गुरु बिन ज्ञान न
उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष।
गुरु बिन लखै न
सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष।।
कहने का भाव है कि बिना गुरु के ज्ञान का मिलना असंभव है। मनुष्य
तब तक अज्ञान रुपी अंधकार मे भटकता हुआ मायारूपी सांसारिक बन्धनो मे जकडा रहता है
जब तक कि गुरु कि कृपा नहीं प्राप्त होती।
मोक्ष रुपी मार्ग दिखलाने वाले गुरु हैं। बिना गुरु के सत्य
एवं असत्य का ज्ञान नही होता। उचित और अनुचित के भेद का ज्ञान नहीं होता फिर मोक्ष
कैसे प्राप्त होगा ? इसलिए गुरु कि शरण में जाने से ही जीवन को सही
राह मिल पाएगी ।
हमारे देश में आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को बड़े ही उत्साह
के साथ गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।ऐसे तो गुरुओं का विशाल और संवृद्ध
इतिहास रहा है हमारे देश में लेकिन महर्षि वेद व्यास प्रथम विद्वान थे, जिन्होंने सनातन
धर्म (हिन्दू धर्म) के चारों वेदों की व्याख्या की थी...
क्या है मान्यता
कहा जाता है कि आषाढ़ पूर्णिमा को आदि गुरु वेद व्यास का
जन्म हुआ था. उनके सम्मान में ही आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप
में मनाया जाता है. मगर गूढ़ अर्थों को देखना चाहिए क्योंकि आषाढ़ मास में आने वाली
पूर्णिमा तो पता भी नहीं चलती है. आकाश में बादल घिरे हो सकते हैं और बहुत संभव है
कि चंद्रमा के दर्शन तक न हो पाएं.
बिना चंद्रमा के कैसी पूर्णिमा! कभी कल्पना की जा सकती है? चंद्रमा की चंचल
किरणों के बिना तो पूर्णिमा का अर्थ ही भला क्या रहेगा. अगर किसी पूर्णिमा का
जिक्र होता है तो वह शरद पूर्णिमा का होता है तो फिर शरद की पूर्णिमा को क्यों न
श्रेष्ठ माना जाए क्योंकि उस दिन चंद्रमा की पूर्णता मन मोह लेती है. मगर महत्व तो
आषाढ़ पूर्णिमा का ही अधिक है क्योंकि इसका विशेष महत्व है.
आषाढ़ की पूर्णिमा ही क्यों है गुरु पूर्णिमा
आषाढ़ की पूर्णिमा को चुनने के पीछे गहरा अर्थ है. अर्थ है
कि गुरु तो पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह हैं जो पूर्ण प्रकाशमान हैं और शिष्य आषाढ़
के बादलों की तरह. आषाढ़ में चंद्रमा बादलों से घिरा रहता है जैसे बादल रूपी
शिष्यों से गुरु घिरे हों. शिष्य सब तरह के हो सकते हैं, जन्मों के अंधेरे
को लेकर आ छाए हैं. वे अंधेरे बादल की तरह ही हैं. उसमें भी गुरु चांद की तरह चमक
सके, उस अंधेरे से
घिरे वातावरण में भी प्रकाश जगा सके, तो ही गुरु पद की श्रेष्ठता है. इसलिए आषाढ़ की पूर्णिमा का
महत्व है! इसमें गुरु की तरफ भी इशारा है और शिष्य की तरफ भी. यह इशारा तो है ही
कि दोनों का मिलन जहां हो,
वहीं कोई
सार्थकता है.
गुरु पुर्णिमा पर्व का महत्व
जीवन में गुरु और शिक्षक के महत्व को आने वाली पीढ़ी को
बताने के लिए यह पर्व आदर्श है. व्यास पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा अंधविश्वास के
आधार पर नहीं बल्कि श्रद्धाभाव से मनाना चाहिए.
गुरु का आशीर्वाद सबके लिए कल्याणकारी व ज्ञानवर्द्धक होता
है, इसलिए इस दिन
गुरु पूजन के उपरांत गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए.
पूर्णिमा की पूजा विधि
हिन्दू धर्म में गुरु को भगवान से ऊपर दर्जा दिया गया है.
गुरु के जरिए ही ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है. ऐसे में गुरु की पूजा भी भगवान की
तरह ही होनी चाहिए. गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह-सवेरे उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ
वस्त्र धारण करें. फिर घर के मंदिर में किसी चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर
व्यास-पीठ बनाएं. इसके बाद इस मंत्र का उच्चारण करें- 'गुरुपरंपरासिद्धयर्थं
व्यासपूजां करिष्ये'.
पूजा के बाद अपने गुरु या उनके फोटो की पूजा करें. अगर गुरु
सामने ही हैं तो सबसे पहले उनके चरण धोएं. उन्हें तिलक लगाएं और फूल अर्पण करें.
उन्हें भोजन कराएं. इसके बाद दक्षिण देकर पैर छूकर विदा करें
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