(इस बार 1 अगस्त 2016 को शिवरात्रि है,जो कि सोमवार को है।इस लिए इस बार की शिवरात्रि
भक्तों को विशेष फल देने वाली है,सोमवार को पड़ने वाली शिवरात्रि का फल अनंत गुणा
बढ़ जाता है,ऐसा हमारे धर्म शास्त्र कहते हैं। )
संदीप कुमार मिश्र: ऊं नम : शिवाय...शिव..सावन..और
सोमवार...भक्तों का लगाए बेड़ा पार...सावन का द्वितिय सोमवार यानी 1 अगस्त 2016 को सावन शिवरात्रि है।हमारे
हिन्दू धर्म में सावन शिवरात्रि का अति विशेष महत्व बताया गया है। हमारे देश में जहां
साल में एक महाशिवरात्रि मनायी जाती है तो वहीं साल के प्रत्येक महीने में एक
मासिक शिवरात्रि मनायी जाती है। जबकि सावन के महीने के अर्ध माह में सावन
शिवरात्रि मनायी जाती है।
शिवरात्रि की कथा एवं इतिहास
दरअसल मासिक शिवरात्रि या महाशिवरात्रि एवं सावन शिवरात्रि कृष्ण पक्ष की
चतुर्दशी को मनाया जाता है।हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार सावन शिवरात्रि के दिन
व्रत करने से भक्तों को मनोवांछित फल प्राप्त होता है और रोग शोक का नाश होता है।
श्रावण शिवरात्रि की कथा
वेदों पुराणों और हिन्दू धर्म ग्रंथो में कहा गया है कि सावन शिवरात्रि के दिन
भगवान शिव जी लिंग रूप में धरा पर प्रकट हुए थे, और सबसे पहले भगवान शिव जी के
लिंग रूप को भगवान ब्रह्मा और विष्णु जी के द्वारा पूजन किया गया था। पौराणिक
परम्परा के अनुसार शिव भक्त शिवरात्रि के दिन शिवलिंग की पूजा करते है। हिन्दू
पुराणों की माने तो शिवरात्रि व्रत प्राचीन काल से ही मनाया जाता है। ऐसा माना
जाता है की देवी लक्ष्मीं, सरस्वती, गायत्री, सीता, पार्वती और रति ने भी शिवरात्रि का व्रत किया था।
सावन शिवरात्रि का महात्म्य
श्रावण शिवरात्रि का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि हमारे देश में महिलाएं,पुरुष
व बच्चे सभी इस व्रत को भक्तिभाव से करते हैं।शिव भक्त शिवरात्रि की रात से ही जग
कर शिव जी की पूजा अर्चना व भजन-किर्तन करते हैं। सावन शिवरात्रि की साधना करने से
जीवन में सुख और शांति की प्राप्ति होती है। भगवान शिव जी की कृपा से साधक के साभी
बिगड़े काम सरलता से बन जाते है।
सोमवार को शिवरात्रि का शुभ मुहर्त है मंगलकारी
धार्मिक मतावलबियों के अनुसार यदि सावन शिवरात्रि सोमवार को पड़े तो भक्तों के
लिए बहुत ही शुभ और मंगलकारी होता है। वहीं शिवरात्रि का शुभ समय मध्य रात्रि बताया
जाता है। इसलिए भगवान शिव के भक्तों को भोलेनात की पूजा मध्य रात्रि में करनी
चाहिए और इस शुभ मुहर्त को ही निशिता काल कहा जाता है।
सावन में पड़ने वाली शिवरात्रि को कांवर यात्रा भी कहा जाता है। कंवर या कांवर एक खोखले बांस को कहते हैं।सावन
में शिव भक्त कंवरियास या कांवांरथी के रूप में जाने जाते है। हमारे तीर्थ स्थानों
खासकर हरिद्वार, गौमुख व गंगोत्री, सुल्तानगंज में गंगा नदी, काशी विश्वनाथ, बैद्यनाथ, नीलकंठ और देवघर सहित
अन्य स्थानो से गंगाजल भरकर, शिव भक्त स्थानीय शिव मंदिरों में इस पवित्र जल को लाकर महादेव का अभिषेक करते हैं।
हमारे धर्म शास्त्रों में समुद्र मंथन से कांवड़ का संबंध बताया गया है।कहते
हैं कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने विष का प्याला पी लिया था तो वो
नकारात्मक ऊर्जा से पीड़ित हुए और जब त्रेता युग में रावण ने शिव का ध्यान किया और
वह कंवर का उपयोग करके, गंगा के पवित्र जल को लाकर भगवान भोलेनाथ का अभिषेक किया,जिससे भगवान शिव
से जहर की नकारात्मक ऊर्जा दूर हुई। इसलिए भी कांवड़ का विशेष, महत्व सावन में
बताया गया है।हर हर महादेव।।।
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