संदीप कुमार मिश्र: कांची कामकोटि पीठ के पीठाधिपति और 69वें शंकराचार्य परम श्रद्धेय श्री जयेंद्र
सरस्वती जी महाराज का बुधवार को निधन हो गया। आखिर कौन थे जयेंद्र सरस्वती और
कितना प्रभावशाली रहा उनका जीवन...
दरअसल दक्षिण भारत की प्राचिन नगरी कांची जो कि कांची
कामकोटि के नाम से जानी जाती है।कांची प्राचीन समय से ही भारतीय संस्कृति और
सभ्यता के विकास केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठीत रही है। भारतीय दर्शन, धर्म, कर्मकाण्ड और योग
साधनाओं का मुख्य केंद्र रहा है कांची कामकोटि पीठ...।
भारत के चार महानगरों में से एक चेन्नई से 75 किमी की दूरी पर
स्थित कांची वो धर्म नगरी, वो परम धाम है,जहां भगवान शिव के अंशावतार आदि
गुरु शंकराचार्य जी ने कांची कामकोटि पीठम की स्थापना की थी। आदि गुरु शंकराचार्य
जी महाराज स्वयं कांची में रहे,इसलिए आचार्य जी के द्वारा स्थापित चार शिष्य पीठ
हैं,लेकिन कांची का पीठ स्वयं आचार्यजी का गुरु-पीठ है।तभी तो कांची पीठ का महत्व
हमारी परंपरा में सबसे अधिक बताई गई है।कांची पीठ के 69 शंकराचार्य पूज्य
श्री जयेन्द्र सरस्वती जी महाराज बने... ।
पूज्य
जयेन्द्र सरस्वती जी महाराज का कहना था कि धर्म के पीठ और मठ केवल पूजा-पाठ तक
सीमित न रहें,बल्कि वे शिक्षा, सेवा और समाज के उत्थान की अनेक प्रक्रियाओं
में भी सहभागी बनकर उभरें।अपने इसी संकल्प को पूरा करने के लिए पूज्य
महाराज श्री ने 1987 में सोचा कि पीठ पर विराजमान रहकर यदि यह काम नहीं किया जा
सकता तो पीठ का त्याग कर देना ही उचित है और महाराज श्री ने पीठ का त्याग भी
करना चाहा।इतना ही नहीं कुछ दिनों के लिए कांची से चले भी गए। लेकिन पूज्य
परमाचार्य जी महाराज ने उन्हें बुलाकर कहा कि सेवा का यह कार्य आप पीठ पर विराजमान
रहकर भी कर सकते हैं और करना भी चाहिए।
इसलिए
पूज्य स्वामीजी महाराज ने पून: अपने पद को स्वीकार किया और वे सेवा कार्यों
में जुट गए।जिसका परिणाम है कि भारत के विभिन्न प्रदेशों में मठ,वेद रक्षा निधि, आदि न्यास,स्थापित एवं संचालित वेद
पाठशालाएं, संस्कृत भाषा एवं शास्त्र विद्यालय,बड़े चिकित्सालय एवं चिकित्सा शिक्षा
संस्थान, छोटे चिकित्सा केन्द्र, समाजसेवा केन्द्र, अन्नक्षेत्र, अनाथालय,वृद्धाश्रम एवं विकलांग आश्रम,के
साथ ही माध्यमिक विद्यालय (हाईस्कूल), गोशाला,ग्रामीण विकास आदि सेवा केन्द्र,विदेशों
में सेवा केन्द्र,और श्री चंद्रशेखरेन्द्र सरस्वती विश्वविद्यालय की स्थापना की
गई। विश्वविद्यालय में एक बृहत पुस्तकालय है जहां पाण्डुलिपियों को सहेज कर रखा
गया है...शोधार्थियों के लिए पुस्तकों का विशाल भण्डार भी है...इस पुस्तकालय में
वेद, शास्त्र, धर्म, संस्कृति, सभ्यता, संगीत, कला, वास्तु-शास्त्र, शिल्पकला, आयुर्वेद, सिद्ध चिकित्सा, ज्योतिष, विज्ञान तकनीकी और अन्तरिक्ष विज्ञान
सहित सभी विषयों पर साहित्य का संग्रह है जो अद्भूत है...साथ ही वेद की पढ़ाई करते
इस पीठ में संस्कारों की जो गंगोत्री बहती है वो देखते ही बनती है...।
अत्यंत सादगीपूर्ण जीवन जीते हुए...दिन में केवल एक बार
अन्नग्रहण करके सांसारिक सुखों का त्याग कर सादगी पूर्ण जीवन जीते हुए परम त्यागी
सत्पुरुष कांची कामकोटि पीठाधिपति पूज्य शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी
महाराज ऐसी संस्थाओं का निर्माण कर उनका संचालन जिस प्रकार से कर रहे हैं...वो
वंदनिय है पूज्यनिय है...दक्षिण भारत में एक दीपस्तंभ के रूप में खड़ा हुआ कांची
पीठ इन सारी सेवाओं का संचालन निरंतर करता रहा है...और कर रहा है।
जयेंद्र सरस्वती जी महाराज के जीवन की मुख्य घटनाएं-
1- पूज्य जयेंद्र सरस्वती
का वास्तवकि नाम सुब्रमण्यन महादेव अय्यर था और उनका जन्म 18 जुलाई 1935 को हुआ था।
2- जयेंद्र सरस्वती
को वेदों का ज्ञाता माना जाता था। भारत के पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी भी इनके
प्रशंसकों में से एक थे।
3- जयेंद्र सरस्वती
ने अयोध्या विवाद के हल के लिए भी पहल की थी। इसके लिए वाजपेयी ने उनकी काफी
प्रशंसा की। जबकि इसके लिए तब जयेंद्र सरस्वती जी को आलोचना का भी शिकार होना पड़ा
था।
4- जयेंद्र सरस्वती
ने हिंदुओं के प्रमुख केंद्र कांची कामकोटि मठ को ताकतवर बनाया।
5- जयेंद्र सरस्वती
ने 1983 में शंकर
विजयेंद्र सरस्वती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था।
6- कांची मठ के
मैनेजर शंकरारमन की हत्या के आरोप में 11 नवंबबर 2004 को जयेंद्र सरस्वती को गिरफ्तार भी किया गया था। उस समय
जयललिता की ही सरकार थी। एक समय ऐसा था जब जयललिता जयेंद्र सरस्वती को अपना
आध्यात्मिक गुरु मानती थीं।
7- कहा जाता हैं कि
जिस वक्त जयेंद्र सरस्वती को पुलिस गिरफ्तार करने पहुंची तो वह 'त्रिकाल संध्या' कर रहे थे।
8- 27 नवंबर 2013 को शंकररमन
मर्डर केस में पुडुचेरी की अदालत ने कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र
सरस्वती, उनके भाई
विजयेंद्र समेत सभी 23 आरोपियों को बरी
कर दिया था।
भारतीय सभ्यता और संस्कृति के संवाहक परम श्रद्धेय
शंकराचार्य जी का निधन संत समाज के साथ ही संपूर्ण मानवता के लिए एक अपूर्णिय
क्षति है।
शंकराचार्य
जयेंद्र सरस्वती जी महाराज को शत् शत् नमन,श्रद्धांजलि
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