संदीप कुमार मिश्र: आस्था और भक्ति हमारी सनातन संस्कृति की पहचान है।हिमालय से
लेकर कन्याकुमारी तक आप कहीं भी जाएं,धर्म की ध्वजा लहराती मिलेगी।दरअसल
आस्था,भक्ति और पर्यटन के लिहाज से दोस्तों उत्तर प्रदेश में अनेकों ऐसे स्थान हैं
जहां आप जा सकते हैं,ऐसा ही एक पावन दरवार है माता विंध्यवासिनी का दरबार। शक्ति
की देवी मां विंध्यवासिनी का पावन मंदिर, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के
विंध्याचल में स्थित है।मां का ये पावन दरबार मुगलसराय से इलाहाबाद रेल मार्ग पर
पड़ता है। माता के इस दरबार को सिद्ध शक्ति पीठ माना जाता है और ये दरबार हमारे
देश के 52 शक्तिपीठों में से एक
है।
जगत जननी मां विंध्यवासिनी का विंध्य पर्वत माला में हमेशा से निवास स्थान रहा
है। धर्म शास्त्रों में एसा कहा गया है कि महाभारत के विराट पर्व में धर्मराज युद्धिष्ठिर
ने मां विंध्यवासिनी की स्तुति की थी। धर्मराज ने कहा भी था कि पर्वतों में
श्रेष्ठ विंध्याचल पर्वत पर मां सदैव विद्यमान रहती हैं। पद्म पुराण में देवी को
मां विंध्यवासिनी कहा गया है। सृष्टि से आरंभ से ही मां विंध्यवासिनी की पूजा का
आख्यान मिलता है। कहा जाता है कि त्रेता युग में प्रभू श्रीरामजी माता सीता के साथ
विंध्याचल आए थे। वहीं मार्केंडेय पुराण के दुर्गा सप्तशती के 11वें अध्याय में भी मां
विंध्यवासिनी की कथा का वर्णन है।मां ने ही शुंभ और निशुंभ नामक दैत्यों का नाश
किया था।
विंध्याचल पर्वत का ये विंध्य क्षेत्र शुरु से ही घने जंगल से घिरा रहा है।
इसलिए ही देवी मां को वन दुर्गा के नाम से भी संबोधित किया जाता है।इस वन क्षेत्र
को अरण्य भी कहा जाता है।ज्येष्ठ मास के शुक्ल
पक्ष की षष्ठी तिथि को यहां मां विंध्यवासिनी की विशेष पूजा की जाती है। मां
विंध्यवासिनी का ये सुंदर दरबार गंगा नदी की पावन जलधारा और विंध्य पर्वत
श्रंखलाओं के बीच में स्थित है।जहां भक्त मां के दरबार में आते हैं तो मन भक्ति
भाव से भर जाता है।क्योंकि मंदिर का वातावरण बड़ा ही मनोहर है।जो भी भक्त यहां आता
है वो पहले मां गंगा के जल में स्नान करता है उसके बाद मां विंध्यवासिनी के दर्शन
करता हैं।मां विंध्यवासिनी के दरबार में भक्त देश ही नहीं विदेशों से भी आते हैं।
साथियों माता के दरबार में लोग अपनी मनोकामना पूर्ती के लिए तो आते ही हैं साथ
ही मुंडन,यज्ञोपवित के लिए भी आते हैं।वहीं नवरात्र के समय मां के दर्शन को यहां
भक्तों का तांता लगा रहता है। तभी तो माता के दोनों नवरात्र के नौ दिनों में मां
विंध्यवासिनी के मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। आपको बता दें कि पावन
नवरात्र के दिनों में माता के श्रृंगार के लिए मंदिर के कपाट चार दिन तक बंद कर
दिए जाते हैं।
इतना ही नहीं माता के दरबार में बड़ी संख्या में ज्योतिष और तांत्रिक
तंत्र-मंत्र की साधना के लिए भी आते हैं। माता के दरबार में अष्टमी के दिन दक्षिण
मार्गी और वाममार्गी तांत्रिकों का जमावड़ा लगता है।नवरात्र के अवसर पर मां
विंध्यवासिनी देवी के मंदिर हर कोई अपनी अर्जी लगाता है।
कहा जाता है कि नवरात्र के समय में माता विंध्यवासिनी मंदिर छोड़कर आसमान में जाकर
पताका में वास करती हैं। इसलिए नवरात्र में भक्त पताका दर्शन करके भी धन्य हो जाते
हैं। मां विंध्यवासिनी का मंदिर प्रात: 4 बजे से लेकर रात्रि 12 बजे तक भक्तों के लिए खुला रहता है।
जब आप विंध्याचल जाएं तो थोड़ी दूरी पर
ही तीन अन्य देवियों के मंदिर दर्शन भी ना भूलें।दरअसल विंध्यवासिनी देवी के मंदिर
से दो किलोमीटर की दूरी पर काली खोह गुफा में महाकाली और अष्टभुजा पहाड़ी पर मां
अष्टभुजा देवी का मंदिर है। कालीखोह गुफा में जाने का रास्ता अत्यंत संकरा है।लेकिन
रोमांच और भक्ति भरा है।
आपको बता दें कि विंध्याचल शहर गंगा नदी के तट पर स्थित है। यहां विंध्याचल
नाम से रेलवे स्टेशन भी है, जहां कुछ रेलगिड़यों का ठहराव है। आप वाराणसी या इलाहाबाद
से चलने वाली नियमित बस सेवाओं से भी विंध्याचल पहुंच सकते हैं। वाराणसी से
विंध्याचल की दूरी सड़क मार्ग से 65 किलोमीटर है। मिर्जापुर से विंध्याचल की दूरी तकरीबन
8 किलोमीटर
है, जबकि इलाहाबाद से विंध्याचल की दूरी 82 किलोमीटर है। आप मिर्जापुर में
रुककर मां के दर्शन करने जा सकते हैं।ऐसे में जब भी समय मिले दोस्तों माता
विंध्यवासिना के दरबार में जरुर हाजिरी लगा आएं।हम तो यही कामना करते हैं कि माता
विंध्यवासिनी आपकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करें।
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