Wednesday, 24 October 2018

Shubh Diwali 2018: जानिए कब है दिवाली, क्या है लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त और क्या है पूजा विधि



संदीप कुमार मिश्र: सनातन हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला विशेष त्योहार है दिवाली।जिसे कार्तिक महीने की अमावस्या के दिन बड़े ही विधि विधान के साथ मनाया जाता है । इस बार दिवाली 7 नवंबर 2018 को देशभर में मनाई जाएगी। हमारे हिन्दू धर्म शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि भगवान राम चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात अयोध्या लौटे थे। राम जी के आने की खुशी में समस्त अयोध्यावासियों ने अपने-अपने घर में घी के दिए जलाए थे जिससे अमावस्या की काली रात भी रोशन हो गई थी। इसलिए दिवाली को प्रकाशोत्सव पर्व भी कहा जाता है।इस खास अवसर पर माता लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है।

आईए जानते हैं लक्ष्मी पूजा का शुभ-मुहूर्त:
लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त: शाम 17:57 से 19:53 तक।
प्रदोष काल: शाम 17:27 बजे से 20:06 बजे तक।
वृषभ काल: 17:57 बजे से 19:53 बजे से तक।


जाने क्या है दिवाली पूजा विधि
हिन्दू धर्म में पूजा का विशेष महत्व है।सभी खास अवसरों पर विधि विधान से पूजा की जाती है।दिवाली में हमें पूजन के लिए सबसे पहले भगवान श्री गणेश जी का ध्यान करना चाहिए और फिर गणपति बप्पा को स्नान कराकर नए वस्त्र पहनाने चाहिए और फिर फूल अर्पित करना चाहिए।इसके बाद माता लक्ष्मी जी का पूजन हमें प्रारंभ करना चाहिए।जिसके लिए मां लक्ष्मी की प्रतिमा को पूजा स्थान पर रखकर मां लक्ष्मी का आवाहन करना चाहिए और फिर हाथ जोड़कर प्रार्थना करनी कि वो हमारे घर कुटूंब में आएं और निवास करें।इन सभी कार्यों को करने के बाद माता लक्ष्मी जी को जल, पंचामृत और फिर जल से पुन: स्नान करवाएं। वस्त्र अर्पित करें और फिर आभूषण और माला पहनाएं।इत्र अर्पित कर कुमकुम का तिलक लगाकर धूप दीप जलाएं और माता के पैरों में गुलाब के फूल अर्पित करें। इसके बाद बेलपत्र माता के पैरों के पास रखें। 11 या 21 चावल अर्पित कर सप्रेम सपरिवार माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की आरती गाएं, बाद परिक्रमा करें और भोग लगाकरर पूरे घर में दीपक जलाएं ।।
।।जय मां लक्ष्मी।।जय श्री गणेश।।शुभ दीपावली।।


Shubh Diwali 2018: जानिए दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश की कैसी मूर्ति की पूजा करने से घर में होगी धन वर्षा



संदीप कुमार मिश्र :  दीपों का त्योहार दिवाली।खुशियों का त्योहार दिवाली।अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का त्योहार दिवाली।दीपावली सिर्फ देश ही नहीं विदेशों में भी बड़े ही धूमधाम के साथ मनायी जाती है।हर वर्ष कार्तिक महीने की अमावस्या के दिन दीपावली का त्योहार मनाया जाता है।
दोस्तों दीपावाली का त्योहार इस साल 7 नवंबर 2018 को मनाई जाएगी।आपको बता दें कि  दिवाली के इस खास पर्व पर धन की देवी माता लक्ष्मी और बुद्धि के देवता लंबोदर भगवान गणेश की पूजा की जाती है।हर साल दिवाली पर  घर में नई लक्ष्मी और गणेश की मूर्ति लाने का विधान है।
चलिए आपको बताते हैं कि हमें दिवाली पर पूजा के लिए हमे लक्ष्मी और गणेश जी की कैसी मूर्ति खरीदनी चाहिए जिससे घर में बरकत और खुशहाली आए...

