Wednesday, 20 September 2017

शारदीय नवरात्रि 2017 विशेष: घट,कलश स्थापना, मुहूर्त एवं संपूर्ण पूजा विधि-विधान


संदीप कुमार मिश्र:  ।।जय माता दी।। शक्ति की आराधना और साधना का पावन और पवित्र पर्व है नवरात्र। जिसमें शक्ति यानि जगत जननी मां जगदम्बा के नौ रुपों की विशेष रुप से पूजा की जाती है।सनातन धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक शारदीय नवरात्रि आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है जो इस वर्ष 21 सितंबर से 29 सितंबर तक बड़े ही धूमधाम के साथ देस भर में मनाया जाएगा। इस बार की शारदीय नवरात्रि पर बन रहा है महासंयोग।क्योंकी  मां शेरावाली पालकी में बैठकर आएंगी और पालकी में ही बैठकर जाएंगी भी। इस लिहाज से देखें तो नवरत्रि के 9 दिन साधक के लिए सुख समृद्धि लेकर आएंगे।


शारदीय नवरात्र 2017-पहला दिन माँ शैलपुत्री की पूजा विधि और विधान

जाने क्यों बन रहा है शारदीय नवरात्री पर महासंयोग
दरअसल हमारे धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि गुरुवार के दिन यदि हस्त नक्षत्र में देवी आराधना का पर्व शुरू होता है तो इसे देवीकृपा व इष्ट साधना के लिए विशेष रूप से शुभ होता है।
वहीं इस लिहाज से भी इस बार की शारदीय नवरात्री शुभ है क्योंकि इस बार देवी भागवत में नवरात्रि के प्रारंभ व समापन के वार के अनुसार मां दुर्गाजी के आगमन प्रस्थान के वाहन जो बताए गए हैं वो इस प्रकार से हैं-
आगमन वाहन
रविवार व सोमवार को हाथी
शनिवार व मंगलवार को घोड़ा
गुरुवार व शुक्रवार को पालकी
बुधवार को नौका आगमन
प्रस्थान वाहन
रविवार व सोमवार भैंसा
शनिवार और मंगलवार को सिंह
बुधवार व शुक्रवार को गज हाथी
गुरुवार को नर वाहन पर प्रस्थान


शारदीय नवरात्र 2017- दूसरा दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि और विधान

अब ऐसे में आपको ये जानना बेहद जरुरी है कि जगत जननी मां की नौ दिनो तक पूजा आराधना कैसे करें।क्योंकि संभव नहीं है कि सुयोग्य और वैदिक का ज्ञाता ब्राम्हण पूजा के लिए उपलब्ध हो और समयाअभाव तो है ही।लेकिन हम आपको बताते हैं कि किस तरह से आप स्वयं पंचोपचार विधि द्वारा देवी मां का सम्पूर्ण पूजन कर सकते हैं और लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
नवरात्र घट स्थापना एवं माँ दुर्गा पूजन शुभ मुहूर्त
दरअसल 21 सितंबर को सुबह 10:37 बजे तक प्रतिपदा तिथि रहेगी और रात्रि 11:33 बजे तक हस्त नश्रत्र रहेगा।शास्त्रों में ऐसा माना गया है कि हस्त नश्रत्र और अभिजित मुहूर्त, द्विस्वभाव लग्न में कलश स्थापना शुभ होता है।अभिजित मुहूर्त सुबह 11:46 से 12:34 बजे तक रहेगा। सुबह 7:38 से 8:10 बजे तक कन्या लग्न और 12:50 से 1:42 बजे दोपहर तक धनु लग्न में कलश स्थापना (जौ बोना) साधक के लिए शुभता लेकर आएगा।इस प्रकार से ये समय सभी तरह के दोषों से मुक्त है।क्योंकि इसके बाद दोपहर 1:46 से 3:16 बजे तक राहुकाल रहेगा,जिसमें सभी प्रकार की पूजा वर्जित बताई गई है।
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विशेष- धर्म शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि में घट स्थापना का विशेष महत्त्व होता है। इसलिए शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित करना चाहिए और वो भी प्रतिपदा तिथि में कर लेनी चाहिए।

