संदीप
कुमार मिश्र: मां दुर्गा के नौ रुपों में नवरात्र के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी
की पूजा-अर्चना की जाती है।मां के भक्त दूसरे दिन अपने मन को माँ के पवित्र चरणों
में लगाते हैं।हमारे धर्म शास्त्रों में ब्रह्म का अर्थ तपस्या और चारिणी यानी
आचरण करने वाली बताया गया है।यानि की ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने
वाली देवी।मां के दाहिने हाथ में जप की माला सुशोभित है तो वहीं बाएँ हाथ में
कमण्डल मां की दिव्य शोभा बढ़ा रहा है।
भक्तों
को अनन्त फल देने वाला है माँ दुर्गाजी का दूसरा स्वरूप।मां ब्रम्हचारिणी की साधना
और उपासना से मानव के अन्दर तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है।जिससे मनुष्य
जीवन के कठिन संघर्षों में भी अपने कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता और सफलता
अर्जित करता है।माँ ब्रह्मचारिणी देवी का उपासक सर्वत्र सिद्धि और विजय पाता है।इस
दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में शिथिल होता है।
माता
ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि और सरल विधान
दूसरे
दिन माता ब्रह्मचारिणी जी की पूजा में सबसे पहले माता की फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करनी चाहिए और मां को दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्नान कराना चाहिए साथ ही
देवी मां को प्रसाद अर्पित करना चाहिए।वहीं प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर मां की प्रदक्षिणा करनी
चाहिए। इसके बाद कलश देवता की पूजा और फिर नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता, की भी पूजा करनी चाहिए।
मां
ब्रम्हचारिणी देवी की पूजा करते समय हाथों में फूल लेकर निम्न मंत्र से प्रार्थना
करनी चाहिए-
इधाना कदपद्माभ्याममक्षमालाक कमण्डलु
देवी प्रसिदतु मयि
ब्रह्मचारिण्यनुत्त्मा
ततपश्चात्
देवी मां को पंचामृत से स्नान करा कर विभिन्न प्रकार के फूलों, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर मां पर अर्पित करने चाहिए। देवी मां को अड़हूल का फूल और
कमल बेहद प्रिय हैं.इसलिए मां को इन फूलों की माला श्रद्धा और प्रेम सहित पहनायें और फिर घी व कपूर मिलाकर देवी मां की सपरिवार
श्रद्धा और भाव से आरती करें।
“मां ब्रह्मचारिणी का स्रोत पाठ”
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी
प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति
दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा
ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥
“मां ब्रह्मचारिणी का कवच”
त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु
शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे
पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
नवरात्र
के दूसरे दिन मां ब्रम्हचारिणी के स्त्रोत और कवच का पाठ करना विशेष फलदायी होता
है।
।।जय माता दी।।
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