गणेश की मूर्ति खरीदते समय इन बातों का रखें ध्यान-
1.जब भी आप लक्ष्मी गणेश की मूर्ति  खरीदें,एक बात का अवश्य ख्याल रखें कि दोनो मूर्तियां एक साथ जुड़ी हुई ना हो, दोनों विग्रह अलग-अलग होने चाहिए।
2.भगवान गणेश की मूर्ति में उनकी सूंड बाएं हाथ की तरफ मुड़ी हो ना कि दाईं तरफ।क्योंकि दाईं तरफ मुड़ी हुई सूंड शुभ नहीं होती है।
3.भगवान गणेश को मोदक प्रिय है इसलिए ऐसी मूर्ति खरीदें जिसमें गणेश जी के हाथ में मोदक हो। ऐसी मूर्ति सुख-समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।
4.मूर्ति में गणेश जी का वाहन मूषक भी अनिवार्य है।
5.दिवाली पर सोने, चांदी, पीतल या अष्टधातु या क्रिस्टल की मूर्ति खरीदना शुभ होता है।

लक्ष्मी की मूर्ति खरीदते समय इन बातों का रखें ध्यान
1.मां लक्ष्मी की ऐसी मूर्ति कभी ना खरीदें जिसमें मां लक्ष्मी उल्लू पर विराजमान हों। ऐसी मूर्ति को काली लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है।
2.कमल पर विराजमान माता लक्ष्मी की मूर्ति खरीदनी चाहिए जिसमें उनका हाथ वरमुद्रा में हो और धन की वर्षा करता हो।
3.हमेशा माता लक्ष्मी की मूर्ति बैठी हुई मुद्रा में ही खरीदें ना कि खड़ी हुई मुद्रा में।

जानिए क्यों करते नई मूर्ति की पूजा
ऐसी मान्यता है कि पुराने समय में सिर्फ धातु और मिट्टी की मूर्तियों का ही चलन था । धातु की मूर्ति से ज्यादा मिट्टी की मूर्ति की पूजा होती थी। जो हर साल खंडित और बदरंग हो जाती थी,इसलिए नई मूर्ति हर वर्ष घर में लाई जाती है। वहीं ऐसा भी माना जाता है कि कुम्हारों की आर्थिक मदद को ध्यान में रखते हुए नई मूर्ति खरीदने की शुरुआत की गई।साथ ही ऐसा भी कहा जाता है कि नई मूर्ति एक आध्यात्मिक विचार का भी संचार करती है जो गीता में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने दिया है। नई मूर्ति लाने से घऱ में नई ऊर्जा और शक्ति का संचार होता है।
दिवाली आपके जीवन में खुशहाली उन्नति और तरक्की लेकर आए हम यही कामना करते हैं।
।।शुभ दीपावली।।


Monday, 22 October 2018

शरद पूर्णिमा 2018 : चाहिए रोग और कर्ज से मुक्ति तो करें ये उपाय



संदीप कुमार मिश्र: सोलह कलाओं से युक्त चंद्रमा की शीतलता शरद पूर्णिमा के दिन देखते ही बनती है।इस बार शरद पूर्णिमा 24 अक्टूबर को मनाई जायेगी। शरद पूर्णिमा सभी बारह पूर्णिमाओं में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।

कहते हैं कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र किरणें इस धरा पर अमृत बरसाती हैं। इसीलिए इस दिन खीर बना कर खुले आसमान के नीचे मध्य रात्रि में रखने का विधान बताया गया है।क्योंकि रात में चन्द्रमा कि किरणों से जो अमृत वर्षा होती है, वह खीर को भी अमृत समान बना देती है।ऐसा करने से खीर में चंद्रमा से जनित दोष शांत हो जाता है और उसमें आरोग्य प्रदान करने क्षमता आ जाती है।कहते हैं कि शरद पूर्णिमा के खीर रुपी प्रसाद को ग्रहण करने से मनुष्य किसी भी प्रकार के मानसिक कष्टों से मुक्त हो जाता है।

