संदीप कुमार मिश्र: शायद ही कोई इस
नश्वर संसार में होगा जो तेरा-मेरा के चक्कर में ना फंसा हुआ हो।
आशाएं,आकांक्षाएं,उम्मीदों से भरा पूरा हमारा जीवन नित्य नए सपने बुनता रहता है और
हम वास्तविकता से दूर होते जाते हैं और अपने आज को खोकर भविष्य को पाने के लिए
भगते रहते हैं।
यही मैं और मेरा का चक्कर हमसे हमारी सुख-शांति छीन लेता
है।समस्या ये है कि हम स्वयं को पहचानने के अलावा सब कुछ करते रहते हैं जबकि स्वयं
को जानना सबसे पहले आवश्यक है।हमारे धर्म पुराण कहते हैं कि ‘आत्मानम् विद्धि’ यानी संसार में सबसे बड़ा काम है स्वयं को पहचानना।
जिसकी तलाश में हम भटकते रहे दरबदर,लुट जाने के बाद पता चला
कि वो बैठा है मेरे अंदर। यही सच भी है कि जिस ईश्वर को हम इधर-उधर तलाशते रहते
हैं वो तो हमारे भीतर ही बैठे हुए हैं,लेकिन हमारी मानसिकता ही ऐसी हो गई है कि हम
अपने अपवित्र विचारों और बुरे कर्मों की वजह से अपने पवित्र मन को दूषित कर बैठे
हैं और ऐसे में हमारा ईश्वर,हमारा भगवान, हमारी खुशी हमें नजर नहीं आती।दिक्कत तब
और बढ़ जाती है जब हमें अपनी अज्ञानता पर लाज भी नहीं आती।
वास्तव में हमें ये समझना होगा कि अज्ञानता है क्या ?जिसका सबसे सरल उत्तर यही
है कि अपने आपको न जानना ही अज्ञानता है।और स्वयं को जान
लेना ही सच्चा ज्ञान है।क्योंकि ये ज्ञान ही एकमात्र ऐसे रस या सद्गुण है जो हमें हमारे
जीवन में सर्वोत्कृष्ठता का अनुभव तो कराता ही है साथ ही हमें श्रेष्ठतम लाभ
प्राप्त करवाता है।जीवन में सुख का सुलभ स्रोत भी यही है।यकिन मानिए इस भवसार से
पार पाने के लिए ज्ञान की पवित्रता का वरण करना ही होगा क्योंकि ज्ञान होने से ही
सत्य का साक्षात्कार हो सकेगा।
ध्यान रखें ‘संसार में सबसे बड़ी बुराई
है- परमात्मा की बात न मानना।एक संकल्प अवश्य लें कि जब तक मुझमें सांस है, मैं ईश्वर द्वारा
निर्धारित अपने प्रत्येक कर्तव्यों को इमानदारी से करता रहूंगा।याद रखें हमें
धैर्य कभी नहीं खोना चाहिए,
क्योंकि परम पिता
परमात्मा के रहते हुए कोई भी व्यक्ति यहां अनाथ नहीं है। इसी सत्य को जानने से हममें
ज्ञान की आभा प्रकट होगी और हममें समस्त बुराइयों का नाश होता है और तब जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होगी।
(कभी कभी मजबूत हाथों से पकड़ी हुई ऊंगलियां भी छूट जाती
हैं,क्योंकि “रिश्ते” ताकत से नहीं दिल से निभाये जाते हैं…!)
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