संदीप कुमार मिश्र: दोस्तों 26 जनवरी के खास अवसर पर हमारे देश में विदेशी मेहमाननवाजी की परंपरा
शुरु से ही रही है। 26 जनवरी के विशेष अवसर पर
साल 1950 से ही विदेशी सरजमीं के प्रधानमंत्रियों, राष्ट्रपति और राजाओं को बुलाने का चलन रहा है।एक दिलचस्प बात आपको बतादें कि
साल 1950 से 1954 के बीच गणतंत्र दिवस का उत्सव कभी इर्विन स्टेडियम, किंग्सवे, लाल किला तो कभी रामलीला मैदान में होता
था।
लेकिन भारत की आन बान और शान राजपथ पर
परेड की शुरुआत 1955 से हुई।हर साल
अगल-अगल देशों से संबंधों की बेहतरी के लिए उन्हें मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया
जाने लगा।दरअसल इस खास समारोह में पाकिस्तान, चीन से लेकर पड़ोसी राज्य भूटान, श्रीलंका और मोरिशस के अलावा रूस, फ़्रांस और ब्रिटेन के मेहमान रहे हैं।वहीं ब्राज़ील और नाईजीरिया, इंडोनेशिया और यूगोस्लाविया जैसे राष्ट्र भी कई बार परेड का हिस्सा बन चुके
हैं।दोस्तों फ्रांस एक देश है जो सबसे ज्यादा बार गणतंत्र दिवस के समारोह में
मुख्य अतिथि बन सिरकत किया है।
चलिए आपको सिलसिलेवार बताते हैं कि सन
1950 से लेकर अबतक क्रमश: कौन कौन से देस गणतंत्र दिवस पर हमारे मेहमान बने-
साल 1950 में पहली बार इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो भारतीय गणतंत्र के पहले
मेहमान बनें थे।वहीं 1954 में भूटान के राजा-
राजा जिग्मे डोरजी नें मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत की थी।जबकि पहली बार पाकिस्तान
के गवर्नर जनरल गुलाम मुहम्मद 1955 में राजपथ पर
परेड के पहले मुख्य अतिथि बनें। जबकि 1958 में चीन के मार्शल ये यिआनयिंग और 1960 में रुस के राष्ट्रपति किल्मेंट वोरोशिलोव मुख्य अतिथि बनें और हमारे गणतंत्र
दिवस पर भारत की ताकत का लोहा माने।
इसके बाद 1961 में ब्रिटेन की महारानी रानी एलिज़ाबेथ गणतंत्र दिवस समारोह की मुख्य अतिथि
बनीं। वहीं 1963 में कम्बोडिया के राजा नोरोडोम
सिहानाउक और 1965 में पाकिस्तान के कृषि मंत्री राणा
अब्दुल हमिद को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रीत किया गया था।जबकि 1968 में रुस के प्रधानमंत्री एलेक्ज़ेई कोसिजिन, 1969 में बुल्गारिया के प्रधानमंत्री तोदोर ज़िवकोव और 1971 में तन्जानिया के राष्ट्रपति जूलियस तन्ज़ानिया मुख्य अतिथि बनें।
इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए 1972 में मोरिशस के सीवोसगूर रामगुलम,1973 में जायरे के मोबुतु सेसे सेको,1974 में युगोस्लाविया के राष्ट्रपति राष्ट्रपति टीटो,1975 में जाम्बिया के केन्नेथ कौंडा मुख्य अतिथि बनें और ये सिलसिला निरंतर जारी
रहा।
इसी कड़ी में 1976 में फ़्रांस,1977 में पोलैंड,1978 में आयरलैंड,1979 में ऑस्ट्रेलिया,1980 में फिर फ़्रांस,1981 में मैक्सिको,1982 में स्पेन,1983 में नाइजीरिया,1984 में भूटान,1985 में अर्जेंटीना, 1986 में ग्रीस,1987 में पेरू,1988 में श्रीलंका,1989 में वियतनाम,1990 में मौरिशस,1991 में मालदीव्स,1992 में पुर्तगाल,1993 में ब्रिटेन,1994 में सिंगापुर के
प्रतिनिधियों ने गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में शिरकत की।
साल 1995 में दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि
बनें, वहीं 1996 में ब्राज़ील, 1997 में त्रिनिदाद, 1998 में फ़्रांस, 1999 में नेपाल, 2000 में नाइजिरिया, 2001 में अल्जीरिया, 2002 में मौरिशस, 2003 में ईरान, 2004 में ब्राज़ील, 2005 में भूटान, 2006 में सऊदी अरब के प्रतिनिधि मुख्य अतिथि
के तौर पर शामिल हुए।
ये सिलसिला बदस्तूर जारी रही और विश्व
भारत का लोहा मानता रहा...इस क्रम को निरंतर आगे बढ़ाते हुए 2007 में रुस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन, 2008 में फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सर्कोज़ी, 2009 में कज़ाकिस्तान, 2010 में कोरिया, 2011 में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुसिलो बम्बांग युधोयोनो, 2012 में थाइलैंड के प्रधानमंत्री यिन्गलक शिनवात्रा ने भारत आकर गणतंत्र दिवस की
शोभा बढ़ाई और शांति सद्भाव के भारत द्वारा किए जा रहे प्रयास को सराहा।
वहीं 2013 में भूटान,और 2014 में मुख्य अतिथि के तौर पर जापान के प्रधानमंत्री शिंजो
आबे ने गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में शिरतक की।
साल 2015 सत्ता परिवर्तन हो चुका था,देश
की सत्ता पर मोदी सरकार आसीन है तो ऐसे में विशेष रणनीति के तहत प्रधानमंत्री मोदी
नें अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को इस खास अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर
आमंत्रित किया।ये पहली बार हुआ कि विश्व के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र के मुखिया नो
भारत के इस महाउत्सव में शिरकत की।
और अब एक बार फिर फ्रांस के राष्ट्रपति ओलांद
भारत के मेहमान है।जो भारत की शक्ति,और कौशल का शानदार नजारा राजपथ से देखेंगे।
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