जानिए शरद पूर्णिमा का पौराणिक महत्व
कहते हैं शरद पूर्णिमा के दिन ही योगेश्वर भगवान् कृष्ण ने गोपियों संग महारास रचाना आरम्भ किया था।जैसा कि देवीभागवत महापुराण में भी कहा गया है कि, गोपिकाओं के अनुनय विनय पर भगवान् कृष्ण ने चन्द्र से महारास का संकेत दिया जिसे चन्द्र ने योगेश्वर का मिलन संकेत समझते ही अपनी शीतल रश्मियों से प्रकृति को आच्छादित कर दिया। जन्द्र किरणों ने ऐसी लालिमा बिखेरी की प्रभु कृष्ण के चहरे पर सुंदरता देखते ही बनती थी।ऐसी मनमोहक अद्वितिय छवि जिसे देखने के लिए अनन्य जन्मों के प्यासे बड़े बड़े योगी, मुनि, महर्षि और भक्त गोपिकाओं के रूप में भगवान श्रीकृष्ण की लीला रूपी महारास ने समाहित  हो गए और अपनी सुधबुध खोकर सब कृष्णमय हो गए।कृष्ण और गोपिकाओं का अद्भुत प्रेम देख कर चन्द्र ने अपनी सोममय किरणों से अमृत वर्षा आरम्भ कर दी जिसमे भीगकर गोपिकाएं अमरता को प्राप्त होकर भगवान् कृष्ण के अमर प्रेम की गवाह और भागीदार बन गईं।

कर्ज से मुक्ति माने का दिन
हमारे धर्म शास्त्रों में शरद पूर्णिमा को जागर व्रत, यानी कौन जाग रहा है व्रत भी कहते हैं।कहते हैं कि शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी जी की पूजा सभी कर्जों से हमें मुक्ति दिलाती हैं।इसलिए शरद पूर्णिमा को कर्ज से मुक्ति का दिन भी कहा जाता है । शरद पूर्णिमा की रात्रि को हमें कर्ज से मुक्ति पानो के लिए श्रीसूक्त का पाठ, कनकधारा स्तोत्र, विष्णु सहस्त्रनाम का जाप और भगवान् कृष्ण का मधुराष्टकम् का पाठ करना चाहिए जिससे हमें ईष्ट कार्यों की सिद्धि प्राप्त होती है।साथ ही रोग से मुक्ति पाने के लिए मोती या स्फटिक की माला से ॐ सों सोमाय मंत्र का जप करना चाहिए साथ ही जिन्हें लो ब्ल्ड प्रेशर, पेट,ह्रदय,नजला-जुखाम,कफ,आखों की परेशानी हो वे आज के दिन चन्द्रमा की आराधान करें।इन सभी प्रपकार के विकारों से छुटकारा मिल जाएगा।साथ ही जिन विद्यार्थियों का मन पढ़ाई में न लगता हो वे चन्द्र यन्त्र धारण करके परीक्षा अथवा प्रतियोगिता में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं।इस प्रकार से शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व हमारे धर्म शास्त्रों में बताया गया है।।


शरद पूर्णिमा 2018:जानिए सरल उपाय जिससे होगी घर पर धन की बरसात



संदीप कुमार मिश्र: शरद पूर्णिमा के लिए पूर्णिमा तिथि की शुरुआत इस बार 23 अक्टूबर की रात्री 10:36 पर होगी और पूर्णिमा तिथि का समापन 24 अक्टूबर की रात्री 10:14 पर होगा।इस लिहाज से पूर्णिमा की पूजा, व्रत और स्नान बुधवार यानी 24 अक्टूबर को ही होगा। ऐसा कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त होता है।जनसामान्य शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा या कोजागरी के नाम से भी जानते हैं।कहते हैं कि पूर्णिमा की रात को माता लक्ष्मी स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर प्रकट होती हैं और इस रात को जो भी साधक मां लक्ष्मी जी का पूजा करता हुआ नजर आता है मां की उस पर विशेष कृपा बरसती हैं।

