संदीप कुमार मिश्र: वसुधैव कुटुंबकम का
संदेश संपूर्ण संसार में फैलाने के साथ ही तमाम विवादों के बीच आध्यात्मिक गुरू
श्री श्री रवि शंकर की संस्था 'आर्ट ऑफ लिविंग' ने 35 साल पूरे होने के शुअवसर पर दिल्ली में विश्व सांस्कृतिक महोत्सव का बेहद
भव्य,सफल और ऐतिहासिक आयोजन किया।और विश्वभर में श्री श्री ने शांति का और सद्भाव
का संदेश दिया।
दिल्ली में यमुना के तट पर सैकड़ों एकड़
में 155 देशों से जुटे लोगों ने भाषा, धर्म, नस्ल, राष्ट्रीयता की सरहदों से परे हटकर लाखों लोगों ने 1200 फीट लंबे, 200 फीट चौड़े और 40 फीट ऊंचे मंच पर अकल्पनिय कार्यक्रम प्रस्तुत किया।।
श्री श्री के मार्गदर्शन में सांस्कृतिक
कार्यक्रमों के अलावा योग और ध्यान भी हुआ तो देश और दुनिया के तमाम कोनों से
पहुंचे संगीतकारों, गायकों, नर्तकों ने आंखों को सुकुन पहुंचाने वाली छटा भी बिखेरी जो वास्तव में दर्शनीय
थी।कला, संस्कृति और भव्यता से दिल्ली जगमगा रही थी,हर जुबान पर इस महोत्सव की ही
चर्चा हो रही थी।इन सब ने यमुना तट पर बने दुनिया के संभवतः सबसे बड़े मंच पर जो
छटा बिखेरी उसने न सिर्फ तमाम वैश्विक नेताओं के सामने भारत का परचम लहराया।
वैदिक मंत्र से लेकर बॉलीवुड की पेशकश
और हिंदुस्तान की पारंपरिक नृत्यों से लेकर आध्यात्म तक,आर्ट ऑफ लिविंग की ग्रांड
सिंफनी के तहत साढ़े आठ हजार कलाकारों ने 50 तरह के वाद्य यंत्रों
पर नौ संगीत रचनाओं को पेश किया तो वहीं संस्कृत के एक हजार से ज्यादा पंडितों ने
एक स्वर में वैदिक मंत्रों का जाप किया तो महोत्सव में उपस्थित लोग से साथ ही
विश्वभर के श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया और भक्ति रस के संगम में हर किसी को
सराबोर कर दिया।
एक तरफ जहां श्री श्री ने भारत को आध्यात्मिक
विश्वगुरु होने का अहसास कराया तो वहीं हमारी प्राचीन भारत जो न सिर्फ ऋषि मुनियों
और गुरुकुल का देश रहा है बल्कि जो आध्यात्मिक पुनर्जागरण के स्वर्णिम काल में भी
सोने की चिड़िया के रूप में प्रसिद्ध रहा है,इसका भी एहसास कराया।
दूर-दूर से आए लोगों ने जहां इस बारिश
को शुभ कहा तो युवा ब्रिगेड ने रेन डांस समझकर लुत्फ उठाया। न सिर्फ देश की जनता
इस आयोजन के लिए उमड़ पड़ी बल्कि यूरोप और अमेरिका तक के लोग भी महोत्सव के गवाह
बने। जब 1700 कलाकारों ने एक साथ कत्थक और भरतनाट्यम तथा 1500 कलाकारों ने एक साथ
मोहिनीअट्टम और कथकली नृत्य पेश किया, तो ऐसा लगा जैसे एक पल के लिए पूरा
वातावरण ठहर सा गया हो। देशी तो देशी विदेशी कलाकारों में बुल्गारिया के 500 कलाकारों ने होरो नृत्य, 650 अफ्रीकी ढोलवादकों ने अफ्रीकी धुन और 300 थाई नर्तकों ने अपने स्थानीय पारंपरिक नृत्य के जरिए पूरे माहौल को जीवंत बना
डाला। रूस और जापान के कलाकारों ने भी अपनी शानदार प्रस्तुतियां दीं।जो मनमोहक थी।
इस कार्यक्रम के प्रत्यक्ष और
अप्रत्यक्ष रुप में कई और फायदे भी हुए हैं, जो आर्थिक दृष्टि से काफी
महत्वपूर्ण है। जी हां सुस्त कारोबार से परेशान दिल्ली के होटल उद्यमियों को विश्व
सांस्कृतिक महोत्सव से बड़ी राहत मिली,और होटलों के कमरे खचाखच भरे रहे।
धर्म और अध्यात्म से जुड़े लोगों का
कहना है कि प्राचीन काल की भांति एक बार फिर संस्कृति का जुड़ाव नदी के किनारे हुआ।
यमुना नदी के किनारे इस भव्य विश्व सांस्कृतिक महोत्सव में श्री श्री रविशंकर ने
कहा कि इससे दुनिया में भारत की सांस्कृतिक छवि का नवनिर्माण होगा और दुनिया को भारतीयता
की ताकत दिखाने का अवसर मिलेगा।जो निश्चित तौर पर हुआ।
लेकिन एक सवाल अक्सर मन में उठता है कि आखिर
क्यों पर्यावरण के कुछ तथाकथित रक्षक और कुछ खास वर्ग के लोग या फिर कुछ सियासतदां,
श्री श्री रविशंकर जी को खलनायक बनाने पर तूले
रहे ?
