संदीप कुमार मिश्र: हमारा देश भारत,आस्थाओं का देश
है।परम्पराओं का देश है।जहां के प्रत्येक रज-कण में ईश्वर का वास माना जाता
है।विश्व का इकलौता भारत ऐसा देश है जहां पत्थरों को भी पूजा जाता है।पर्व,त्योहार और उत्सवों का देश है भारत।यही विशेषता हम भारतियों को विश्व में अलग
पहचान देती है और विश्व गुरु बनाती है।
दरअसल आषाढ मास के शुक्ल पक्ष की
द्वितीया तिथि को एक अद्भुत यात्रा निकाली
जाती है,जी हां ठीक समझे आप,हम बात कर रहे हैं जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा की। उड़ीसा के पुरी में मनाये
जाने वाले भगवान जगन्नाथ की भव्य यात्रा में प्रत्येक वर्ष दुनिया भर से
लाखों-लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पर आते हैं। यह जगन्नाथ रथ यात्रा का
महापर्व पूरे नौ दिन तक बड़े ही जोश एवं उत्साह के साथ मनाया जाता है।
मित्रों इस अद्भुत रथ यात्रा में भगवान
श्री कृष्ण जिन्हें जगन्नाथ कहते हैं उनके साथ ही भईया बलराम और बहन सुभद्रा जी का
रथ बनाया जाता है। इन दिव्य रथों के नाम हैं क्रमश: 'गरुड़ध्वज' या 'कपिलध्वज', 'तलध्वज', "देवदलन" व "पद्मध्वज'कहा जाता है। जो जितना देखने में मनभावन होता है उतना ही हमारी आस्था और
विश्वास को और भी संबृद्ध करता है।
रथयात्रा का प्रारंभ व समापन
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के पहले दिन
तीनो रथ को आषाढ़ शुक्ल द्वितीया की शाम तक जगन्नाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थिति
गुंडीचा मंदिर तक भक्त खिंच कर लाते हैं। दूसरे दिन रथ पर रखी तीनों मूर्तियों को
विधि पूर्वक उतार कर गुंडीचा मंदिर में लाया जाता है और अगले 7 दिनों तक भगवान श्रीजगन्नाथ जी यहीं पर निवास करते हैं।इन नौ दिनो तक खुब
धूमधाम से पूजा आराधना होती है। ततपश्चात आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन वापसी यात्रा प्रारंभ
होती है, जिसे बाहुड़ा यात्रा कहते हैं और अंत में भगवान जगन्नाथ,बलराम और सुभद्रा
जी की प्रतिमा को पुन: गर्भ गृह में स्थापित कर दिया जाता है।
रथयात्रा का पौराणिक इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहते हैं
कि द्वारका में एक बार श्री सुभद्रा जी ने ग्राम नगर देखनी चाही, तो भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें अपने रथ पर बैठाकर नगर का भ्रमण और दर्शन करवाया
था। कहते हैं तभी से इस यात्रा का प्रारंभ हुआ था,जो अब भी निरंतर चलती आ रही है।
दिव्य भोग,महाप्रसाद
इस पूरे रथयात्रा की जो सबसे विशेष और
खास बात है वो है जगन्नाथ पुरी मंदिर में
मिलने वाला महाप्रसाद।दोस्तो इस महाप्रसाद को जगन्नाथ पुरी मंदिर में स्थित रसोई
में बनाया जाता है।इस महाप्रसाद की विशेषता ये है कि इस प्रसाद में दाल-चावल के
साथ कई अन्य चीजें भी मिलाई जाती हैं, जो इस महाउत्सव में आये श्रद्धालुओं को बेहद
कम शुल्क में उपलब्ध कराई जाती है।इतना ही नहीं नारियल, लाई, मालपुआ और गजामूंग का प्रसाद विशेष रूप से यहां आने वाले भक्तों को मिलता है। प्रतिदिन
भगवान को भोग लगने के बाद प्रसाद के रुप में गोपाल भोग सभी भक्तों में वितरीत किया
जाता है।
अंतत: भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा जनकल्याणकारी है,हम तो यही कामना करते हैं कि
भगवान जगन्नाथ,भईया बलराम और देवी सुभद्रा आप सभी का कल्याण करें।बम तो यही कामना
करते हैं।
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