जानिए शरद पूर्णिमा पर पूजा करने से क्या होता है लाभ
शरद पूर्णिमा की रात्रि जब चारों तरफ चांद अपनी रोशनी बिखेरता है उस समय मां लक्ष्मी की पूजा करने से धन का लाभ होता है।कहते हैं कि मां लक्ष्मी को सुपारी बहुत पसंद है।इसलिए मां की पूजा में सुपारी का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए। पूजा के बाद सुपारी पर लाल धागा लपेटकर उसको अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि से पूजन करके उसे तिजोरी में रखने से कभी धन की कमी नहीं होती है।

शरद पूर्णिमा की रात्रि को हनुमान जी के सामने चौमुखा दीपक जलाना चाहिए। इससे घर में सुख शांति बनी रहती है।वहीं इस रात भगवान शिव को खीर का भोग भी लगाना चाहिए।

उपाय-खीर को पूर्णिमा वाली रात छत पर रखें। भोग लगाने के बाद उस खीर का प्रसाद ग्रहण करें। इस उपाय से भी कभी पैसे की कमी नहीं होती है।



करवा चौथ2018: अखंड सुहाग का व्रत,जाने पूजा का देश के विभिन्न शहरों में क्या होगा शुभ मुहूर्त



संदीप कुमार मिश्र: करवा चौथ अखंड सुहाग का व्रत है जिसे हमारे भारतीय समाज में सुहागिन महिलाएं बड़ी ही निष्ठा के साथ रखती हैं। इस बार करवा चौथ का त्योहार 27 अक्‍टूबर,दिन शनिवार को है। करवा चौ‍थ पर महिलाएं अपने अखंड सुहाग के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर सौभाग्य की कामना करती हैं।इस विशेष पर्व पर महिलाएं संध्या में सोलह श्रृंगार कर चंद्रमा की पूजा करती हैं और चांद को छन्नी में देखने के बाद अपने पति परमेश्वर के दर्शन कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।

करवा चौथ में चंद्र उदय और व्रत खोलने का शुभ मुहूर्त-
दिल्ली- रात 8 बजकर 1 मिनट,चंडीगढ़- शाम 7 बजकर 57  मिनट, देहरादून- शाम 7 बजकर 52 मिनट, पटियाला, लुधियाना- रात 8 बजे,पटना- शाम 7 बजकर 46 मिनट,लखनऊ, वाराणसी- शाम 7 बजकर 40 मिनट,कोलकाता- शाम 7 बजकर 22 मिनट, जयपुर- रात 8 बजकर 07 मिनट,जोधपुर- रात 8 बजकर 20 मिनट,मुंबई- रात  8 बजकर  31 मिनट,बेंगलुरु- रात 8 बजकर 22 मिनट,हैदराबाद- रात 8 बजकर 22 मिनट

पूजन के समय इन मंत्रों का करें जाप
पूजन के लिए ऊं शिवायै नमः से पार्वती जी का, ऊं नमः शिवाय से श्री शिव जी का, ऊं गं गणपतये नमः से गणेश जी का, ऊं हनुमते नमः से कार्तिकेय जी का, ऊं सोम सोमाया नमः से चंद्र देव का पूजन-अर्चन करें।

करवाचौथ के व्रत की सरल पूजन विधि-विधान
जो भी माताएं बहने इस व्रत को रखती हैं उन्हे प्रात: सूर्योदय से पहले स्नान कर व्रत रखने का संकल्प लेना चाहिए और फिर संपूर्ण आहार जैसे मिठाई, फल, सेवईं, पूरी ग्रहण करके व्रत का शुभारंभ करना चाहिए।करवा चौथ पर भगवान शिव का परिवार सहित और श्रीकृष्ण की स्थापना करनी चाहिए साथ ही रिद्धि सिद्धि के दाता भगवान श्रीगणेश जी को पीले फूलों की माला, लड्डू और केले का प्रसाद चढ़ाना चाहिए।

भगवान शिव और माता पार्वती को बेलपत्र और श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करने के साथ ही श्रीकृष्ण कन्हैया को माखन-मिश्री और पेड़े का सप्रेम भोग लगाना चाहिए और धूप दीप जलाना चाहिए।

