी खुलेआम इस जमीन पर अपने नापाक मंसूबों को अंजाम
दे रहे हैं।ऐसे में क्या अब पाकिस्तान की सत्ता पर काबीज जनाब नवाज शरीफ साब वास्तव
में आतंकियों और सेना के खिलाफ खड़े होकर विश्व पटल पर सकारात्मकता का परिचय देंगे
या फिर एक बार तख्तापलट झेल चुके मिंया नवाज साब आंख पर पट्टी बांधकर इसी प्रकार
शरीफ बने रहेंगे।
पाकिस्तान को इस बात को मानना होगा कि आतंक
का सबसे बड़ा पनाहगार होता है उसका समर्थन।पाकिस्तान को अपनी छवी सुधारनी है तो
आतंक के खिलाफ लड़ने के लिए पहले उसे इस बात को खुलकर स्वीकार करना होगा कि ये
आतंकी संगठन उसकी जमीन पर ही पल रहे हैं।जिसका सहयोग वहां की सेना ही कर रही
है,जिसपर हर हाल में लगाम लगाना ही होगा।वहीं आतंक के खिलाफ कड़ा कदम उठाते हुए
हाफिज और लखवी जैसे आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई में नवाज शरीफ को भारत का हर हाल
में सहयोग करना चाहिए।
अंतत: एक बात तो स्पस्ट है कि नवाज शरीफ ने जिस गर्मजोशी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
का स्वागत किया उसने उम्मीदें बढ़ गई थी और हैं भी। लेकिन यदि नवाज साब पठानकोट
हमले के बाद कोई कड़ा रुख नहीं दिखाते हैं तो ये या तो उनके डर को दिखाएगा या उनके
दोहरे चेहरे को और फिर शरीफ बने रहना उनके लिए बहुत मुश्किल होगा।
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