संदीप कुमार मिश्र: संसार में हमें जो भी
नेक राह पर चलने की सीख दे वही हमारा गुरु होता है,लेकिन जीवन में एक वक्त ऐसा आ
जाता है जब हमें विशेष तौर पर गुरु की आवश्यकता होती है।खासकर आध्यात्मिकता के पथ
पर हमारे सनातन धर्म में गुरु का विशेष महत्व बताया गया है।
दरअसल गुरु हमें हर विधा में मिल जाएगें,
सभी खेलों में भी गुरु होते हैं, मैनेजमेंट गुरु भी होते हैं,और भी हर
क्षेत्र और विभाग में गुरु होते हैं ।लेकिन सवाल वही कि क्या हम जानते हैं कि गुरु
शब्द के क्या मायने हैं? आपको बता दें कि ‘गु’ का मतलब होता है अंधकार और ‘रु’ का अर्थ है जो उसे
भगाता हो। कहने का भाव है कि जो कोई भी अंधकार को आपसे,आपके जीवन से दूर भगाता हो, वही गुरु है। गुरु सिर्फ हाड़ मांस का बना सिर्फ एक मानव शरीर नहीं बल्कि वह
तो एक संभावना हैं,उम्मीद और विश्वास है।आमबोलचाल की भाषा में कहें तो गुरु हमारे
लिए किसी रोडमैप से कम नहीं ।
सवाल ये नहीं है कि किस गुरु का और कैसे
गुरु का चयन किया जाए, बल्कि जरुरत इस बात की है कि वास्तव में हमारी जानने और समझने की जिज्ञासा
कितनी है।अगर हम प्रतिज्ञा करके बैठे हैं कि हमें जानना ही है,सत्य को समझना ही है तो हम देखेंगे
कि गुरु हमारे पास ही नजर आएंगे।ये तो हमारी जिज्ञासाओं पर निर्भर करता है कि
हमारी चाह क्या है,हमारी अभिलाषा क्या है।संसार में फैली अज्ञानता की असहनीय पीड़ा
से हम वास्तव में बाहर निकलना चाहते हैं तो वो रास्ता हमें स्पस्ट तौर पर दिखाई
देने लगता है जो सद्गुरु की शरण में हमें ले कर जाता है।
मित्रों ऐसा लगता है कि एक सच्चे सदगुरु
की तलाश करने की आवश्यकता पड़ती ही नहीं है,क्योंकि यदि हम तलाश करने निकलेंगे तो
अपनी इच्छानुसार हम वही गुरु ढूंढ़ेंगे,जिसे हम चाहते हैं,जो कि कतई हमारे लिए
बेहतर नहीं होगा। इसलिए हमें अपने भितर जिज्ञासा उत्पन्न करने की आवश्यकता
है,मार्ग और सद्गुरु मिल ही जाएंगे। क्योंकि अगर हममें जिज्ञासा होगी
तो गुरु हमेशा आएंगे हमारा मार्गदर्शन करेंगे। लेकिन इसके लिए खाली पात्र की तरह
हमें रहना होगा।आवश्यकता ये भी नहीं कि गुरु सशरीर ही हमें दर्शन दें, लेकिन हां मार्गदर्शन अवश्य होगा।ऐसे भी फर्क इससे नहीं पड़ता कि मन की जिज्ञासा
को ज्ञान कहां से मिल रहा है,जरुरी ये है कि समस्याओं और दुविधाओ का समाधान हो रहा
है।मायारुपी संसार में मोह को त्यागकर भक्ति और सद्मार्ग की ओर प्रेरीत करने के
लिए गुरु का दर्शन और मार्गदर्शन नितांत आवश्यक तो है,और ये तलाश पूरी भी होती
है...शर्त एक ही है कि हम जिज्ञासु बनें।ऊं श्री गुरुदेव नम:।
No comments:
Post a Comment