Tuesday 19 September 2017

शारदीय नवरात्र 2017- पांचवें दिन माँ स्कंदमाता की पूजा विधि और विधान


संदीप कुमार मिश्र:  प्रेम और श्रद्धा के साथ नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। हमारे धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि स्कंदमाता की कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से भी जाना जाता है।
मां की गोद में भगवान स्कंद बालरूप में विराजित हैं। देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा वरद मुद्रा में है, और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प शोभा बढ़ा रहा है।
शुभ्र वर्ण वाली देवी कमल के आसन पर विराजती हैं। इसीलिए स्कंदमाता को पद्मासना भी कहा जाता है जो सिंह की सवारी करती हैं।
माँ स्कंदमाता की पूजा विधि और सरल विधान
मां स्कंदमाता की पूजा भी पहले की तीन देवियों की तरह ही करनी चाहिए साथ ही व्रत, पूजन का संकल्प लेकर वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों के द्वारा मां स्कंदमाता सहित समस्त स्थापित देवी देवताओं की षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए।

ध्यान
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्।।
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्।कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ
नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम्।सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥
तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्।सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्।प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम्॥
स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम्।अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥

पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्।जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्॥

No comments:

Post a Comment