Tuesday, 19 September 2017

शारदीय नवरात्र 2017- तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा विधि और विधान

संदीप कुमार मिश्र : शक्ति की आराधना के तीसरे दिन माँ दुर्गाजी की तीसरे स्वरुप मां चंद्रघंटा की पूजा आराधना की जाती है।आपको बता दें कि नवरात्रि में तीसरे दिन की पूजा का विशेष महत्व हमारे धर्म शास्त्रों में बताया गया है।तीसरे दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है।
देवी भागवत में कहा गया है कि मां चंद्रघंटा की कृपा से भक्तों के समस्त पाप बाधाएँ सहज ही  विनष्ट हो जाते हैं। मां चंद्रघंटा की आराधना सद्यः फलदायी है। माँ अपने भक्तों के कष्टों का निवारण तुरंत कर देती हैं।मां चंद्रघंटा की पूजा करने वाला भक्त सिंह की तरह पराक्रमी हो जाता है। मां के घंटे की ध्वनि सदैव अपने भक्तों को प्रेतबाधा और भय से रक्षा करती हैं।
मां के स्वरुप की बात करें तो माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र सुषोभित है,जिस वजह से इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। इनका शरीर स्वर्ण के समान उज्ज्वल है, मां चंद्रघंटा के दस हाथ हैं और दसों हाथों में खड्ग, बाण आदि शस्त्र सुशोभित रहते हैं।मां की सवारी सिंह है।
माँ चंद्रघंटा की पूजा विधि और सरल विधान
माता चंद्रघंटा की प्रतिमा को गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर तांबे, चांदी, या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापित करें और फिर पूजन का संकल्प लेकर वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां चंद्रघंटा सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार विधि से पूजा करें।मूल रुप से पूजा विधि पहले अन्य दिनों की तरह ही होगी।मां की पूजा के बाद प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करना चाहिए।

ध्यान
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥

नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥
।।जय माता दी।।

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