संदीप कुमार मिश्र: मित्रों जीवन
में सुख-दुख,हानि-लाभ लगे रहते हैं, लेकिन श्रीरामकथा के अनुरूप इस संसार में गरीबी से बड़ा दूसरा
कोई दुख नहीं और मानव जीवन में अच्छा साथ मिलने से बड़ा कोई सुख नहीं है। हालांकि इन
दोनों ही परिस्थितियों का पूरा होना लगभग असंभव सा है। क्योंकि गरीबी ऐसी
परिस्थिति है कि वह इंसान को बहुत हद तक तोड़ने की कोशिश करती है, जबकि वहीं इसी
परिस्थिति में किसी का अच्छा साथ मिल जाए तो हम आसानी से दरिद्रता से पार पा सकते
है। रामचरित मानस में भी तो यहीं कहा गया है कि-
''नहिं दरिद्र सम
दुख जग माहीं। संत मिलन सम सुख जग नाहीं॥
पर उपकार बचन मन
काया। संत सहज सुभाउ खगराया॥''
भावार्थ:-जगत् में दरिद्रता के समान दुःख नहीं है तथा
संतों के मिलने के समान जगत् में सुख नहीं है। और हे पक्षीराज! मन, वचन और शरीर से
परोपकार करना, यह संतों का सहज
स्वभाव है॥
रामदास बनों सत्य
को जीवन में उतारें, बाबा तुलसीदास जी
ने मानस में कहा है कि,
'उमा कहऊँ मैं
अनुभव अपना, सत हरि भजन जगत
सब सपना'
आदिदेव भगवान शिव जी ने माता पार्वती जी से कहा कि जीवन में
सब झूठ और मिथ्या है, सत्य तो केवल हरि
भजन है। सती पार्वती जी बनी और जब सत्संग किया,हरि भजन किया तो कल्याण हो गया । जब
गरूड़ को मोह हुआ तो काकभुशुण्डि जी महाराज से आश्रम में रामकथा सुनी और कल्याण
हुआ । इसलिए कोशिश करें कि मन को ज्यादा से ज्यादा अच्छे कार्य में लगाएं और भगवान
के स्मरण में लीन रहें, ताकि किसी तरह का
कोई गम छू भी न पाए। रामचरितमानस में कहा गया है कि,
कोई तन दुखी कोई
मन दुखी , कोई धन बिन रहत
उदास,
थोड़े-थोड़े सभी
दुखी, सुखी राम के दास।
अर्थात् खुश तो वही है जो भगवान पर भरोसा रखे और नित्य अपना
अच्छा काम जारी रखें।
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