विकास गोयल: हमारे सनातन
हिंदू धर्म में प्रत्येक व्रत और त्यौहारों को मनाने का विशेष महत्व, उद्देश्य होता
है।क्योंकि हमारे सभी तीज त्योहार सामाजिक कल्याण के साथ ही व्यक्तिगत और
पारिवारिक रिश्तों से जुड़े होते है ।ऐसा ही एक त्योहार संतान की रक्षा के लिए
माताएं रखती हैं जीतिया व्रत का कहा जाता है। आश्विन मास की कृष्ण अष्टमी तिथि को
माताएं अपनी संतान की सुरक्षा, सेहत और दीर्घायु की कामना के लिए व्रत रखती हैं।इस व्रत को
जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहते हैं। कुछ क्षेत्रों में यह व्रत जिउतिया व्रत भी कहा
जाता है।
आइये जानते हैं क्या है जीवित्पुत्रिका व्रत की पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार जीतिया व्रत का संबंध महाभारत से
माना जाता है।कहते हैं कि अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिये अश्वत्थामा
पांडवों के वंश का नाश करने के अवसर ढूंढता रहता था । ऐसे में एक दिन अवसर पाकर अश्वत्थामा
पांडव समझकर सोए हुए द्रौपदी के पांच पुत्रों की हत्या कर दी। जिसका बदला लेने के
लिए अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बना लिया और उससे उसकी दिव्य मणि छीन ली।जिससे
अश्वत्थामा का क्रोध और बढ़ गया और उसने उत्तरा की गर्भस्थ संतान पर ब्रह्मास्त्र
का प्रयोग किया, जिसे रोक पाना किसी के लिए भी असंभव था।
ऐसे में भगवान श्री कृष्ण ने अपने समस्त पुण्यों का फल
उत्तरा को समर्पित किया। जिससे उत्तरा के गर्भ में मृत संतान को जीवन मिल पाया।
मृत्योपरांत जीवनदान मिलने के कारण ही इस संतान को जीवित्पुत्रिका कहा गया।आपको
बता दें कि यह संतान कोई और नहीं बल्कि राजा परीक्षित ही थे।तभी से आश्विन अष्टमी
को जीवित्पुत्रिका (जीतिया, जिउतिया) व्रत के रूप में मनाया जाने लगा।
ऐसी और भी कई कथाएं हमारे धर्म ग्रंथों में मिलती है।जिनका
मूल उद्धेश्य संतान के लिए माताओं का वात्यल्य है कि मां कैसे अपनी संतान के लिए
निरंतन उन्नति और तरक्की का मार्ग प्रशस्त करने लिए ईश्वर से कामना और प्रार्थना
करती हैं।
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