नवरात्री में कलश स्थापना का महत्व
सनातन धर्म के अनुसार हमारे वेदों पुराणों में कलश को सुख समृद्धि, ऐश्वर्य देने वाला सर्वमंगलकारी कहा जाता है।क्योंकि कलश के मुख में भगवान विष्णु , गले में रूद्र , मूल में ब्रह्मा जी और मध्य में देवी शक्ति का निवास ताया गया है। देवी भागवत के अनुसार नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। जिससे की घर की सभी विपत्तिदायक तरंगें नष्ट हो जाती है और घर में सुख,शांति, समृद्धि का वास होता है।

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नवरात्री में घट स्थापना एवं दुर्गा पूजन की सामग्री
जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र जिसे वेदी कहते है।जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ मिटटी।पात्र में बोने के लिए जौ ।घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश। कलश में भरने के लिए शुद्ध जल।रोली , मौली,इत्र, पूजा में काम आने वाली साबुत सुपारी, दूर्वा, कलश में रखने के लिए सिक्का,पंचरत्न  ( हीरा , नीलम , पन्ना , माणक और मोती ) पीपल , बरगद , जामुन , अशोक और आम के पत्ते  (सभी ना मिल पायें तो कोई भी दो प्रकार के पत्ते ले सकते है ),कलश ढकने के लिए ढक्कन  (मिट्टी का या तांबे का ),ढक्कन में रखने के लिए साबुत चावल,नारियल, लाल कपडा, फूल माला,फल तथा मिठाई, दीपक, धूप, अगरबत्ती इत्यादि।

मां दुर्गा जी के पूजन की सामग्री
शुद्ध पंचमेवा, पंचमिठाई, रूई, कलावा, रोली, सिंदूर, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, 5 सुपारी, लौंगपान के पत्ते 5 , घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत(दूध, दही, घी, शहद, शर्करा), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी की गांठ, अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, , आरती की थाली. कुशा, रक्त चंदन, श्रीखंड चंदन, जौ, तिल, माँ की प्रतिमा,वस्त्र, आभूषण व श्रृंगार का सामान, फूल माला आदि।

सर्वप्रथम गणपति पूजन विधि
हमारे हिन्दू धर्म में किस भी पूजा की शुरुआत सबसे पहले गणेश जी की पूजा से ही की जाती है।जिसके लिए हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान निम्न मंत्र से करें-
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
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आवाहन: हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र करें-
आगच्छ देव देवेश, गौरीपुत्र विनायक।
तवपूजा करोमद्य, अत्रतिष्ठ परमेश्वर॥
इसके बाद ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः इहागच्छ इह तिष्ठ कहकर अक्षत गणेश जी पर चढा़ दें। हाथ में फूल लेकर ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः आसनं समर्पयामि, अर्घा में जल लेकर बोलें ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पयामि, आचमनीय-स्नानीयं ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः आचमनीयं समर्पयामि, वस्त्र लेकर ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः वस्त्रं समर्पयामि, यज्ञोपवीत-ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि, पुनराचमनीयम्, ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः, रक्त चंदन लगाएं: इदम रक्त चंदनम् लेपनम्  ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः , इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं।ततपश्चात सिन्दूर चढ़ाएं "इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः, दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं। 


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पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें: ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः इदं नानाविधि नैवेद्यानि समर्पयामि, मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र- शर्करा खण्ड खाद्यानि दधि क्षीर घृतानि च,
आहारो भक्ष्य भोज्यं गृह्यतां गणनायक। प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें। इदं आचमनीयं ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः।इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें- ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः ताम्बूलं समर्पयामि। इसके बाद फल गणपति पर चढ़ाएं ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः फलं समर्पयामि, ॐ श्री सिद्धि विनायकाय नमः द्रव्य दक्षिणां समर्पयामि, अब विषम संख्या में दीपक जलाकर निराजन करें और भगवान की आरती गायें। हाथ में फूल लेकर गणेश जी को अर्पित करेंफिर तीन प्रदक्षिणा करें। इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं का भी पूजन आवाहन करना चाहिए।इस प्रकार से जिस भी देवता की पूजा करनी हो उनका नाम श्रीगणेश भगवान के स्थान पर लें।