महिलाएं करवाचौथ पर मिटटी के कर्वे पर रोली से स्वस्तिक बनाकर, कर्वे में दूध, जल और गुलाब जल मिलाकर रखें और रात को छलनी के प्रयोग से चंद्र दर्शन करने के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य दें और करवा चौथ की कथा या फिर कहानी अवश्य सुने।कथा श्रवण के पश्चात अपने से बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त कर पति को प्रसाद दें और फिर भोजन कराकर स्वयं भोजन ग्रहण करें।

करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ का दिन और संकष्टी चतुर्थी एक ही दिन होता है।संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा करने और उपवास रखने का विधान है । करवा चौथ के दिन मां पार्वती की पूजा करने से अखंड सौभाग्‍य का वरदान प्राप्‍त होता है। मां के साथ-साथ उनके दोनों पुत्र कार्तिक और गणेश जी की भी पूजा की जाती है।

Saturday, 20 October 2018

Kumbh Mela 2019: प्रयागराज में कुंभ मेला इस बार क्यों है खास, क्या है स्नान की तारीख जानिये


संदीप कुमार मिश्र: संगम नगरी इलाहाबाद के संगम तट पर  2019 में इस बार अर्ध कुंभ नहीं बल्कि पूर्ण कुंभ का आयोजन किया जाएगा।जिसका फैसला उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यजुर्वेद के मंत्र ऊं पूर्णमद: पूर्णमिदं से प्रेरित होकर लिया है। आपको बता दें कि प्रदेश सरकार हर 6 साल में आयोजित होने वाले विशाल धार्मिक आयोजन अर्ध कुंभ को कुंभ कहने का फैसला लिया है, वहीं प्रत्येक 12 साल में होने वाले कुंभ को महाकुंभ कहा जाएगा इसका निर्णय लिया।
हिन्दू सनातन धर्म में कुंभ मेला विशेष महत्व रखता है।इस आयोजन को मेला के तौर पर नहीं, बल्कि महापर्व के रूप में देखा जाता है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दौरान पावन गंगा,यमुना और सरस्वती नदी के संगम स्थल में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
आपको बताते चलें कि हर 12 साल बाद कुंभ मेला आता है और दो बड़े कुंभ मेलों के मध्य एक अर्धकुंभ मेला भी लगता है। इस बार साल 2019 में आने वाला कुंभ मेला दरअसल, अर्धकुंभ ही है,लेकिन इसे यजुर्वेद के मंत्र ऊं पूर्णमद: पूर्णमिदं से प्रेरित होकर कुंभ कहा जाएगा, ऐसी सरकार ने घोषणा की है।साथ ही इस बार के इस विशाल आयोजन की तैयारियों को देखें तो अर्धकुंभ मेले जैसा नही बल्कि पूर्ण कुंभ मेला जैसे ही भव्य समारोह देखने को मिलेगा।

प्रयागराज में 2019 में लगने वाला कुंभ कई मायनो में बेहद खास होगा।इस बार आयोजित होने वाले कुंभ मेले में कई नई चीजें श्रद्धालुओं को देखने को मिलेंगी।खासकर युवाओं के लिए सेल्फी प्वाइंट से लेकर वाटर एम्बुलेंस तक की विशेष तैयारीयां की जा रही है। मेले में इस बार एक अटल कॉर्नर भी बनाया जाएगा, जो वास्तव में एक इंफॉर्मेशन डेस्क होगा।ऐसा कहा जा रहा है कि इस बार कुंभ मेला में रामलीला का भी आयोजन होगा, जिसे अंतरराष्ट्रीय बैले कलाकारों का एक समूह प्रस्तुत करेगा।इस विशेष रामलीला आयोजन 55 दिनों तक चलेगा।साथ ही संगम नगरी में तकरीबन 10 एकड़ जमीन पर संस्कृत ग्रामबसाया जाएगा, जहां कुंभ के महत्व और इतिहास के बारे में संपूर्ण जानकारी दी जाएगी।

