संदीप कुमार मिश्र: (15 जुलाई 2016) देवशयनी एकादशी, यानि
आषाढ़ी एकादशी के खास अवसर पर पंढरपुर महाराष्ट्र में बड़े
ही धुमधाम से मनाई जाती है।इस खास अवसर पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु पंढरपुर
में भगवान विट्ठल के सबसे लोकप्रिय मंदिर में इकट्ठा होते हैं,और भगवान विष्णु की आराधना करते हैं।खासतौर पर आषाढ़ी एकादशी पर महाराष्ट्र
में ‘‘वारी’’ नामक तीर्थ यात्रा संपन्न होती है। इस तीर्थ यात्रा में राज्य के अलग-अलग
हिस्सों से श्रद्धालु पैदल चल कर विट्ठल मंदिर पहुंचते हैं, और भगवान विट्ठल की पूजा-अर्चना
करते हैं।भगवान विट्ठल आप सब की मनोकामनाओं को पूरा करें।
दरअसल दोस्तों आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष
की एकादशी को ही ‘देवशयनी’ एकादशी कहा जाता है।हमारे धर्म शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि इस दिन से
भगवान विष्णु चार मास के लिए बलि के द्वार पर पाताल लोक में निवास करते हैं और
कार्तिक शुक्ल एकादशी को पुन: वापस लौटते हैं। इसी दिन से हिन्दू धर्म में चौमास की शुरुआत मानी जाती है।आपको
बता दें कि देवशयनी एकादशी के दिन से ही भगवान विष्णु का शयनकाल प्रारम्भ हो जाता
है, इसीलिए इसे देवशयनी एकादशी कहते हैं। देवशयनी एकादशी के बाद से ही हिन्दू
संस्कृति में विवाह व सभी प्रकार के मांगलिक कार्यों को रोक दिया जाता है।
देवशयनी एकादशी को पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान विष्णु की
आराधना का दिन है एकादशी।जो भी साधक भगवान विष्णु को प्रसन्न करता चाहता है उन्हें
एकादसी का व्रत अवस्य रखना चाहिए।इस दिन से भगवान विष्णु चार मास के लिए क्षीरसागर
में शयन करते हैं।
‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम।
विबुद्धे त्वयि बुध्येत जगत सर्वं चराचरम।’
अर्थात: हे जगन्नाथ! आपके
शयन करने पर यह जगत सुप्त हो जाता है और आपके जाग जाने पर सम्पूर्ण चराचर जगत
प्रबुद्ध हो जाता है। पीताम्बर, शंख, चक्र और गदा धारी भगवान् विष्णु के
शयन करने और जाग्रत होने का प्रभाव प्रदर्शित करने वाला यह मंत्र शुभ फलदायक है
जिसे भगवान विष्णु की उपासना के समय उच्चारित किया जाता है।इसलिए सभी साधकों को जगत
के पालन हार भगवान विष्णु की आराधना करते समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
कहते हैं कि धार्मिक दृष्टि से इन चार महिनो में
कोई भी संत महात्मा तपस्वी भ्रमण तक नहीं करते हैं,और एक ही स्थान पर रहकर आराधना,साधना करते
हैं।इन विशेष दिनों में सिर्फ बृज की यात्रा करने
का विधान बताया गया है। क्योंकि इन चार महीनों में भू-मण्डल के
समस्त तीर्थ ब्रज में आकर ही निवास करते हैं। ब्रह्म वैवर्त पुराण में एकादशी माहात्म्य
के संबंध में कहा गया है कि इस व्रत को करने से प्राणी की समस्त मनोकामनाएं इच्छाएं
पूर्ण होती हैं, पापों का नाश होता है,और भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है।
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