संदीप
कुमार मिश्र : जगत जननी मां जगदम्बा के सातवें स्वरुप के जनमानस कालरात्रि के नाम
से जानता है। दुर्गापूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान हमारे
धर्मशास्त्रों में बताया गया है।
माँ
कालरात्रि का स्वरूप देखने में जितना भयानक लगता है,ठीक उसके विपरीत मां सदैव अपने
भक्तों को शुभ फल ही देने वाली हैं। इसीलिए इनका एक नाम 'शुभंकारी' भी है।माता कालरात्रि दुष्टों का संहार
करने वाली देवी हैं। मां कालरात्रि के स्मरण मात्र से दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि भयभीत होकर भाग जाते हैं। ग्रह-बाधाओं को दूर करने वाली
हैं मां कालरात्रि। इनकी कृपा से साधक सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है।साधक को माँ
कालरात्रि के स्वरूप-विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करके एकनिष्ठ भाव से उपासना
करनी चाहिए।मनसा,वासा कर्मणा पवित्रता के साथ मां की साधना करनी चाहिए।
माँ
कालरात्रि स्वरूप की पूजा विधि और विधान
माता
कालरात्रि की पूजा शुरु करने से पहले नवग्रह, दशदिक्पाल, और देवी मां के परिवार में उपस्थित समस्त देवी देवता की पूजा करनी चाहिए और फिर मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए।
नवरात्र में खासकर दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का काफी महत्व बताया गया है। इस
दिन से भक्त जनों के लिए देवी मां का दरवाज़ा खुल जाता है और जगह जगह मंदिरों और
पंडालों में भक्तगण देवी मां के दर्शन हेतु आते हैं ।
पूजा
विधान की बात करें तो सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें, और फिर माता कालरात्रि जी की पूजा करनी चाहिए जो पहले
की अन्य देवियों की तरह ही है। सप्तमी की पूजा अन्य दिनों की तरह ही होती लेकिन
रात्रि में विशेष पूजा विधान के साथ देवी की पूजा की जाती है। सप्तमी के दिन कहीं
कहीं तो तांत्रिक विधि से पूजा होने पर मदिरा भी देवी को अर्पित कि जाती है।क्योंकि
सप्तमी की रात्रि को ‘सिद्धियों’ की रात भी कहा जाता है ।
ध्यान
करालवंदना
धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥
दिव्यं
लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम्
मम॥
महामेघ
प्रभां श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख
पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम्
समृध्दिदाम्॥
स्तोत्र पाठ
हीं
कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश
कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा
कमबीजस्वरूपिणी।कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं
हीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥
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