विशेष-घट स्थापना एवं दुर्गा पूजन की विधि
अब बारी है घट स्थापना की तो सबसे पहले जौ बोने के लिए पात्र लें जिसमे कलश रखने के बाद भी आस-पास खाली जगह रहे। इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी बिछा दें। पात्र के बीच में कलश रखने की स्थान छोड़कर बीज डाल कर उपर से मिटटी की बिछा दें। एक बार फिर जौ डालें और मिट्टी की परत बिछाएं। अंत में इस मिट्टी पर जल का छिड़काव करें।
अब कलश  स्थापना की तैयारी। कलश पर स्वस्तिक बनायें और कलश के गले में मौली बांधें। कलश को थोड़े गंगा जल और शुद्ध जल से पूरा भर दें।साथ ही कलश में साबुत सुपारी , फूल और दूर्वा इत्र, पंचरत्न तथा सिक्का डालें। अब कलश में पांचों प्रकार के पत्ते डालें। कुछ पत्ते  थोड़े बाहर दिखाई दें इस प्रकार से लगाएँ। चारों तरफ पत्ते लगाकर अक्षत यानि साबुत चावल से भरे ढ़क्कन को लगा दें।
शारदीय नवरात्र 2017- सातवाँ दिन माँ कालरात्रि की पूजा विधि और विधान

क्रमश: अब नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बांध दें। इस नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह आपकी तरफ होना चाहिए।ध्यान रखें यदि नारियल का मुँह ऊपर की तरफ होगा तो उससे रोग बढ़ेगा,नीचे की तरफ होगा तो शत्रु बढ़ेंगे , पूर्व की ओर होगा तो धन हानी होती है ऐसा कहा गया है ।इसलिए जान लें कि नारियल का मुंह वह होता है जहाँ से वह पेड़ से जुड़ा होता है। अब कलश को जौ उगाने के लिए तैयार किये गये पात्र के बीच में रख दें। अब समस्त देवी-देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें कि हे समस्त देवी देवता आप सभी नौ दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों ।इस प्रकार से कलश स्थापना करें।
शारदीय नवरात्र 2017- आठवां दिन माँ महागौरी की पूजा विधि और विधान

इस प्रकार से अब सभी देवता गण कलश में विराजमान है।तो अब कलश की पूजा प्रारंभ करें। कलश को टीकें, अक्षत, फूल माला, इत्र, नैवेद्य यानि फल मिठाई आदि अर्पित करें। घट यानि कलश स्थापना के बाद दुर्गा पूजन शुरू करने से पूर्व चौकी को धोकर माता की सुंदर सी चौकी सजायें।आसन बिछाकर गणपति एवं दुर्गा माता की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं। इसके बाद अपने आपको तथा आसन को निम्न मंत्र से शुद्धि करें- 
"ॐ अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥"
इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा पल्लव या पुष्पादि से छींटें लगायें फिर निम्न मंत्र से आचमन करें -
ॐ केशवाय नम: ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ गोविन्दाय नम:,
इस प्रकार फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें :-
ॐ पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता।
त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए।अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए निम्न मंत्र बोलें-
चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्,
आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।
दुर्गा पूजन हेतु संकल्प विधि
इस प्रकार से अब बारी आती है संकल्प की तो पंचोपचार करने बाद किसी भी पूजन को आरम्भ करने से पहले हमें पूजा की पूर्ण सफलता के लिये संकल्प करना चाहिए। संकल्प के लिए हमें पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलने चाहिए जो इस प्रकार से है-:
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ अद्य  ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2074, तमेऽब्दे साधारण नाम संवत्सरे दक्षिणायने शरद ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे आश्विन मासे शुक्ल पक्षे प्रतिपदायां तिथौ गुरु वासरे (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया- श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री दुर्गा पूजनं च अहं करिष्ये। तत्पूर्वागंत्वेन निर्विघ्नतापूर्वक कार्य सिद्धयर्थं यथामिलितोपचारे गणपति पूजनं करिष्ये।