आईए जानते हैं 2019 कुंभ मेले की शाही स्नान की तारीख
14-15 जनवरी 2019: मकर संक्रांति (पहला शाही स्नान)
21 जनवरी 2019: पौष पूर्णिमा
31 जनवरी 2019: पौष एकादशी स्नान
04 फरवरी 2019: मौनी अमावस्या (मुख्य शाही स्नान, दूसरा शाही स्नान)
10 फरवरी 2019: बसंत पंचमी (तीसरा शाही स्नान)
16 फरवरी 2019: माघी एकादशी
19 फरवरी 2019: माघी पूर्णिमा
04 मार्च 2019: महा शिवरात्रि



Wednesday, 17 October 2018

जानिए पंचामृत का महत्व,मंत्र और बनाने की विधि



संदीप कुमार मिश्र : हमारे हिंदू सनातन धर्म में किसी भी पूजा पाठ के बाद भगवान की आरती की जाती है फिर प्रसादस्वरुप सबसे पहले भगवान का पंचामृत दिया जाता है।हमारे हिंदू धर्म में पंचामृत का विशेष महत्व है। इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है तथा मस्तक से लगाने के बाद ही इसका सेवन किया जाता है।
पंचामृत ग्रहण करने का मंत्र भी हमारे धर्म शास्त्रों में बताया गया है :
पंचामृत मंत्र
पंचामृत सेवन करते समय निम्र श्लोक पढऩे का विधान है :-
अकालमृत्युहरण सर्वव्याधिविनाशनम्।
विष्णुपादोदंक (पीत्वा पुनर्जन्म न) विद्यते।।
कहने का भाव है कि, भगवान विष्णु के चरणों का अमृतरूपी जल सभी तरह के पापों का नाश करने वाला है। यह औषधि के समान है। अर्थात पंचामृत अकाल मृत्यु को दूर रखता है। सभी प्रकार की बीमारियों का नाश करता है। इसके पान से पुनर्जन्म नहीं होता।

आईए जानते हैं पंचामृत बनाने की सही विधि क्या है..
पंचामृत बनाना बहुत ही सरल है, पंचामृत बनाने में आपको गाय का दूध,गाय के दूध की दही,गुड़,शहद, तुलसी दल, गंगाजल,मेवा, मखाने, चिरौंजी, किशमिश की आवश्यकता होगी।जिसे आप तांबे के किसी भी बड़े पात्र में डालकर ठीक से मिला लें,जिससे की सब मिल जाए।
पंचामृत सेवन के आधुनिक वैज्ञानिक लाभ
पंचामृत में कैल्शियम भरपूर मात्रा में होता है जिनसे हमारी हड्डियां मज़बूत बनती हैं।
पंचामृत का सेवन दिमाग को शांत और गुस्से को कम करता है।
पंचामृत से हमारा हाज़मा ठीक रहता है और भूख न लगने की समस्या दूर होती है।

ध्यान रखने योग्य बातें -
पंचामृत आप जिस दिन बनाएं उसी दिन खत्म कर दें। अगले दिन के लिए न रखें।
पंचामृत हमेशा दाएं हाथ से ग्रहण करें, इस दौरान अपना बायां हाथ दाएं हाथ के नीचे सटा कर रखें।
पंचामृत को ग्रहण करने से पहले उसे सिर से लगाएं, फिर ग्रहण करें, फिर हाथों को सिर पर न लगाएं।
पंचामृत हमेशा तांबे के पात्र से देना चाहिए। तांबे में रखा पंचामृत इतना शुद्ध हो जाता है कि अनेकों बीमारियों को हर सकता है। इसमें मिले तुलसी के पत्ते इसकी गुणवत्ता को और बढ़ा देते हैं। ऐसा पंचामृत ग्रहण करने से बुद्धि स्मरण शक्ति बढ़ती है।
पंचामृत का सेवन करने से शरीर रोगमुक्त रहता है।
तुलसी रस से कई रोग दूर होते हैं और इसका जल मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है।
पंचामृत अमृततुल्य है। इसका नियमित सेवन शरीर को रोगमुक्त रखता है। तुलसी के पत्ते गुणकारी सर्वरोगनाशक हैं। यह संसार की एक सर्वोत्तम औषधि है।
 (संकलन)