संदीप कुमार मिश्र: ऊं श्री गुरुवे नम:...गुरु कौन है,जो हमें
अंधकार से प्रकाश की ओर ले कर जाए।इस लिहाज से देखें तो गुरु के लिए पूर्णिमा से
बढ़कर कोई और तिथि हो ही नहीं सकती, क्योंकि गुरु और पूर्णत्व दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं।
जिस प्रकार चंद्रमा पूर्णिमा की रात सर्वकलाओं से परिपूर्ण हो जाता है और वह अपनी
शीतल रश्मियां समान भाव से सभी को वितरित करता है। उसी प्रकार सम्पूर्ण ज्ञान से
ओत-प्रोत गुरु अपने सभी शिष्यों को अपने ज्ञान प्रकाश से प्रकाशवान करता है।
पूर्णिमा गुरु है और आषाढ़ शिष्य है। बादलों का घनघोर अंधकार। आषाढ़ का मौसम
जन्म-जन्मान्तर के लिये कर्मों की परत दर परत। इसमें गुरु चांद की तरह चमकता है और
अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।
तमसो मा
ज्योर्तिगमय
मृत्र्योमा अमृतं
गमय
कहते हैं कि चांद जब पूरा हो जाता है तो उसमें शीतलता आ
जाती है।शायद इसी शीतलता के कारण ही चांद को गुरु के लिये चुना गया होगा।क्योंकि
चांद में मां जैसी शीतलता और वात्सल्य भरा हुआ है।तभी तो हमारे ऋषियों व
महापुरुषों ने चांद की शीतलता को ध्यान में रखकर आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु को
समर्पित किया है।इसीलिए शिष्य, गृहस्थ, संन्यासी सभी गुरु पूर्णिमा को गुरु पूजन कर आशीर्वाद ग्रहण
करते हैं।
गुर्रुब्रह्मï गुरुर्विष्णु:
गुरुर्देवो महेश्वर:
गुरु: साक्षात्
परमब्रह्मï तस्मै श्री गुरवे
नम:।।
गुरु पूर्णिमा को गुरु का ध्यान करते हुए गुरु की पूजा, अर्चना व
अभ्यर्थना करनी चाहिए। भक्ति और निष्ठा के साथ उनके रचे ग्रंथों का पाठ करते हुए
उनकी पावन वाणी का रसास्वादन करना चाहिए। उनके उपदेशों पर आचरण करने की निष्ठा का
वर मांगना चाहिए। यकिनन गुरु पूर्णिमा से हमें कुछ विशेष करने का संकल्प लेना
चाहिए। तभी हमारे सद्गुरु हमारे जीवन में अवतरित होंगे और जीवन धन्य बन सकेगा।
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