गुरुब्र्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरु: साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम:।।
अर्थात- गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है।
ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।
संदीप कुमार मिश्र : जीवन एक निरंतर चलने
वाली प्रक्रिया है।मनुष्य जन्म लेते ही रोना और हंसना शुरु कर देता है।मायावी
संसार में कर्तव्य पथ पर सादगी और उच्च विचारों के साथ चलते रहना हर किसी के लिए नितांत
आवश्यक है,और जीवन पथ की डगर पर अच्छाई और बुराई के बीच भेद को बताने के
लिए,परमात्मा से एकाकार कराने के लिए,सत्संगी बनने के लिए एक अलौकिक शक्ति की
आवश्यकता होती है, ऐसी अलौकिक शक्ति हमारे एक सच्चे सद्गुरु में ही होती है।ऐसे ही
सदगुरु की पूजा और उपासना का महापर्व है गुरु पूर्णिमा।
दरअसल कर्म प्रधान इस संसार में गुरु की
आवश्यकता मनुष्य को पग पग पर होती है।हमारे जीवन को आंतरिक रुप से सुंदर और
व्यवस्थित बनाने में गुरु की भूमिका वैसी ही है जैसे एक कुम्हार की।जैसे कुम्हार
एक सुंदर घड़े के निर्माण में सतत सावधानी बरतता है कि कहीं कोई कंकड़ या पत्थर घड़े
में ना रह जाए, ठीक उसी प्रकार सदगुरु हमारे अंदर से दुरुगुणों को दुर कर सद्कर्म
और सद्मार्ग पर चलने को प्रेरीत करते हैं।गुरु की पूजा,वंदन आदर भाव का मूल
अर्थ है, कि किसी व्यक्ति की आराधना नहीं,बल्कि विचारों की आराधना, परब्रह्म परमात्मा की साधना। कहने के भाव है कि हम उस गुरु की आराधना करने हैं
जिनके द्वारा जगत को दिए जाने वाले ब्रम्हज्ञान से मनुष्य का जीवन,व्यक्तित्व
सुंदर बन जाता है।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा
का उत्सव हमारे देश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। सनातन संस्कृति की
विशेषता ही यही है कि ईश्वर से भी सर्वोपरि गुरु को माना गया है।गुरू के ज्ञान एवं
उनके द्वारा हमें मिले स्नेह का स्वरुप है गुरु पुर्णिमा। हमारे हिंदू धर्म
शास्त्रों में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।इसीलिए
इसी दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मोत्सव भी बड़े ही हर्ष से
मनाया जाता है।
अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं
सदगुरु
हमारे धर्म शास्त्रों में गुरू का अर्थ बताया गया है कि जो हमारे अंदर के अंधकार
को दूर करके हममे ज्ञान के प्रकाश का संचार करता हो।सही मायने सद् गुरु ही वो सरल
और सुलभ माध्यम हैं जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं।परम पिता परमात्मा
से हमारा साक्षात्कार करवाने की सीढ़ी हैं हमारे सद् गुरु।वास्तव में गुरु की कृपा
के बीना कुछ भी संभव नहीं हो पाता है हमारे जीवन में।तभी तो कहते हैं कि-
गुरु गोविंददोऊ खड़े काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपके जिन गोविंद दियो बताय।।
कहने का भाव है कि गुरू ही वो वह शक्ति
है जो हमारे भितर भक्ति के भाव को जागृत हममें शक्ति और सामर्थ्य का संचार करता
है। हमारे जीवन की लालसाओं जिज्ञासाओं को समाप्त करके हमें हमारे कर्तव्यों
को,दायित्वों को और जिम्मेदारीयों का निर्वहन करने के लिए रास्ता दिखाते हैं गुरु।
सनातन सभ्यता और संस्कृति के संवाहक देश
भारत में गुरू पूर्णिमा का महापर्व बड़े ही भक्ति भाव व श्रद्धाभाव के साथ मनाया
जाता है।सदियों से चली आ रही यह परंपरा भारतवर्ष को और भी महान बनाती है।आषाढ़ की
घनी बदरी जिस प्रकार आसमान में छायी रहती है,और पुर्णिमा का चांद जिस प्रकार से उस
बदरी की छटा को भी काटकर प्रकाश फैलाता है,उसी प्रकार साधक के जीवन में फैले
अंधकार को गुरु का दिव्य ज्ञान व दिव्य स्वरुप प्रकाशवान बना देता है।
अंतत: जीवन की सार्थकता को सिद्ध करना है तो एक सद्गुरु की आवश्यकता हमें जरुर
पड़ेगी। क्योंकि गुरु सिर्फ एक शिक्षक ना होकर हमें संकटों से उबारने वाला
मार्गदर्शक होते हैं।हमें जहां से भी जिससे भी कुछ सीखने को मिले,उसका हमें सम्मान
करना चाहिए,आदर देना चाहिए। ऊं श्री गुरुवे नम:।
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