“वह पथ क्या पथिक कुशलता क्या,जिस पथ में बिखरे शूल ना हों।
नाविक की धैर्य की कुशलता क्या,यदि धाराएं प्रतिकुल ना हों।।“
संदीप कुमार मिश्र: दोस्तों दिल में कुछ
कर गुजरे का जज्बा हिलोरें ले रहा हो,और उम्मीदों के पंख लगे हों तो कुछ भी संभव
है।जी हां...जीवन के अंधेरे को दूर करने की जिद ने ही आज उस शक्स को ऐसे मुकाम पर
पहुंचा दिया, जहां रोशनी का दिदार करने वाले भी नहीं पहुंच पाते हैं।हम बात कर रहे हैं एक
ऐसे शख्स की,जिसकी आंखें ना होने की वजह से एक समय मां, बाप के लिये वो इन्सान किसी बोझ से कम नहीं थे।
दरअसल दृष्टिहीन श्रीकांत ही वो शक्स
हैं जिनके बुलंद हौंसले ने यह साबित करके दिखा दिया कि कमजोरी को पकड़ कर जिंदगी की
गाड़ी को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।इसके लिये तो संघर्ष करना होगा,लड़ना होगा।इसी
एक जिद और बुलंद हौसलों के सामने आखिरकार सभी को झुकना पड़ा।और दृष्टिहीन होते हुए
भी श्रीकांत बन गए रीयल हीरो...।
खुद 24 वर्षीय दृष्टिहीन श्रीकांत
का कहना है कि वो जन्म से दृष्टिहीन हैं।लेकिन वो अपनी इस बड़ी कमजोरी को कभी हावी
नहीं होने दिये और अपनी पढ़ाई के शौक को पूरा करते हुए विज्ञान विषय से 11वीं पास
करने वाले देश के पहले दृष्टिहीन बनें।इतना ही नहीं वे मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ
टेक्नॉलाजी में प्रवेश लेने वाले पहले गैर अमेरिकी दृष्टिहीन बने। आज यही
दृष्टिहीन श्रीकांत अपने बलबूते से 80 करोड़ टर्नओवर वाली कंपनी के मालिक हैं।जिसपर
हर कोई गर्व करता है।
दोस्तों श्रीकांत की यह बड़ी कंपनी
प्रिंटिंग इंक, कंज्यूमर फूड पैकेजिंग और ग्लू का बिजनेस कर रही है। इस कंपनी में श्रीकांत
बोलेंट इंडस्ट्रीज के संस्थापक और सीईओ हैं। आज उनके एक नहीं, पांच बड़े-बड़े प्लांट हैं,जिसमें 420 लोग सीधेतौर पर काम कर
रहे हैं।अपने काम को और विस्तार देने के लिए श्रीकांत छठवां प्लांट आंध्र प्रदेश
के नेल्लोर के पास श्रीसिटी में बना रहे हैं। जिसमें वो 800 से अधिक लोगों को सीधे रोजगार देंगे। अपने छठवें प्लांट में खासतौर पर श्रीकांत
अपने जैसे दृष्टिहीन और अशक्त लोगों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में रखकर उनके
हौंसलों को बुलंद करेंगे।शायद यही वजह है कि उनके मौजूदा प्लांट में दृष्टिहीनों
की संख्या फिलहाल 60 से 70 फीसदी है।अपने साथियों के साथ मिलकर श्रीकांत 15-18 घंटे बीना रुके थके लगातार काम करते हैं।
श्रीकांत का सफर इतना आसान नहीं था…
दोस्तों दरअसल श्रीकांत को ये मंजिल पाना
इतना आसान नहीं था, क्योंकि उनके जीवन में फैला अंधेरा हर वक्त उनके आड़े आ रहा था। इसी कारण उनकी
पढ़ाई में भी दिक्कत आ रही थी, क्योंकि वो जो विषय पढ़ना चाह रहे थे
उसमें एडमीशन नहीं मिल पा रहा था। साइंस पढ़ने की चाह लिये वो हर स्कूलों की ठोकर
खा रहे थे। ऐसे में उनके रास्ते को आसान करने के लिये उनकी टीचर स्वर्णलता ने उनकी
मदद की और कोर्ट में आवेदन किया।
आखिरकार अथक परिश्रम और मेहनत करने के
बाद कोर्ट ने अपने फैसले में श्रीकांत को साइंस से एडमिशन लेने की अनुमति दे दी।
परीक्षा नजदीक थी, इसके लिए उनकी टीचर ने पूरे नोट्स का ऑडियो अपनी आवाज में बनाकर उन्हें दिया।
एक टीचर की मेहनत उस समय रंग लाई जब परीक्षा में श्रीकांत को 98 फीसदी नंबर मिले। इसी हिम्मत और बुलंद हौंसले के साथ श्रीकांत पास में कुछ ना
होने के बाद भी आगे की मंजिल को छूने निकल पड़े। कड़ी मेहनत करने के बाद कामयाबी
उन्हें हर कदम पर मिलती गई। जिससे आज वो 6 बड़ी कंपनियों के
मालिक बन सभी लोगों को नई दिशा दिखा रहे हैं।
अंतत: कहते हैं कि कुछ ऐसा करके दिखा कि लोग तुझे याद रखें,कल खेल में हम हों ना हों
गर्दिश में तारे रहेंगे सदा...।जीवन की इस कड़वी सच्चाई को श्रीकांत ने सच करके
दिखा दिया।श्रीकांत के जज्बे को सलाम...।
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