हमें सोचना होगा कि जिस इंसान ने जीवनभर
पर्यावरण की रक्षा के क्षेत्र में जुझारू प्रतिबद्धता के साथ काम किया, उनका नाम है श्री श्री रविशंकर। अफसोस तब होता है कि यमुना के रिवरबेड पर हुए असंख्य
अनाधिकृत निर्माणों पर इतना हो हंगामा क्यों नही हुआ ? पूरा कॉमनवेल्थ विलेज यमुना के रिवरबेड पर ही बना।तब तो हंगामा नहीं हुआ। सवाल उठता है कि क्या श्री श्री रविशंकर पर निशाना साधा जा रहा है?
हमें ये भी सोचना होगा कि श्रीश्री के
उत्सव में कमी निकालने वाले क्या भूल गए कि पिछले साल केरल में पम्पा नदी के तट पर
एशिया का सबसे बड़ा ईसाई सम्मेलन हुआ था, जो एक सप्ताह तक चला।जिसमें कई सौ
एकड़ फसलों को राज्य सरकार ने नष्ट करवा दिया था। तब तो सभी सेकुलर नेता खामोश थे।भ्रस्ट
हो चुकी मीडिया भी इस मुद्दे पर एकदम खामोश रही।आपको ता दें कि यह पवित्र नदी केरल
की सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों में से एक है। तब किसी ने नदी के रिवरबेड में
आयोजन और उसके नुकसान की आंशका के मद्देनजर कोई सवाल नहीं खड़ा किया।
हम सब जानते हैं कि दिल्ली में वर्तमान
में यमुना की स्थिति क्या है। शहर भर के कचरे और
उद्योगों के रसायनिक अवशिष्ट ने उसे गंदे नाले में तब्दील कर दिया है।उसमें बीओडी
यानी बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड जीरो पर पहुंच गया है। इसका अर्थ यह है कि यमुना
में कोई जीव जिंदा रह ही नहीं सकता।न तो इसका पानी पीने लायक है और न ही फसलों की
सिंचाई के लिए उपयुक्त है।साब सवाल तो इसपर होना चाहिए था ना कि महोत्सव पर।
दरअसल 'आर्ट आॉफ लिविंग फाउंडेशन' की निंदा तथाकथित लोग महज अल्प जानकारी के आधार पर करते हैं।लेकिन निंदा करने
वाले माननियों को तो श्रीश्री रविशंकर और 'आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन' को उनके द्वारा दशकों से किए गए पर्यावरण संरक्षण के महत्वपूर्ण कार्यों को
ध्यान में रख कर करना चाहिए था। क्योंकि श्रीश्री रविशंकर को करीब से जानने वाले
जानते हैं कि उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में वास्तव में बहुत ही ठोस और
जमीनी कार्य किए हैं।पर्यावरण के प्रति उनकी अथक प्रतिबद्धता को असंख्य लोगों ने
प्रत्यक्ष रूप से देखा है।
श्री श्री के मार्गदर्शन में 'आर्ट आॉफ लिविंग फाउंडेशन' ने कर्नाटक में कई नदियों जैसे कुमुदवती, अर्कावती, वेदवती और पलार नदी तथा तमिलनाडु में नगानदी तथा महाराष्ट्र में घरनी, तेरना, बेनीतुरा व जवारजा नदी को नया जीवन प्रदान किया है।पको बता दें कि इनमें से कई
नदियां या तो सूख चुकी थीं या शहरी विकास की वजह से बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी थीं।
श्री श्री रविशंकर स्वयं कहते हैं- 'नदियों¨का पुनरुद्धार करना जीवन का पुनरुद्धार करने जैसा है।'
ऐसे में महज अपनी सियासी गोटियां सेकने के लिए श्रीश्री रविशंकर की भूमिका को नकार दिया गया। दरअसल नदियों के पुनरुत्थान और
जल संरक्षण के कार्यक्रम चलाने के अलावा श्रीश्री ने सस्टेनेबल फार्मिंग के
क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण काम किया है। वे पूरी दुनिया में करीब एक करोड़ वृक्ष
लगाने के बड़े काम को भी कर रहे हैं अपने साथियों के साथ। ये कार्य वे संयुक्त
राष्ट्र मिलेनियम डवलपमेंट प्रोग्राम के साथ मिल कर रहे हैं।जाहिर है, विश्व संस्कृति उत्सव पर विवाद खड़ा करने वालों को श्रीश्री को लेकर ये सारी
जानकारी नहीं है या वे ढोंग रचने को ही अपना 'धर्म' मानते हैंI
कहना गलत नहीं होगा कि श्रीश्री एक
राष्ट्रीय धरोहर हैं।वह एक ऐसे मनुष्य हैं, जिन्होंने बार-बार और हर बार
मानवीय भावनाओं के उत्थान के लिए बिना थके,बिना रुके काम किया है,और कर रहे हैं।भारत
में उनके द्वारा किए गए प्रयास वंदनिय हैं,जिसे यूवा पीढ़ी सदैव याद रखेगी।लेकिन
बेहद अफसोस और शर्मनाक है कि हमारे समाज का एक वर्ग पर्यावरण के प्रति श्री श्री
की प्रतिबद्धता पर सवाल उठा रहा है।
अंतत: मैं उन सभी सवाल उठाने वाले तथाकथित माननियों से सिर्फ यही कहना चाहूंगा कि श्री
श्री रविशंकर जी का उद्धेश्य सिर्फ इतना है कि ध्यान और वैदिक परम्परा में निहित
प्राचीन ज्ञान के माध्यम से मानवीय मूल्यों का उत्थान हो और भारत की संस्कृति और
भी संबृद्ध और विशाल हो।