संदीप
कुमार मिश्र:
भक्तिभाव के साथ मनाए जाने वाले नवरात्रि के छठे दिन आदिशक्ति मां श्री दुर्गा के
छठे स्वरूप कात्यायनी देवी की पूजा-अर्चना का विधान है। महर्षि कात्यायन की तपस्या
से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे
कात्यायनी कहलाती हैं। छठे दिन मां की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां
साधक को प्राप्त हो जाती हैं और वो अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है।
मां
कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त ही दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है।
इनकी चार भुजायें हैं, इनका दाहिना ऊपर का हाथ अभय मुद्रा में
है, नीचे का हाथ वरदमुद्रा में है। बांये
ऊपर वाले हाथ में तलवार और निचले हाथ में कमल का फूल है और इनका वाहन सिंह है। माँ
कात्यायनी की भक्ति से मनुष्य को अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
माँ
कात्यायनी की पूजा विधि और सरल विधान
मां
कात्यायनी की पूजा विधि विधान से करने के पश्चात भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ करनी चाहिए।
ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत
शेखराम्।सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा
त्रिनेत्राम्।वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार
भूषिताम्।मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग
कुचाम्।कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
स्तोत्र पाठ
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा
मुकटोज्जवलां।स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार
भूषितां।सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म
परमात्मा।परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
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