संदीप
कुमार मिश्र : तमाम उलझनो और मुश्किलों की अनंत
सुरंगो को पार करते हुए पांच दशक बाद अपने दसवें दशक के आखिरी पड़ाव पर आखिरकार
सरदार सरोवर बांध के दरवाजे खुल ही गए। दरअसल
दुनिया के दूसरे सबसे ऊंचे बांध को बनाने के रास्ते में अनेक अड़चनें आईं, लेकिन छप्पन साल बाद कामयाबी मिल गई,ये अलग बात है
कि इस कामयाबी को पाने में लागत कई गुना बढ़ गई।
मित्रों
सरदार सरोवर बांध से आपको बता दें कि सिर्फ गुजरात ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश,
महाराष्ट्र और राजस्थान के सूखाग्रस्त
इलाकों की तकरिबन बीस लाख हेक्टेयर कृषि भूमि के लिए सिंचाई का पानी और लाखों-लाखों
लोगों तक पीने का शुद्ध पानी पहुंचाना संभव हो पाएगा और साथ ही छह हजार मेगावाट
बिजली का उत्पादन भी संभव हो सकेगा।
यकिनन
देश के लिए ये बड़ी उपलब्धि है।ये जानना आपके लिए जरुरी है कि इस बांध की
परिकल्पना सरदार वल्लभ भाई पटेल ने की थी और इसकी नींव देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित
जवाहरलाल नेहरू ने डाली थी। उस समय की बात करें तो इस बांध की ऊंचाई अस्सी मीटर से
कुछ अधिक रखने की अनुमति मिली थी,लेकिन लगातार इसकी ऊंचाई बढ़ाने की मांग उठती
रही,जिस के लिए तमाम आंदोलन भी होते रहे। परिणाम स्वरुप मध्य प्रदेश और गुजरात
राज्य की सरकारों के बीच इस बांध को लेकर मतभेद भी उजागर होते रहे। कई बार तो
मामला अदालत की चौखट पर भी पहुंचा।बांध की ऊंचाई को लेकर देश के पीएम और उस वक्त
के गुजरात के सीएम रहते नरेंद्र मोदी जी ने भी इसकी ऊंचाई बढ़ाने की मांग पर अनशन
तक किया था। जिसके बाद करीब एक सौ उनतालीस मीटर ऊंचा यह बांध बन कर तैयार हुआ और देश
के पीएम द्वारा 17 सितंबर 2017 को जनता को समर्पित किया गया।
बांध
की ऊंचाई का विरोध करने की जो सबसे बड़ी वजह थी वो ये कि ऊंचाई जितनी बढ़ती जाएगी उससे डूबने वाले गांवों की संख्या बढ़ती जाएगी ।और डूब क्षेत्र वाले
लोंगों के पुनर्वास को लेकर कई अड़चनें थीं।यही वजह थी इस बांध से प्रभावित होने वाले
लोगों के समुचित पुनर्वास को लेकर तमाम आंदोलन हुए और मांगे उठती रही। इस बांध के बनने
के बाद करीब ढाई सौ गांव डूब जाएंगे और करीब पांच लाख लोग बेघर हो जाएंगे।इस बांध
के बनने से मध्य प्रदेश के एक सौ बानबे गांव और एक कस्बे के चालीस हजार से ऊपर
परिवार बेघर हो जाएंगे ऐसा नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े लोगों का कहना है। ठीक इसी
प्रकार से गुजरात और महाराष्ट्र के भी कई दर्जन गांवों के डूबने की आशंका जताई
जाती रही है।यही वजह है कि बांध से प्रभावित हो रहे लोगों के लिए मुआवजे और पुनर्वास
को लेकर आंदोलन होते रहे हैं।
बहरहाल
जिस प्रकार से आबादी का बढ़ता बोझ और देश में जल और बिजली की लगातार खपत बढ़ रही है, उसमें वर्षाजल संचय और नदियों पर जगह-जगह बांध बनाने की जरूरत पर बल
दिया जाना जरुरी है।जिसके लिहाज से देखें तो सरदार सरोवर बांध के दरवाजे खुलने से
सिंचाई, पेयजल और बिजली उत्पादन जैसी समस्याओं
को निपटाने में काफी हद तक मदद मिलेगी।क्योंकि इस बांध से निकलने वाली नहरों से
चार राज्यों के काफी बड़े हिस्से तक पानी पहुंचाया जा सकेगा।
लेकिन
इस बांध से जिनका आशियाना छिन गया और जिनके सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया
है उसकी हर स्तर से सहायता और मदद की जिम्मेदारी भी सरकारों को करना चाहिए।क्योंकि
जितनी आवश्यकता बांध की है उतनी ही उन जिंदगीयों को बचाने की भी जो इसके प्रभाव से
घर से बेघर हो गए या हो जाएंगे।
खैर
उम्मीद करनी चाहिए कि देस के प्रधान सेवक जो कि सरदार सरोवर बांध के हर पहलू से
बखुबी परिचित हैं वो इसके नफा नुकसान पर शिघ्रता से गौर करेंगे।
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