भगवती मां दुर्गा के पूजन की संपूर्ण विधि
सबसे पहले माता दुर्गा का ध्यान करें-
सर्व मंगल मागंल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्येत्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥
आवाहन- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दुर्गादेवीमावाहयामि॥
आसन- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आसानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि॥
अर्घ्य- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। हस्तयो: अर्घ्यं समर्पयामि॥
आचमन- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आचमनं समर्पयामि॥
स्नान- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। स्नानार्थं जलं समर्पयामि॥
स्नानांग आचमन- स्नानान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पयामि।
स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।
पंचामृत स्नान- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पंचामृतस्नानं समर्पयामि॥
पंचामृत स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।
गन्धोदक-स्नान- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। गन्धोदकस्नानं समर्पयामि॥
गंधोदक स्नान (रोली चंदन मिश्रित जल) से कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।
शुद्धोदक स्नान- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि॥
आचमन-शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि
शुद्धोदक स्नान कराने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।
वस्त्र- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। वस्त्रं समर्पयामि ॥
वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
वस्त्र पहनने के बाद पात्र में आचमन के लिये जल छोड़े।
सौभाग्य सू़त्र- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। सौभाग्य सूत्रं समर्पयामि ॥
मंगलसूत्र या हार पहनाए।
चन्दन-  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। चन्दनं समर्पयामि ॥
चंदन लगाए
हरिद्राचूर्ण- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। हरिद्रां समर्पयामि ॥
हल्दी अर्पण करें।
कुंकुम- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कुंकुम समर्पयामि ॥
कुमकुम अर्पण करें।
सिन्दूर-  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। सिन्दूरं समर्पयामि ॥
सिंदूर अर्पण करें।
कज्जल- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कज्जलं समर्पयामि ॥
काजल अर्पण करें।
दूर्वाकुंर-  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दूर्वाकुंरानि समर्पयामि ॥
दूर्वा चढ़ाए।
आभूषण- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आभूषणानि समर्पयामि ॥
यथासामर्थ्य आभूषण पहनाए।
पुष्पमाला-  श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पुष्पमाला समर्पयामि ॥
फूल माला पहनाए।
धूप- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। धूपमाघ्रापयामि॥
धूप दिखाए।
दीप- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दीपं दर्शयामि॥
दीप दिखाए।
नैवेद्य- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। नैवेद्यं निवेदयामि॥
नैवेद्यान्ते त्रिबारं आचमनीय जलं समर्पयामि।
मिष्ठान भोग लगाएं इसके बाद पात्र में 3 बार आचमन के लिये जल छोड़े।
फल- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। फलानि समर्पयामि॥
फल अर्पण करें। इसके बाद एक बार आचमन हेतु जल छोड़े
ताम्बूल- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ताम्बूलं समर्पयामि॥
लवंग सुपारी इलाइची सहित पान अर्पण करें।
दक्षिणा- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दक्षिणां समर्पयामि॥
यथा सामर्थ्य मनोकामना पूर्ति हेतु माँ को दक्षिणा अर्पण करें कामना करें कि मां ये सब आपका ही है, आप ही हमें देती है,हमारा क्या सामर्थ्य मां कि हम आपको कुछ दे सकें ।
इसके बाद सपरिवार प्रेमसहित जगत जननी मां जगदम्बा की आरती करें और फिर भूल चुक के लिए क्षमा प्रार्थना करें जो इस प्रकार से है-

क्षमा प्रार्थना मंत्र
न मंत्रं नोयंत्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः ।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥1
विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।
तदेतत्क्षतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥2
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः ।
मदीयोऽयंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥3
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।
तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति ॥4
परित्यक्तादेवा विविधविधिसेवाकुलतया
मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।
इदानीं चेन्मातस्तव कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदर जननि कं यामि शरण् ॥5
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैः ।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ॥6

चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतहारी पशुपतिः ।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ॥7
न मोक्षस्याकांक्षा भवविभव वांछापिचनमे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः ।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडाणी रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः ॥8
नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रूक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिः ।
श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ॥9
आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि ।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ॥10
जगदंब विचित्रमत्र किं परिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयि ।
अपराधपरंपरावृतं नहि मातासमुपेक्षते सुतम् ॥11
मत्समः पातकी नास्तिपापघ्नी त्वत्समा नहि ।
एवं ज्ञात्वा महादेवियथायोग्यं तथा कुरु  ॥12
शारदीय नवरात्र 2017- नौवां दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा विधि और विधान

इस प्रकार से अब सपरिवार कुटुंब के साथ मां को शाष्टांग प्रणाम कर सुख समृद्धि की कामना के साथ समस्त प्रेमी स्नेहीजन को प्रसाद बांटें और प्रेम सहित स्वयं भी प्रसाद पाएं।

                             ।।जय माता दी।।

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